जिस समय देश में स्वच्छता कवरेज 99.99 प्रतिशत तक पहुंच गया है, इसके बाद अब पेयजल और स्वच्छता विभाग ने देश की ग्रामीण स्वच्छता रणनीति पर राष्ट्रीय परामर्श के लिए एक बैठक आयोजित की। स्वच्छता विभाग के अलावा केपीएमजी और यूनिसेफ ने मिलकर यह रणनीति तैयार की है। केपीएमजी एक निजी संगठन है जो जोखिम, वित्तीय, व्यावसायिक सलाहकार और कर, नियामक सेवाएं, आंतरिक लेखा परीक्षा और कॉर्पोरेट प्रशासन सेवाएं प्रदान करता है।
जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल और स्वच्छता विभाग के संयुक्त सचिव अरुण बरोका ने कहा कि देश 2019 तक सम्पूर्ण स्वच्छता का लक्ष्य हासिल कर लेगा। उनके अनुसार, स्वच्छ भारत मिशन ने अभी तक निम्नलिखित हासिल किया है। इनमें, वर्ष 2019 तक 300,000 मौतों को टाला गया। एक साल में 20 करोड़ डायरिया के मामलों की रोकथाम की गई। खुले में शौचमुक्त (ओडीएफ) वातावरण से प्रति वर्ष प्रति परिवार 50,000 रुपये की बचत हो रही है। इसके अलावा विभाग के आंकड़ों में कहा गया है कि खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) गांवों के मुकाबले गैर ओडीएफ गांवों में भूजल गंदगी 12.7 गुना अधिक है।
दस साल तक चलने वाली इस योजना के पांच बड़े स्तंभ होंगे - खुले में शौच मुक्त स्थिति, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन, जैविक अपशिष्ट प्रबंधन, इस्तेमाल हो चुके पानी का प्रबंधन और मल कीचड़ प्रबंधन। ओडीएफ बनाए रखने के लिए,शौचालयों में पर्याप्त पानी पहुंचाया जाएगा। सामुदायिक स्वच्छता परिसर को प्रोत्साहित किया जाएगा। शौचालय के गड्ढे खाली करने की प्रक्रियाओं का मानकीकरण होगा और स्वच्छता से संबंधित पूरी जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी।
विभाग घरेलू स्तर पर जैविक कचरे के खाद को बढ़ावा देगा और ग्राम पंचायत को इसकी देखरेख के लिए जिम्मेदार बनाया जाएगा। समुदाय, गांव और घरों के स्तरों पर ग्रे वाटर मैनेजमेंट किया जाएगा। ग्राम स्तर पर उपचारित भूजल के पुन: उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा और घरेलू स्तर पर किचन गार्डन और सोख गड्ढों को बढ़ावा दिया जाएगा।
जिन राज्यों में एकल गड्ढे शौचालयों से जुड़े हैं, उन्हें अगले वर्षों में वहां दो गड्ढे बनाए जाएंगे या पांच साल के अंतराल में गड्ढों को खाली करने का प्रावधान किया जाएगा। विभाग ने मलत्याग के प्रबंधन के लिए मल कीचड़ उपचार संयंत्रों के निर्माण पर एक बड़ा ध्यान केंद्रित किया है। समाज के व्यवहार में बदलाव के लिए सूचना रणनीति पर भी बड़ा फोकस किया जाएगा।
इस मिशन को कामयाब बनाने के लिए पंचायती राज संस्थानों को स्वच्छता की स्थिति के प्रबंधन और निगरानी के लिए सशक्त बनाया जाएगा। चूंकि पैसा कहां से आएगा, इस बारे में राज्यों की ओर से सवाल किए गए हैं, इसलिए विभाग के अधिकारियों ने समझाया कि 15 वें वित्त आयोग से धन प्राप्त किया जा सकता है और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा), कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी (सीएसआर) निधि और अन्य स्वच्छता परियोजनाओं जैसे अन्य निधियों से पैसा लिया जा सकता है। साथ ही, ये सभी काम निजी सार्वजनिक भागीदारी (पीपीपी) के तहत भी किए जा सकते हैं।
उधर, सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रबंधन पर अभी मुख्य ध्यान केंद्रित किया गया है। 11 सितंबर को, प्रधानमंत्री मथुरा से प्लास्टिक कचरे के लिए श्रमदान का एक स्पष्ट आह्वान करेंगे।
पेयजल और स्वच्छता विभाग के सचिव, परमेस्वरन अय्यर ने कहा कि अब शौचालय प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा और सही प्रकार के शौचालयों की सलाह दी जाएगी। अय्यर ने कहा कि जो शौचालय बनने से रह गए हैं, उनके लिए धन का आंवटन जारी रखा जाएगा और इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि गैर-ओडीएफ से लेकर ओडीएफ राज्य तक कोई न बचे। शौचालयों को रेट्रोफिटिंग और सही तकनीक के साथ अपग्रेड किए जाने पर जोर दिया जाएगा। अय्यर ने कहा कि मल कीचड़ प्रबंधन के साथ व्यवसाय मॉडल विकसित करना बहुत आवश्यक है।
बैठक में विभिन्न जिला मजिस्ट्रेट, एसबीएम निदेशक, विकास साझेदार, अनुसंधान संस्थान और गैर सरकारी संगठन शामिल थे। पेयजल और स्वच्छता विभाग की इस रणनीति में संशोधन के लिए लोगों को आमंत्रित किया गया है। प्रतिभागियों ने मासिक धर्म स्वच्छता और मासिक धर्म अपशिष्ट के निपटान पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी। बैठक में यह सामने आया कि रणनीति आशाजनक है - लेकिन रणनीति, ऐसी होनी चाहिए, जिस पर संस्थागत सेट के माध्यम से काम किया जा सके।