बन गए 5 साल में 10 करोड़ शौचालय, लेकिन...

अब नहीं होना होगा शर्मसार, खुले में शौच से मिली मुक्ति-2: सवाल यह है कि क्या शौचालयों का निर्माण करते वक्त ऐसी तकनीक अपनाई गई, जिससे इनका इस्तेमाल व्यवहारिक साबित हो
उड़ीसा के एक गांव कनकपुर में बना शौचालय, जहां गड्‌ढे का कवर सही ढ़ंग से नहीं लगा है, जो पूरी तरह सील होना चाहिए। फोटो: प्रियरंजन साहू
उड़ीसा के एक गांव कनकपुर में बना शौचालय, जहां गड्‌ढे का कवर सही ढ़ंग से नहीं लगा है, जो पूरी तरह सील होना चाहिए। फोटो: प्रियरंजन साहू
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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित कर सकते हैं। सरकार ने जब पांच साल पहले स्वच्छ भारत मिशन शुरू किया था तो लक्ष्य रखा गया था कि 2 अक्टूबर 2019 तक देश में 10 करोड़ शौचालय बनाए जाएंगे और देश में कोई भी खुले में शौच नहीं करेगा। सरकार का दावा है कि यह लक्ष्य हासिल कर लिया गया है 2 अक्टूबर को स्वयं प्रधानमंत्री इसकी घोषणा करेंगे। भारत जैसे देश के लिए इसे बहुत बड़ी सफलता माना जा रहा है। डाउन टू अर्थ भारत सरकार की इस योजना पर शुरू से नजर रखे हुए है और अब जब यह योजना पूरी होने वाली है। डाउन टू अर्थ नेस्वच्छ भारत मिशन के लगभग सभी पहलुओं की व्यापक पड़ताल की और 2 अक्टूबर तक इसे एक श्रृंखला के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। प्रस्तुत है, इसकी दूसरी कड़ी-

स्वच्छ भारत मिशन के तहत तय लक्ष्य के मुताबिक 5 साल में 10 करोड़ शौचालय बन तो गए, लेकिन शौचालय के तकनीक पर शुरू से सवाल उठते रहे हैं। जो शौचालयों का इस्तेमाल बरकरार रखने में तीसरी अहम भूमिका निभा सकती है। केरल के स्वच्छ भारत मिशन के अधिकारियों ने शिकायत की थी कि विभाग ने समुद्र तटीय इलाकों में भी दो पिट वाले शौचालयों को प्रोत्साहित किया, जो भूगर्भ जल को प्रदूषित कर रहे हैं। वर्ष 2019 में 3आईई की ओर से किए गए अध्ययन में विस्तार से बताया गया है कि किस तरह लोगों में शौचालय की टंकी भरने व खाली करवाने को लेकर एक चिंता है, जिससे शौचालयों के इस्तेमाल में कमी आई है।

बर्धमान यूनिवर्सिटी के भूगोल विभाग के शोधकर्ता सोमनाथ कर ने बांकुड़ा की बिक्रमपुर ग्राम पंचायत में बने शौचालयों के इस्तेमाल का विश्लेषण किया।

इस सिलसिले में उन्होंने वर्ष 2016-2017 में 60 प्रतिशत घरों का अध्ययन किया। इसमें उन्होंने पाया कि महज 17 प्रतिशत घरों में ही शौचालय थे, लेकिन जागरुकता की कमी और गलत तकनीक से शौचालय बने होने के कारण इनमें से महज 10 प्रतिशत घरों के लोग ही शौचालय का इस्तेमाल कर रहे हैं। बंगलुरू के अशोका ट्रस्ट ऑफ रिसर्च इन इकोलॉजी एंड एनवायरमेंट की दुर्वा विश्वास मई 2019 में छपे इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में लिखती हैं कि सार्वजनिक स्थलों व स्कूलों में ट्रांसजेंडरों के लिए शौचालयों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। पेयजल व स्वच्छता विभाग ने कहा है कि वे राज्य जहां एकल टंकी हैं, उन्हें आनेवाले समय में दो कर दिया जाएगा या पहली वाली टंकी को पांच वर्षों के अंतराल पर खाली किया जाएगा। रणनीति के नए मसौदे में विभाग ने फीकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट एंड ग्रे वाटर ट्रीमेंट एंड रियूज के जरिए टंकी में जमा होने वाले शौच के प्रबंधन पर जोर दिया है।

पेयजल व स्वच्छता विभाग के अनुसार इस रणनीति को विकेंद्रीकृत शासन के जरिए लागू किया जाएगा। विभाग को राज्यों की तरफ से ओडीएफ से जुड़े कार्यक्रमों के लिए फंडिंग के स्रोतों पर कई तरह के सवाल आए हैं, तो विभाग के अधिकारियों ने जानकारी दी है कि 15वें वित्त आयोग से फंड लिया जाएगा और साथ ही मनरेगा, सामाजिक व्यावसायिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) फंड आदि का इस्तेमाल भी किया जाएगा। साथ ही ये प्रोग्राम सार्वजनिक व निजी साझेदारी से भी किया जा सकता है। विभाग का यह भी कहना है कि दीर्घकालिक स्वच्छता के लिए क्षमता निर्माण वक्त की जरूरत है। अय्यर ने कहा कि ओडीएफ में किसी भी तरह की चूक नहीं होने देंगे। देश ओडीएफ घोषित हो रहा है तो विभाग इसकी निरंतरता बरकरार रखने पर विचार कर रहा है। इस बड़ी योजना की निगरानी को लेकर भी कदम उठाए गए थे। इसके लिए एनएआरएसएस 2017-2018 और 2018-2019 कराया गया था।

एनएआरएसएस के सर्वे में 29 राज्यों व 3 केंद्र शासित प्रदेशों के ग्रामीण इलाकों को शामिल किया गया था। एनएआरएसएस-1 (2017-2018) में 6,122 गांवों के 91,720 घरों व एनएआरएसएस-2 (2018-2019) में 6,136 गांवों के 92,411 घरों का सर्वेक्षण किया गया। पूर्व की तरह ही राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के सभी ग्रामीण इलाकों का सर्वेक्षण हुआ। सर्वेक्षण पूरी तरह से प्रामाणिक हों, इसके लिए काफी माथापच्ची की गई थी। हालांकि, सवाल अब शौचालयों के इस्तेमाल पर टिका है।

देश में शौचालय जिस तरह से बनाए गए हैं उसमें जलापूर्ति का ध्यान नहीं रखा गया है। दरअसल, 55 लीटर प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन जलापूर्ति होनी है लेकिन 40 लीटर से भी कम जलापूर्ति हो रही है। यह दर्शाता है कि शौचालयों तक पानी की पहुंच संदेहजनक है और शौचालयों के इस्तेमाल का दावा बिना इस काम के विफल हो सकता है। शौचालयों का जलसंकट भविष्यगत एक बड़ी चुनौती भी साबित हो सकता है।

जारी ...

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