क्लीन सिटी-2: क्यों है भोपाल देश की सबसे साफ राजधानी?

स्वच्छ सर्वेक्षण में भोपाल दो बार दूसरा सबसे साफ शहर रह चुका है, हालांकि वर्ष 2019 में इसकी रैंकिंग फिसलकर 19 रह गई। यह शहर अभी भी देश में सबसे साफ राजधानी का खिताब रखता है
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को देश के सभी राज्यों की राजधानी में सबसे स्वच्छ राजधानी का दर्जा हासिल है और इस काम में स्थानीय लोग भी बराबर की भागीदारी निभाते हैं। फोटो: मनीष मिश्रा
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को देश के सभी राज्यों की राजधानी में सबसे स्वच्छ राजधानी का दर्जा हासिल है और इस काम में स्थानीय लोग भी बराबर की भागीदारी निभाते हैं। फोटो: मनीष मिश्रा
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देश की सबसे साफ राजधानी भोपाल में हर सुबह 7 बजे से ही गंदगी के खिलाफ जंग शुरू हो जाती है। लगभग 6100 सफाईकर्मी दोपहर 2 बजे तक 505 छोटी गाड़ियां और 940 साइकल रिक्सा की मदद से तकरीबन 800 टन कचरा जमा कर लेते हैं। सुबह से शाम तक कई कोशिशों के बाद शहर न सिर्फ साफ सुथरा दिखता है बल्कि कचरे को दोबारा उपयोग लाने लायक भी बनाया जाता है। डाउन टू अर्थ के इस लेख से जानते हैं भोपाल की साफ-सफाई की वह व्यवस्था जिन्हें अपनाकर देश के दूसरे शहर भी साफ हो रहे हैं।

80 फीसदी लोग अलग-अलग देते हैं गीला और सूखा कचरा

नगर निगम भोपाल के आंकड़ों के मुताबिक शहर 413 वर्ग किलोमीटर में फैला है जहां 19 लाख की जनसंख्या निवास करती है। हर दिन निकलने वाले 800 टन कचरे का आधे से अधिक हिस्सा गीला कचरा यानि जैविक रूप से अपघटित होने वाला कचरा है। वर्ष 2016 से ही भोपाल के पास सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट का एक नियम है जिसके तहत हर तरह के कचरों का निस्तारण होता है। नगर निगम भोपाल के सहायक स्वास्थ्य अधिकारी रविकांत औचित्य बताते हैं कि अक्टूबर 2019 तक भोपाल के सभी 85 वार्ड और 19 जोन में 80 प्रतिशत तक कचरों का वर्गीकरण होने लगा था, यानि गीला-सूखा और अन्य खतरनाक कचरों को अलग-अलग छांटकर इकट्ठा किया जाने लगा था। इस काम में नगर निगम की मदद इंदौर का एक गैर सरकारी संगठन बेसिक्स करता है। बेसिक्स के प्रोजेक्ट इंचार्ज दिलशाद कहते हैं कि संस्था के लगातार काम करने के बाद अब लोग घर से ही गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग कर देते हैं। वार्ड 2 में निवास करने वाली महिला मम्बाई काकोरी कहती हैं कि शहर को साफ रखने की खातिर वे कचरे को तीन तरह से छांटती है। गीले और सूखे के अलावा वे खतरनाक कतरे को अलग कर देती है।

इस समय शहर के पास 6 कचरा ट्रांसफर स्टेशन हैं और 4 अभी निर्माणाधीन हैं। यहां सूखे कचरे को अलग कर उसमें छोटे टुकड़ों में बदल लिया जाता है। इन प्लांट्स को स्थापित करने के लिए नगर निगम ने स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की मदद ली है और 40 करोड़ रुपए भी खर्च किए हैं। दिलशाद बताते हैं कि यहां का कचरा उठवाने में लगे सभी गाड़ियों की जीपीएस द्वारा निगरानी रखी जाती है। कचरे से भरे बड़े ट्रक इन्हें दोबारा छांटने के लिए नियत स्टेशन पर लाता है। इस तरह का एक केंद्र 65 एकड़ में आदमपुर छावनी इलाके में बना है।

शहर का 55 प्रतिशत कचरा जैविक

शहर का 55 फीसदी कचरा जैविक है और इसे श्रोत के पास ही खाद बनाने की कोशिश पर काम चल रहा है। ऐसे कचरे को 30 से 35 दिनों तक ढककर खाद बनाया जाता है। वर्ष 2017 के बाद से ही शहर में कंपोस्टिंग यूनिट का विकेंद्रीकरण कर कई स्थान पर ऐसे उपकरण स्थापित किए गए हैं। शहर में 72 कंपोस्टिंग यूनिट हैं। इसके अलावा 250 रहवासी कल्याण समितियों, 100 होटल, 75 अस्पताल, 30 शादी हॉल, 50 स्कूल और 50 धार्मिक संस्थानों में छोटे कंपोस्टिंग के उपकरण लगाए गए हैं। शहर में 21000 घरों में घरेलू कंपोस्टर लगा है जो घरेलू कचरे को खाद में बदलता है।

बायोगैस के प्रयोग, सब्जी मंडी के कचरे से रोशन हो रहा बाजार

वर्ष 2016 में भोपाल नगर निगम ने बिट्टन मार्केट स्थित सब्जी मंडी में एक 5 टन प्रति दिन क्षमता वाला बायो गैस प्लांट स्थापित किया। यह प्लांट 450 यूनिट बिजली 50 केवीए जेनरेटर की मदद से पैदा कर सकता है। सहायक स्वास्थ्य अधिकारी रवि गोयनार के मुताबिक  इस बिजली से पूरे बाजार को रोशन किया जा सकता है। इस बाजार में रोजाना 15 टन कचरा इकट्ठा होता है।  

गीला कचरा ही नहीं, सूखे कचरे के निस्तारण में भी भोपाल नगर निगम ने कई सफल प्रयोग किए हैं। कचरा बीनने वाले लोगों की आमदनी बढ़ाने के लिए नगर निगम ने सार्थक संस्था की मदद की और 165 कर्मचारियों को कचरा छांटने के लिए 2500 वर्ग मीटर का स्थान दिलाया। सार्थक संस्था के संस्थापक इम्तियाज अली बताते हैं कि पर्यावरण पर कचरे का कम से कम असर सुनिश्चित करने के लिए यह इस काम से जुड़े सभी लोगों को अलग तरीके से काम करने का मौका देता है। इस स्थान पर इकट्ठा होने वाले कचरे का ब्लॉक बनाकर उसे विभिन्न सीमेंट फैक्ट्री में इंधन के रूप में प्रयोग करने के लिए भेजा जाता है।

सिंगल यूज प्लास्टिक बैन करने की कोशिश जारी

भोपाल में वर्ष 2017 से ही पॉलीथिन बैग को बंद करने की कोशिश चल रही है। मध्यप्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भोपाल नगर निगम के साथ मिलकर प्रधानमंत्री के मुहीम सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगाने पर काम शुरू किया है। भोपाल नगर निगम के कमिश्नर विजय दत्ता बताते हैं कि इस मुहीम को और प्रभावी बनाने के लिए शहर में कैरी योर ओन बैग (#CYOB) नाम का कैपेन चल रहा है जिसमें लोगों का कपड़े या जूट के झोले लेकर चलने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। नगर निगम द्वारा इकट्ठा किया कचरा अब आदमपुर छावनी जो कि शहर से 15 किलोमीटर दूर है जाता है। पहले इसे भानपुर खंती भेजा जाता था लेकिन अब उसे बंद कर दिया गया है। नगर निगम कचरा प्रबंधन को और पुख्ता करने के लिए कई तरह के ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की योदना पर काम कर रहा है। स्वच्छ भारत मिशन की सलाहकार जान्हवी दुबे के मुताबिक इसके लिए कंपोस्ट सेंटर भी तैयार हो रहे हैं। 

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