ग्राउंड रिपोर्ट: चौंकाने वाली है ओडीएफ घोषित हरियाणा की सच्चाई

अब नहीं होना होगा शर्मसार, खुले में शौच से मिली मुक्ति-4: जून 2017 में ओडीएफ घोषित हरियाणा के कई गांवों में हालात नहीं बदले हैं
हरियाणा के जींद जिले के निदाना गांव की विमला सुरजवाना, जिसने ब्याज पर कर्ज लेकर शौचालय बनवाया, लेकिन अब तक स्वच्छ भारत मिशन की सब्सिडी नहीं मिली। फोटो: श्रीकांत चौधरी
हरियाणा के जींद जिले के निदाना गांव की विमला सुरजवाना, जिसने ब्याज पर कर्ज लेकर शौचालय बनवाया, लेकिन अब तक स्वच्छ भारत मिशन की सब्सिडी नहीं मिली। फोटो: श्रीकांत चौधरी
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जून 2017 में पूरे हरियाणा को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित कर दिया गया था। लेकिन क्या सच में पूरा हरियाणा ओडीएफ हो चुका है, इसकी पड़ताल के लिए डाउन टू अर्थ ने कुछ इलाकों का दौरा किया।

पलवल जिले के गांव अमरोली में वाल्मीकि समुदाय के लोग गांव से बाहर झुग्गियों में रहते हैं। इस समुदाय के 30 वर्षीय दिनेश कुमार बताते हैं कि हमारे पास शौचालय के बनाने के लिए जमीन नहीं है, इसलिए पंचायत ने हमें गांव की चौपाल पर बने सामुदायिक शौचालय का इस्तेमाल करने को कहा है, लेकिन वहां हमें ऊंची जाति के लोग नहीं जाते देते और अगर हम लोग वहां चले भी जाएं तो वे लोग झगड़ा करते हैं।

26 वर्षीय करण कहते हैं कि वैसे भी, ये शौचालय हमारे घरों से एक किलोमीटर से ज्यादा दूरी पर हैं, सुबह-सुबह वहां कैसे जाएं। महिलाएं भी दूसरों के मोहल्लों में बने सामुदायिक शौचालयों में जाना पसंद नहीं करती हैं। इसलिए हमारे समुदाय के लगभग सभी लोग खुले में शौच करते हैं।  ये लोग उनमें से हैं, जिनके घरों में शौचालय नहीं बने हैं और उनके पास खुले में शौच करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

इसी तरह, फरीदाबाद का एक गांव है धौज। लगभग 28 वर्षीय शबनम बताती है कि उसके मायके में तो शौचालय था, लेकिन शादी के बाद यहां आए सात साल हो गए, यहां तो शौचालय नहीं देखा। एक और महिला ने कहा कि हम सब ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत बनने वाले शौचालयों के निर्माण के लिए आवेदन भरा था, लेकिन सरपंच ने हमारी नहीं सुनी। कुछ साल पहले एक घर में शौचालय बना था, लेकिन उस घर के लोग शौचालय का इस्तेमाल नहीं करते, क्योंकि शौचालय का डिजाइन सही नहीं है। जबकि सामुदायिक शौचालय इस आबादी से चार से पांच किलोमीटर की दूरी पर बना हुआ है।

गांव की रेशमा कहती हैं कि हमारी सरपंच महिला है और महिलाओं की परेशानी को समझते हुए उन्हें हमारे लिए शौचालय बनवाने चाहिए।

गांव के बाद गांव लगभग एक सी कहानी है। हालांकि, जहां कई नए शौचालय बने हैं, वहां भी खुले में शौच किया जा रहा है। मीसा गांव 26 वर्षीय गीता से  सरपंच ने सर्वेक्षण के दौरान उसके घर का फोटो खिंचवाने के लिए कहा और लेकिन उसके बाद सरपंच ने उससे बात तक नहीं की। लगभग 65 वर्षीय हरदेवी, जिसे शौचालय की सख्त जरूरत है के पति तो खुले मैदान में शौच के लिए जाते वक्त घायल तक हो चुके हैं।

यहां ऐसे लोग भी हैं, खुले में शौच से रोकने के बाद उन्होंने अपने घर में शौचालय बनाया, लेकिन ये शौचालय एक गड्ढे वाले हैं, जबकि स्वच्छ भारत मिशन के दिशा निर्देशों में बेहतर ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए दो गड्ढे वाले शौचालय बनाने का प्रावधान किया गया है।

पलवल के गुलवाड़ गांव में पिछले साल खुले में शौच करते हुए 46 वर्षीय बलराम सनोपर को पुलिस वालों ने लाठी दिखा कर भगा दिया था और उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की धमकी दी थी, जिसके बाद बलराम ने घर में कच्चा शौचालय बना दिया।

मजदूरी करने वाले बलराम ने बताया कि पुलिस वालों ने धमकी दी कि यदि मैं खुले मैदान में शौच करते पकड़ा गया तो मुझे हवालात में बंद कर देंगे। इसलिए मैंने शौचालय बना लिया और इसके लिए मैंने किसी भी सहायता या पैसा नहीं लिया।

बलराम के मुताबिक, उसने एक गड्ढे वाला शौचालय बनवाया था, जिस पर 7000 रुपए खर्च आया था। अब तक दो बार गड्ढा खाली करना पड़ा। एक टैंकर वाला गड्ढा खाली करता है। जब उससे पूछा गया कि टैंकर वाला अपना टैंक कहां खाली करता है तो बलराम ने बताया कि नजदीक की नहर में टैंक खाली कर देता है। यानी कि, इन शौचालयों से निकल कर मल नहरों में जा रहा है। कई गांव ऐसे भी हैं, जहां खुले मैदान नहीं रहे तो वहां के लोगों को खुले में शौच करना बंद करना पड़ा। निदाना गांव की पूजा बताती है कि लगभग हर खाली जगह पर कुछ न कुछ बन गया है। दूसरा, कहीं बाहर खुले में जाओ तो कुछ लोग उन्हें रोकते हैं, इसलिए उन्हें घर में शौचालय बनाना पड़ा।  

जबकि गांव की बिमला सुरजवान बताती हैं कि उनका घर पंचायती जमीन पर बना है तो पंचायत की ओर से धमकी दी कि अगर उन्होंने शौचालय नहीं बनवाया तो वे जमीन वापस ले लेंगे, इसलिए उन्हें शौचालय बनवाना पड़ा, लेकिन शौचालय बनाने के लिए न तो उसे लोन लिया है और ना ही कोई सब्सिडी मिली है।

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