विकास चौधरी / सीएसई
विकास चौधरी / सीएसई

स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2021: नदियों में सीधे जा रहा है 74 फीसदी सीवेज

देश में उत्पन्न 78 प्रतिशत सीवेज बिना उपचारित नदियों में प्रवाहित किया जा रहा है
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भारत में शहरीकरण के साथ ही शहरों पर सीवेज का बोझ भी बढ़ता जा रहा है। इसके साथ ही बढ़ती जा रही है सीवेज की उपचार की समस्या। यह समस्या दशकों से बनी हुई है। इस समस्या को दूर करने के लिए बड़े पैमाने पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की आवश्यकता है। हालांकि इस दिशा में काम जरूर हुए हैं लेकिन वे ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित हो रहे हैं। अनुमान है कि देश में उत्पन्न 78 प्रतिशत सीवेज बिना उपचारित नदियों में प्रवाहित किया जा रहा है। यह अनुपचारित सीवेज स्वच्छ भारत की राह में सबसे बड़ी बाधा है।

मौजूदा समय में 55-56 मिलियन टन म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट हर साल शहरों से निकलता है। अनुमान है कि 2030 तक 165 मिलियन टन सॉलिड वेस्ट हर साल निकलेगा। ऐसे में इसे उपचारित करने की चुनौती बड़ी है। अगर सीवेज की बात करें तो भारत में 72,368 मिलियन लीटर (एमएलडी) सीवेज प्रतिदिन उत्पन्न होता है जबकि उपचार क्षमता 31,841 एलएलडी ही है। हैरानी की बात यह भी है कि अधिकांश सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) अपनी क्षमता से बहुत कम सीवेज का उपचार कर रहे हैं। इस कारण भारत का कुल 28 प्रतिशत सीवेज ही उपचारित हो पाता है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि 10 राज्य/केंद्र शासित प्रदेश- अंडमान एवं निकोबार दीप समूह, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, लक्ष्यद्वीप, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड अपने सीवेज का उपचार ही नहीं करते। इसके अलावा 13 राज्य/केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं जो अपने सीवेज का 20 प्रतिशत से भी कम हिस्सा उपचारित करते हैं। इनमें झारखंड, केरल, त्रिपुरा, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, जम्मू एवं कश्मीर, दमन दीव, आंध्र प्रदेश, गोवा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु और पुदुचेरी शामिल हैं।

सात राज्य- सिक्किम, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र 50 प्रतिशत से कम सीवेज उपचारित करते हैं। केवल पांच राज्य- गुजरात, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब और चंडीगढ़ की 50 प्रतिशत से अधिक सीवेज उपचारित करते हैं। शहरों का अनुपचारित सीवेज नालों के माध्यम से सीधे नदियों में बहा दिया जाता है जिससे न केवल नदियां प्रदूषित होती हैं बल्कि जलीय जीवों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

अनुमान के मुताबिक, 2050 तक शहरों में 416 मिलियन यानी 41.6 करोड़ लोग और रहने लगेंगे। इस तरह देश की 58 प्रतिशत आबादी की रिहाइश शहरों में होगी। देश के सकल घरेलू उत्पाद में शहरों में रहने वाली आबादी की हिस्सेदारी अभी 62 से 63 प्रतिशत है जो 2030 में बढ़कर 75 प्रतिशत हो जाएगी। इस प्रकार के आर्थिक विकास के गंभीर परिणाम निकलेंगे। शहरों से उत्पन्न सीवेज शहरीकरण की सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरेगा।

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