सरकार का काम होता है गांव बसाना लेकिन पिछले एक दशक से सरकारों ने गांव बसाना तो दूर बसे-बसाए गांवों को उजाड़ना शुरू कर दिया है। अब तक गांवों के उजाड़ने का काम देश की विकास योजनाएं या बड़े बांध हुआ करते थे लेकिन अब गांवों को उजाड़ने काम स्थानीय निकाय कर रहे हैं। वह भी श्हारियों की गंदगी को ठिकाने लगाने के लिए। इसकी शुरूआत भी कोई देश के दूर-दराज इलाके से नहीं हुई है बल्कि इसकी शुरूआत देश की राजधानी दिल्ली से हुई। जब यहां का एक कचरा डालने वाली जगह (गाजीपुर लैंडफील) पर कचरे का पहाड़ धसक गया और दो लोगों की मौत हो गई। इसके बाद तो देश के लगभग हर शहर के पास बसे गांवों की शामत आ गई है। क्योंकि जैसे ही शहर में कचरा डालने वाली जगह भर जाती है तो आननफानन स्थानीय निकाय शहर के पास बसे किसी ऐसे गांव की तलाश करता है, जहां थोड़ी बहुत जमीन खाली पड़ी हो। बस उसे ही लैंड फील बना देते हैं। यह कहानी उस गांव की है जो कुछ समय तक एक खुशहाल गांव हुआ करता था अब कचरा घर बन कर सिसक रहा है।
दो साल पहले तक आदमपुर छावनी ग्राम पंचायत (भोपाल से 25 किलोमीटर दूर और अब यह भोपाल शहर के कचरा डालने की जगह बन गया है) में बसे सात गांव खुशहाल हुआ करते थे। एक बारगी देखने पर यहां के गांव खुले-खुले और दूर-दूर तक बसे घर हुआ करते थे। लेकिन अब इन गांवों देखने पर गांव के ऊपर से उठता धुंआ ही धुंआ ही दिखता है। यह धुंआ कोई ग्रामीणों के चूल्हे से निकलना हुआ नहीं बल्कि गांव के मुहाने पर डाले गए कचरे को जलाने के कारण उठ रहा है। ग्राम पंचायत के अर्जुन नगर गांव में दो साल से शहरी लोगों की गंदगी डालना शुरू हुई है। चूंकि यह गांव लगभग सात गांवों से घिरा हुआ है। और इस गांव की सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि इससे लगा हुआ एक पठारी इलाका है। बस यही इस गांव की सबसे बड़ी मुसीबत बन बैठा। इस पठारी इलाको को अकेले अर्जुन नगर गांव के ही नहीं आसपास के सभी सात गांव के मवेशी घास चरने आते थे। यह गोचर की जमीन थी और आसपास के ग्रामीणों ने इस इलाके को मिलकर स्वच्छ बना रखा था। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किसी भी गांव की गंदगी इस पठारी इलाके में नहीं डाली जाती थी। लेकिन अचानक ही दो साल पहले भोपाल नगर निगम ने अपने शहर की सबसे बड़ी कचरा पट्टी भोपाल खंती(स्थानीय भाषा में कचरा डालने वाली जगह को कहा जाता है) को बंद करने का एलान किया। क्योंकि यहां अब उसमें शहरी कचरा डालना असंभव हो गया था। इसगांव की कुल आबादी लगभग 1200 थी। अब इन सभी को निगम ने दूसरें गांवों में ले जाकर बसा दिया है।
यह गांव 1955 से बसा हुआ है। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने यहां के बंजरा समुदाय के लगभग सौ परिवारों को सरकारी आवास जमीनें आबंटित की थीं। उनके नाम पर ही इस गांव का नाम अब अर्जुन नगर है। यह गांव की गोचर जमीन है और लगभग 54 एकड में फैली हुई है। इस जमीन से लगे ही खेत शुरू हो जाते हैं। यहां पर अधिकांश लोग पत्थर तोड़ने का काम करते हैं।
भोपाल की भानपुरा खंती को बंद करने के लिए 2008 में नगर निगम ने शहर से 18 किलोमीटर दूर आदमपुर छावनी ग्राम पंचायत में स्थित अर्जुन नगर गांव में नया लैंडफील बनाने का प्रस्ताव पास किया। इसकी खर्च लागत 425 करोड़ रुपए आई। अर्जुन नगर गांव में कुल 170 परिवार रहते थे और इसमें से 90 परिवारों को अक्टूबर, 2017 तक सरकार ने दूसरी जगह पर बसा दिया था। लेकिन बचे 80 परिवार यहां से जाने को तैयार नहीं हुए थे लेकिन अब वे भी दूसरी जगह जाकर बस गए है। दूसरी जगह बसे कई परिवारें का कहना है कि नगर का कचरा डालने के लिए बस हम गरीब का ही घर बचता है। हम यहीं पैदा हुए और पत्थर तोड़ कर अपने परिवार का जैसे-तैसे भरणपोषण कर रहे थे लेकिन सरकार को यह भी गवारा नहीं हुआ। भानपुरा खंती के पास रहने वाली एस. अहमद कहते हैं कि निगम अधिकारियों ने इस गांव के लोगों को समझाया था कि यह लैंडफील बहुत ही वैज्ञानिक तौरतरीके से निर्मित किया गया है, इसमें किसी को परेशानी नहीं होगी। आदमपुर छावनी के उप सरपंच प्रशांत कुमार कहते हैं 2008 में नगर निगम के प्रस्ताव में पहली बार इस गांव का नाम आया था। वे कहते हैं 2022 के भोपाल प्लानिंग में बताया गया है आदमपुर छावनी पंचायत के एक और गांव शामिल किया जाएगा तो क्या तब एक बार फिर से एक और नए आदमपुर छावनी गांव की तलाश शुरू होगी?