सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध: विचार अच्छा लेकिन कार्य-योजना में कई खामियां

देश के प्लास्टिक कचरे का लगभग साठ फीसद पैकेजिंग से आता है लेकिन इसे उस सूची में शामिल नहीं किया गया है, जिसका उपयोग बंद होना है
सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध: विचार अच्छा लेकिन कार्य-योजना में कई खामियां
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15 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के लोगों से अपील की थी कि वे देश को सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त बनाएं और इस दिशा में सरकार के अभियान में पूरे मन से हिस्सा लें। उन्होंने देश के तकनीकी विशेषज्ञों से जोर देकर कहा था कि वे प्लास्टिक के दोबारा उपयोग और रिसाइक्लिंग के बेहतर उपाय निकालें। प्रधानमंत्री ने दुकानदारों से भी अुनरोध किया था कि वे पॉलीथीन में सामान न बेचंे और साथ ही लोगों से कहा था कि वे इसे लेकर और जागरुक बनें।

प्रधानमंत्री ने देश को सिंगल यूज प्लास्टिक मुक्त बनाने के मुददे को दिसंबर 2020 में अपने मासिक संबोधन वाले कार्यक्रम ‘मन की बात’ में भी उठाया था। अब इस दिशा में आगे बढ़ते हुए केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 12 अगस्त 2021 को प्लास्टिक कचरा प्रबंधन संशोधित नियम, 2021 की अधिसूूचना जारी की है, जिसका मकसद चिन्हित किए गए बीस सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पादों पर 2022 के अंत तक रोक लगाना है।

क्या है सिंगल यूज प्लास्टिक?
सिंगल यूज प्लास्टिक का उत्पादन और निर्माण इस तरह से किया जाता है कि एक बार इस्तेमाल होने के बाद उसे फेंक दिया जाए। इस परिभाषा के हिसाब से प्लास्टिक के तमाम उत्पाद इसी श्रेणी में आते हैं। इसमें डिस्पोजेबल स्ट्रा से लेकर डिस्पोजेबल सीरिंज तक सभी शामिल हैं। भारत में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन संशोधित नियम 2021, में सिंगल यूज प्लास्टिक को ‘प्लास्टिक की ऐसी वस्तु बताया गया है, जिसे नष्ट करने या रिसाइकिल करने से पहले एक मकसद से केवल एक बार ही उपयोग में लाया जाता हो।’ जिन पर प्रतिबंध लगना है, उन बीस सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पादों की पहचान केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के निर्देश पर रसायन एवं पेट्रोरसायन विभाग द्वारा गठित विशेषज्ञों की एक समिति ने की है। इस समिति में नीति- निर्माताओं के अलावा प्लास्टिक और उससे संबंधित क्षे़़त्र में काम करने वाले वैज्ञानिक, शिक्षाविद और शोधार्थी शामिल हैं। समिति ने किसी प्लास्टिक को ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ मानने के दो पैमाने बनाए हैं - पहला कि उसकी उपयोगिता क्या है और दूसरा, उसका पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है।

मूल्यांकन की कार्यप्रणाली -
किसी भी उत्पाद की उपयोगिता और पर्यावरण पर उसके असर का मापने के लिए कुल सौ अंक तय किए गए और उन्हें पांच अलग-अलग पैमानों में बांटा गया। जिस उत्पाद के उपयोगिता के पैमाने पर कम अंक और पर्यावरण पर उसके असर के पैमाने पर ज्यादा अंक आए हैं, उसे ऐसा सिंगल यूज प्लास्टिक माना गया है, जिस पर तत्काल रोक लगाने की जरूरत है। इस कार्यविधि के अनुसार, जिन बीस उत्पादों को प्रतिबंधित किया जाना है, वे इन पैमानों पर खरे उतरते हैं। इनमें से जिन सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाना है, उनमें से ज्यादातर का उत्पादन स्थानीय, छोटे और मध्यम श्रेणी के प्लास्टिक उत्पादक ; कारोबारी द्ध करते हैं, जो बिना ब्रंाड वाले अपने उत्पादों की बिक्री करते हैं। हालांकि कुछ ऐसे प्लास्टिक उत्पाद भी हैं, जिनके उपयोगिता के पैमाने पर कम अंक और पर्यावरण पर असर के पैमाने पर ज्यादा अंक आने के बावजूद उन्हें प्रतिबंध के लिए चिन्हित किया नहीं किया है। इससे सरकार के इस फैसले का बड़े कारोबारियों पर कम असर पड़ेगा। यह स्पष्ट नहीं है कि मापने वाले फीते को क्यों उन उत्पादों में शामिल किया गया है, जिन पर प्रतिबंध लगना है।

प्रतिबंध का समय-निर्धारण
ज्यादातर छोटे और मध्यम श्रेणी के प्लास्टिक उत्पादकों द्वारा तैयार की जाने वाली सिंगल यूज प्लास्टिक पर 30 सिंबतर 2021 से प्रतिबंध लगना शुरू हो जाएगा, और 1 जुलाई 2022 तक इन पर पूर्णतः प्रतिबंध लग जाएगा। इस प्रतिबंध में एफएमसीजी, यानी तेजी से आगे बढ़ने वाली उपभोक्ता कंपनियों की सिंगल यूज प्लास्टिक को शामिल नहीं किया गया है।  

बड़े खिलाड़ी
दिल्ली के गैर-लाभकारी संगठन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की उद्योगों के आकलन पर ‘प्लास्टिक रिसाइकिल्ंग- डिकोडेड’ नामक रिपोर्ट के मुताबिक, प्लास्टिक के कुल कचरे के लगभग साठ फीसदी प्लास्टिक की पैकेजिंग से आता है। इस पैकेजिंग का काफी हिस्सा प्लास्टिक का इस्तेमाल होने के कुछ मिनटों या दिनों के बाद अलग कर दिया जाता है। प्लास्टिक की पैकेजिंग से होने वाले कचरे को रहस्यमयी तरीके से उस सूची में नहीं डाला गया है, जिस पर प्रतिबंध लगना है।

प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के मुताबिक, इस दिशा में प्लास्टिक उत्पादक, आयातक और ब्रांड के मालिक के सम्मिलित प्रयास से  पर्यावरण के अनुकूल फैसला लिया जाना था। इस लिहाज से यह माना गया था कि प्लास्टिक कचरे के उत्पादक, प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के प्रकाशन के छह महीने के अंदर कचरा जमा करने के तौर-तरीके विकसित कर लेंगे। इस काम में उन्हें शहरी विकास विभाग और स्थानीय ईकाईयों आदि की मदद भी अपेक्षित थी। लेकिन पांच साल के बाद भी उत्पादकों की जिम्मेदारी केवल कागजों तक ही सीमित है। इस काम में न ही उन्हें आयातक और ब्रांड के मालिक से सहयोग मिला और न ही प्रशासनिक विभागों ने उनकी मदद की। ऐसे में अब सरकार का यह मानना कि ये सभी अब ढंग से अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे, एक पहेली है। हालांकि कुछ ब्रांड मालिक, कॉरपोरेट- सामाजिक जिम्मेदारी के तहत प्लास्टिक कचरे के संग्रह के लिए मामूली काम करते हैं लेकिन यह स्वैच्छिक और समाज के लिए कुछ करने की उनकी प्रेरणा के तहत ही है। नई अधिसूचना के बाद इस तरह के दिखावटी प्रयास सामान्य बन जाएंगे।

समस्या की जड़
जिन बीस सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पादों की प्रतिबंध की सूची में रखा गया है, वे ऐसे नहीं है जो कम्पोस्ट होने वाली प्लास्टिक से बने होते हैं। कम्पोस्ट होने वाली प्लास्टिक वह होती है, जिसके छोटे- छोटे टुकड़े करके उसे दूसरे प्राकृतिक तत्वों में बदला जा सके। हमारे देश में उस तरह की तकनीक फिलहाल मौजूद नहीं है, जो जीवाश्म- आधारित प्लास्टिक और कम्पोस्ट होने वाली प्लास्टिक में अंतर बता सके। इससे वही होगा, जो पहले से हो रहा है। यानी बाजार में पुरानी 50 माइक्रॉन के लेबल वाली प्लास्टिक चलती रहेंगी।

उद्योगों के आकलन के मुताबिक, भारत ने साल 2018 में 1.84 करोड़ टन प्लास्टिक का इस्तेमाल किया था, जबकि उस एक साल में उत्पादन केवल 1.7 करोड़ टन प्लास्टिक का हुआ था। वैश्विक मानक यह है कि जितनी प्लास्टिक हम पैदा करते हैं, उसका एक फीसद ऐसा हो, जो स्वाभाविक तरीके से सड़ने वाला हो और जिसे कम्पोस्ट किया जा सके। इसका मतलब यह है कि देश को 1,70,000 टन ऐसे प्लास्टिक की जरूरत है, जिसे कम्पोस्ट किया जा सके। यानी उद्योगों को ऐसी ईकाईयां बनानी चाहिए, जिनमें इस कचरे को ठीक किया जा सके।

कम्पोस्ट होने वाली प्लास्टिक को लेकर हमारे समाज में बहुत कम जागरुकता है। ऐसा कहा जाता है कि अपने घर और उसके आसपास जमा होने वाली कम्पोस्ट प्लास्टिक समय के साथ कॉर्बन डाइऑक्साइड के छोटे-छोटे टुकड़ों या पानी की बूंदों में तब्दील हो जाएगी। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि लोगों को समझाया जाए कि कम्पोस्ट होने वाली प्लास्टिक को केवल इसके लिए तैयार उद्योगों के अंदर ही कम्पोस्ट किया जा सकता है, जहां इसके लिए कुछ पैमाने तय करके इसे कम्पोस्ट किया जाता है। हमारे यहां कचरे के निस्तारण की वर्तमान प्रणाली कम्पोस्ट प्लास्टिक के लिए तैयार नहीं है। इसके बजाय हमारे यहां ऐसी प्लास्टिक को और खराब कर उसकी रिसाइक्लिंग की जाती है। जिससे न केवल उस पर होने वाला खर्च बढ़ता है बल्कि इस नए प्लास्टिक कचरे के सामयोजन का भार भी बढ़ता है।
इसके अलावा देश में कम्पोस्ट प्लास्टिक के लिए उद्योगों की संख्या बिल्कुल सीमित है। अगर हमें कम्पोस्ट होने वाली प्लास्टिक को बढ़ावा देना है तो इसके लिए उद्योग कहां है ?

दस साल का विलंबकाल
अधिसूचना के उपखंड 4 (4)  के मुताबिक, प्लास्टिक उद्योग को इसके लिए दस साल का विलंबकाल दिया गया है। इसमें कहा गया है:
ऐसी कोई अधिसूचना जो ; सामान ले जानेे वाली पॉलीथीन, प्लास्टिक शीट या इसी तरह के बैग, या प्लास्टिक शीट और मल्टी-लेयर पैकेजिंग और सिंगल-यूज प्लास्टिक, जिसमें पॉलीस्टीरीन और विस्तारित पॉलीस्टीरीन, कमोडिटीज शामिल हैद्ध इसके निर्माण, आयात, संग्रह, वितरण, बिक्री और उपयोग को प्रतिबंधित करती है, वर्तमान अधिसूचना के प्रकाशन की तारीख से दस वर्ष की समाप्ति के बाद लागू होगी।            
सरकार को चाहिए कि वह इसका दबाव बनाए कि प्लास्टिक उद्योग इस दिशा में शोध और विकास में निवेश पर ध्यान दे। साथ ही सरकार यह भी सुनिश्चित कराए कि रिसाइकिल किए गए प्लास्टिक उत्पादों का इस्तेमाल गैर-खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में ही किया जाए। इसके बजाय सरकार ने प्लास्टिक उद्योग को यह भरोसा दिया है कि प्रतिबंधित की जाने वाली सिंगल यूज प्लास्टिक की सूची कम कम दस साल नहीं बदलेगी। इससे सरकार ने एक तरह से इस उद्योग को आने वाले सालों में प्रदूषण फैलाते रहने का लाइसेंस दे दिया है।

दूसरे देशों में क्या हो रहा है ?
हमारे नीति-निर्माता पिछले पांच सालों में सिंगल यूज प्लास्टिक को लेकर किए अपने वादों को पूरा करने में नाकाम रहे हैं। इसके बजाय उन्होंने  रिसाइक्लिंग के नियमों में ढील दी और ‘ रिकवर होने योग्य नॉन- एनर्जी ’ जैसी शब्दावली निकालकर आधे- अधूरे प्रयास किए। गौरतलब है कि एनर्जी रिकवरी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें रिसाइकिल न होने वाले कचरे को जलाकर उसे अन्य रूप में बदला जाता है। यूरोपीय संघ ने स्पष्ट नीति के साथ रणनीति बनाकर 2021 तक 10 सिंगल यूज प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने का फैसला लिया है। वहीं, इजरायल ने सिंगल यूज प्लास्टिक और डिस्पोज होने वाले बर्तनों की खरीद पर दोगुना टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा है। उसके पर्यावरण की सुरक्षा से संबंधित विभाग ने अध्ययन कर पाया कि इससे वहां सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल में 41 फीसद कमी आने की उम्मीद है।

बहु-स्तरीय प्लास्टिक की कहानी
प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम 2016, में बहु-स्तरीय प्लास्टिक यानी एमएलपी पर प्रतिबंध का प्रस्ताव आया था लेकिन 2018 में ‘एनर्जी रिकवरी ’ और ‘वैकल्पिक इस्तेमाल’ जैसे शब्द गढ़कर इसमें संशोधन किया गया। इस तरह से वह प्रयास भी अध्ूारा रह गया। इस साल के संशोधन में बहु-स्तरीय प्लास्टिक को प्रतिबंधित किए जाने वाले प्लास्टिक की सूची में न शामिल कर उद्योगों को मौका दे दिया गया कि वे और अगले दस साल तक पर्यावरण को प्रदूषित करते रह सकते हैं।

नई अधिसूचना का असर
प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण से वैश्विक लड़ाई में सरकार की नई अधिसूचना का संवाद के स्तर तो काफी महत्व है लेकिन प्लास्टिक कचरे के निर्माण और इसकी रिसाइक्ल्ंिग से जुड़े अंाकड़ों के न होने से जमीनी धरातल पर इसका असर नहीं मापा जा सकता। यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रतिबंधित किए जाने वाले बीस सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद होने से हमारे कचरा इकट्ठा करने वाले मैदानों पर बोझ कितना कम होगा।  

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