देश को स्वतंत्र हुए लगभग 71 साल हुए हैं और इसमें आधे से अधिक समय से (34 साल) केंद्र सरकार गंगा नदी को साफ करने में जुटी हुई है। अब चुनावी भाषणों पर गौर करें तो केंद्र सरकार आम जनता से गंगा की सफाई के लिए और पांच साल मांग रही है। हालांकि वह इस बात की गारंटी नहीं दे रही है, यदि जनता ने उसे गंगा के नाम पर वोट डाल ही दिया तो अगले पांच सालों में गंगा स्वच्छ हो ही जाएगी। जब इतने बरस में गंगा साफ नहीं हो पाई तो भोपाल के पास बहने वाली पात्रा नदी की सफाई के बारे में तो राज्य सरकार ने पिछले 43 से कुछ सोचा विचारा ही नहीं है। इसका नतीजा है कि अब नदी की दिशा ही बदल गई है।
इस संबंध में पिछले 23 सालों में भानपुरा खंती (भोपाल का लैंडफिल क्षेत्र) को हटाने के लिए संघर्षरत “भानपुरा खंती हटाओ अभियान संघर्ष समिति” के संयोजक अशफाक अहमद बताते हैं, “भानपुरा खंती पर बना विशालकाय कचरे के पहाड़ ने इसके पास से बहने वाली पात्रा नदी की दिशा ही बदल कर रख दी है। यह नदी कभी सीधी ही बहती थी, लेकिन अब यह सर्पिली घुमावदार आकार में बहने पर मजबूर है। यही नहीं, इस नदी में खंती के कचरे का रिसाव भी सीधे समा रहा है। अहमद कचरे के पहाड़ से सटी नदी की ओर इशारे करते हुए बताते हैं “कचरे के पहाड़ ने नदी की धारा को लगभग 90 अंश तक मोड़ दिया है। आशंका है कि यह नदी आने वाले समय में 45 अंश तक भी मुड़ सकती है।”
भोपाल के भानपुरा गांव के निवासियों का कहना है कि “भानपुरा खंती (कचरे का गड्ढा) पर बना कचरे का पहाड़ न केवल इंसानों की जान ले रहा है, बल्कि अब इसने तो एक जीती जागती नदी को ही खत्म कर डाला है। इस कचरे के कारण नदी अब नाले में तब्दील हो चली है। यदि स्थानीय किसी बाहरी व्यक्ति को यह न बताए तो कि यह नदी है तो एक बारगी भोपाल आने वाला बाहरी इसे नाला ही समझता है। भानपुरा खंती के आस-पास रहने वाले हजारों ग्रामीण त्रस्त हैं। खंती के आस-पास कुल 13 गांव बसे हैं। 45 बरस पहले यह खेती की जमीन हुआ करती थी। इस खेती की जमीन की एक मालिकिन सुंदर बाई ने बताया कि “हमें क्या मालूम था कि हमारी खेती की जमीन (1974 में भोपाल नगर निगम का अधिग्रहण) इस कचरे के पहाड़ को बनाने के लिए ली जा रही है।”
भानपुरा खंती के पास से बहने वाली पात्रा नदी के आस-पास बसे अकेले तेरह गांव ही प्रभावित नहीं हैं। बल्कि इससे बड़ी संख्या में भोपाल के कई मोहल्ले भी प्रभावित हो रहे हैं। इस सम्बन्ध में भोपाल में पर्यावरणीय विषयों पर लगातार लिखने वाले स्वतंत्र पत्रकार देवेंद्र शर्मा बताते हैं “खंती में शहर के आवारा पशुओं की लाशों को ऐसे ही फेंक दिया जाता है। यही नहीं, इस खंती में यूनियन कार्बाइड कांड (2-3 दिसम्बर, 1984) से निकली जहरीली गैस से मरे जानवरों को भी गाड़ दिया गया था। उस समय कई इंसानी लाशों को भी यहीं दफनाया गया था। हालांकि प्रशासन का दावा था कि वे होशंगाबाद ले जाकर दफन कर रहे हैं।”
शर्मा बताते हैं, "पात्रा नदी के खत्म होने की कहानी आज से 45 साल पहले शुरू हो गई थी। जब भानपुरा गांव में 1974 में भोपाल के तत्कालीन नगर निगम आयुक्त एम.एन. बुच ने गांव के ही किसानों की जमीन अधिग्रहण करके एक खंती खुदवाकर यहां कचरा डलवाना शुरू करवाया था। जिनकी जमीनें अधिग्रहण की गईं थीं, उनमें से कम-से-कम आधे दर्जन किसानों को अब तक अपनी जमीन का मुआवजा नहीं मिल पाया है। यह खंती जब खुदवाई गई थी तब तो इसका क्षेत्रफल बहुत छोटा था लेकिन अब यह 84 एकड़ तक फैल चुका है।”
भानपुरा खंती को हटाने के लिए अक्टूबर, 2013 में जनहित याचिका दायर करने वाले पर्यावरणविद सुरेश पांडे ने बताया, राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने 2005 के बाद के पदस्थ सभी नौ निगर निगम आयुक्तों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश जारी किए थे। साथ ही पांच-पांच करोड़ रुपए की पेनाल्टी लगाई थी। वह कहते हैं, “यह हमारा दुर्भाग्य है कि इस खंती के आस-पास रहने वाली आबादी के 90 फीसदी लोग किसी-न-किसी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त हैं। यह आँकड़े सरकारी हैं और वहां लगे स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से निकलकर आया है।”पांडे ने बताया कि मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी कहते हैं कि भानपुरा खंती इलाके में वायु प्रदूषण का स्तर इतना अधिक है कि हमारे प्रदूषण मापक यंत्र ही काम करना बन्द कर देते हैं। भानपुर खंती के संबंध में मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भोपाल के क्षेत्रीय अधिकारी पुष्पेंद्र एस. बुंदेला बताते हैं, “भानपुरा खंती को हटाने की प्रक्रिया एनजीटी के आदेशानुसार दिए गए दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखकर की गई है।