अब इंसान के बालों, मुर्गी और बत्तख के पंखों के कचरे से बनेंगे खाद और चारा

वैज्ञानिकों के मुताबिक इस तरह से बने तरल जैव उर्वरक जो कि बाजार में मौजूद उत्पादों की तुलना में तीन गुना अधिक कारगर हैं
केराटिन कचरा
केराटिन कचरा
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भारतीय वैज्ञानिकों ने इंसान के बाल, ऊन और मुर्गी के पंखों जैसे केराटिन कचरे को उर्वरकों, पालतू जानवरों के चारे में बदलने के लिए एक नया टिकाऊ और किफायती समाधान विकसित किया है। भारत में हर साल बड़ी मात्रा में इंसानी बाल, मुर्गी के पंखों, ऊन के कचरे का उत्पादन होता है। इस अलग-अलग तरह के कचरे को सीधे फेंक दिया जाता है, या मिट्टी में गाड़  दिया जाता है।

क्या होता है केराटिन कचरा यह पर्यावरण को किस तरह प्रदूषित करता है?

केराटिन कचरे को पर्यावरण प्रदूषक माना जाता है और ज्यादातर पोल्ट्री फार्म, बूचड़खानों और चमड़ा, ऊन उद्योगों से उत्पन्न होता है। चमड़ा उद्योग व्यापक मात्रा में अपशिष्ट उत्पादों को फेंक देते हैं जो पर्यावरण में प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग माने जाते हैं। केराटिन कचरे के मुख्य उत्पादक में अमेरिका, चीन, भारत और ब्राजील शामिल हैं जो लाखों टन प्रोटीन युक्त केराटिन कचरे का उत्पादन करते हैं।

देश के कई हिस्सों में केराटिन कचरे को लैंडफिलिंग वाली जगहों पर फेंक दिया जाता है, या जला दिया जाता है। इस सके चलते पर्यावरणीय समस्या, प्रदूषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बढ़ जाता है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि होती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह कूड़ा अमीनो एसिड और प्रोटीन के सस्ते स्रोत हैं, जो पशु चारा और उर्वरक के रूप में उपयोग किए जाने की उनकी क्षमता को पहचानने और उसे बदलने की आवश्यकता पर जोर देता है।

मुंबई के इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी के कुलपति और प्रोफेसर एबी पंडित ने छात्रों के साथ मिलकर केराटिन कचरे को पालतू जानवरों के भोजन और पौधों के लिए उर्वरकों में बदलने के लिए एक तकनीक विकसित की है। यह नई तकनीक पेटेंट, आसानी से मापनीय, पर्यावरण के अनुकूल, ऊर्जा-कुशल है, और यह वर्तमान में बाजार में बिकने वाले उत्पादों की तुलना में अमीनो एसिड युक्त तरल उर्वरकों को अधिक किफायती बनाएगी।

उन्होंने कचरे को बेचने योग्य उर्वरकों और उर्वरकों और पशु आहार में बदलने के लिए उन्नत ऑक्सीकरण का उपयोग किया। इसके पीछे की प्रमुख तकनीक में हाइड्रोडायनेमिक कैविटेशन नामक तकनीक का उपयोग करके केराटिन के हाइड्रोलिसिस के बाद पूर्व-उपचार शामिल है, जिसमें बहते तरल में वाष्पीकरण बबल फॉर्मेशन और बबल इम्प्लोशन बुलबुलों का निर्माण और बुलबुला प्रत्यारोपण शामिल है।

इस तरह के बदलाव के लिए मौजूदा तरीकों में रसायन और भौतिक ऊर्जा का अधिक उपयोग होता है। इसे रासायनिक रूप से भी खतरनाक माजा जाता है और इसमें कई चरण शामिल हैं जिसके परिणामस्वरूप अंतिम उत्पाद बनने में काफी भारी लागत लगती है। जैसा कि टीम द्वारा इसका हिसाब लगाया गया है, इस तकनीक के माध्यम से बड़े पैमाने पर स्थापित संयंत्र में प्रति 1 टन कच्चे माल को संसाधित करने की लागत, बाजार में मौजूदा उत्पाद की तुलना में 3 गुना सस्ती है।

वैज्ञानिक वर्तमान में रेवोल्टेक के सहयोग से इस तकनीक को बड़े पैमाने पर तैयार कर रहे हैं। उत्पादन में हुई इस वृद्धि से तरल जैव उर्वरक जो कि बाजार में मौजूद उत्पादों की तुलना में तीन गुना अधिक कारगर हैं तथा ये किसानों को सस्ती दर पर भी उपलब्ध होंगे।

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