सीवेज निपटान प्रणाली में सुधार और आधुनिकीकरण के लिए अब हाउसिंग सोसायटी और वाणिज्यिक परिसरों को हर हाल में शून्य अपशिष्ट सुनिश्चत करना होगा। इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को भवन निर्माण संबंधी नियमों में आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने जा रही है। इसके बाद यदि कोई इसका उल्लंघन करता हुआ पाया जाएगा तो उस पर जुर्माने के साथ-साथ कानूनी कार्रवाई भी होगी।
ध्यान रहे कि केंद्र सरकार अपने सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए यह महत्वपूर्ण कदम उठाने जा रही है। शून्य अपशिष्ट प्राप्त करने का मतलब है कि अपशिष्ट को कम करना, उसका पुन: उपयोग करना और साथ ही उसे मूल्यवान संसाधनों में परिवर्तित कर शून्य ठोस अपशिष्ट को लैंडफिल में भेजना।
मिली जानकारी के अनुसार केंद्रीय आवास और शहरी मामलों का मंत्रालय मार्च के अंत तक सभी राज्य सरकारों को भवन निर्माण संबंधी नियम कायदों को सुनिश्चित करने के लिए एक निर्देश जारी करेगा। इस संबंध में मंत्रालय के निर्देशों में कहा गया है कि सेप्टिक टैंक डिजाइन में मानक निर्देशों का हर हाल में पालन करना होगा और साथ ही मंत्रालय इस पर भी विचार कर रहा है कि क्यों न मशीनीकृत सफाई वाहनों पर जीएसटी कम कर दिया जाए।
इसके पीछे मंत्रालय की सोच है कि शहरों व कस्बों में नालों की सफाई के लिए सफाई कर्मियों को उसके अंदर नहीं उतरना होगा बल्कि मशीन के माध्यम से ही वे सफाई कर सकेंगे। ध्यान रहे कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2023-24 के अपने बजटीय भाषण में भी इस बात की स्पष्ट रूप से घोषणा की थी कि सभी शहरों और कस्बों के मैनहोल, सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई सौ फीसदी मशीनों के माध्यम से ही करने की व्यवस्था की जाएगी।
मंत्रालय द्वारा जारी होने वाले कुछ अन्य दिशा-निर्देशों के अनुसार नगर पालिकाओं जैसे शहरी स्थानीय निकायों को अपशिष्ट को उर्वरक के रूप में प्रसंस्कृत कर उसके व्यावसायिक उपयोग की संभावना का पता लगाने के लिए भी कहा जाएगा। इसके अलावा सरकार मशीनीकृत सफाई उपकरणों के लिए भारतीय मानकों की भी समीक्षा करेगी और आवासीय व वाणिज्यिक परिसरों के लिए अलग-अलग टैरिफ दरों पर विचार करेगी।
दिशा-निर्दशों के पालन नहीं करने पर केंद्र सरकार कहा राज्यों से कहा गया है कि यदि आवासीय और वाणिज्यकिक परिसर पालन नहीं करते तो उन पर जुर्माने लगाने के बाद कानूनी कार्रवाई करने की बात भी कही है।
केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का अनुमान है कि 2017 के बाद से सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान लगभग 400 सफाई कर्मियों की मौत हो गई। विशेषज्ञों का मानना है कि एक मशीनीकृत सीवेज सिस्टम जब सुनिश्चत हो जाएगा तो मौतों की यह संख्या गायब हो जाएगी। सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने के लिए भी यह महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।
संयुक्त राष्ट्र एसडीजी 6.3 का उद्देश्य 2030 तक अनुपचारित अपशिष्ट जल के अनुपात को आधा करना और विश्व स्तर पर पुनर्चक्रण के उपयोग में वृद्धि करना है। मंत्रालय द्वारा दिए गए 2023 के आंकड़ों के अनुसार भारत वर्तमान में 72,368 मिलियन लीटर प्रति दिन शहरी अपशिष्ट जल उत्पन्न करता है, जिसमें से केवल 28 प्रतिशत का ही उपचार हो पाता है। इसका सीधा सा मतलब है कि 72 प्रतिशत अनुपचारित अपशिष्ट जल नदियों, झीलों या भूजल में बहा दिया जाता है।
द हिंदू में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार रियल एस्टेट सेक्टर ने भी मंत्रालय द्वारा किए जानेवाले दिशा निर्देशों का स्वागत किया है। कन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने कहा कि इन परिवर्तनों को शहरी स्थानीय निकायों को उनके सीवरेज और उपचार के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के में किया जा सकता है। एसोसिएशन का कहना है कि हमने अपने सदस्यों को अपनी परियोजनाओं में ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन इकाइयां स्थापित करने के लिए भी कहा है। इसी का नतीजा है कि कुछ डेवलपर अपने प्रोजेक्ट परिसर में अब सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) भी स्थापित कर रहे हैं।
हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स मिनिस्ट्री की 2021 की रिपोर्ट “सर्कुलर इकोनॉमी इन म्युनिसिपल सॉलिड एंड लिक्विड वेस्ट” के अनुसार यदि ट्रीटेड सीवेज की बिक्री को एक संस्थागत रूप प्रदान किया जाए तो देश की अर्थव्यवस्था को भी इससे बढ़ावा मिल सकता है। एक सतही अनुमान है कि इसमें सालाना 3,285 करोड़ रुपए की आय संभव है।