
भोपाल गैस त्रासदी के लगभग चार दशक बाद गत एक जनवरी को यूनियन कार्बाइड कारखाने से करीब 377 टन जहरीला अपशिष्ट निपटान के लिए भोपाल से 250 किलोमीटर दूर धार जिले के पीथमपुरा औद्योगिक क्षेत्र में भेजा गया है, लेकिन इस जहरीले कचरे के पीथमपुरा में निपटान के खिलाफ क्षेत्र के स्थानीय लोगों ने बड़े पैमाने पर गत 29 दिसंबर से लगातार विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं।
इंदौर से पीथमपुर की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है। पीथमपुरा में विरोध के स्वर इतने तेज हो गए हैं कि इसके विरोध में आज स्थानीय लोगों ने एक बड़ी रैली का आयोजन किया और कल पीथमपुर को बंद करने की घोषणा की है।
यहां तक कि इस कचरे के जलाने के विरोध में इंदौर स्थित महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज एलुमनाई के अध्यक्ष डॉ संजय लोंढें न्यायालय जा पहुंचे और एक याचिका दायर की है। इसमें उनका कहना है कि जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में अमेरिका के गिराए बमों का अब तक विपरीत असर दिखाई दे रहा है।
यदि भोपाल गैस कांड का कचरा पीथमपुर में जला तो आसपास के क्षेत्र में अगले सौ साल तक विपरीत असर रहेगा। सरकार की इस कार्रवाई के खिलाफ अकेले पीथमपुर के लोग ही विरोध प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं, बल्कि इस प्रकार से एक स्थान से कचरा उठा कर दूसरे स्थान पर डालने के विरोध में देश के अलग-अलग हिस्सों में लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहा है।
उदाहरण के लिए गुजरात के अहमदाबाद के पिराना गांव में बने कचरे के पहाड़ का कचरा धीरे-धीरे शहर के बाहरी इलाकों में डंप किया जा रहा है। इसके चलते जिन इलाकों में यहां का कचरा डंप किया जा रहा है, वहां के स्थानीय लोगों ने भी विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है।
इस संबंध में पिराना कचरा डंपिंग को लेकर अहमदाबाद उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने वाले इंसाफ फाउंडेशन के अध्यक्ष कमाल सिद्दीकी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि न्यायालय का फैसला आया कि इस कचरे के पहाड़ को यहां से हटाया जाए।
चूंकि उस समय कोरोना शुरू हो गया था, इसलिए उस फैसले का कार्यान्वयन पिछले साल शुरू हुआ। अब तक पहाड़ का चालीस फीसदी कचरा शहर के बाहरी इलाके जैसे बोपल, चिलोम और गयासपुर इलाके में भेजा जा चुका है। लेकिन अब वहां के स्थानीय लोगों ने इस कचरे के डंपिंग का जमकर विरोध कर रहे हैं।
सिद्दीकी का कहना है कि चूंकि इस प्रकार के विरोध प्रदर्शन का असर सरकार पर बहुत अधिक नहीं पड़ता तो सरकार इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। एक स्थान से कचरा उठा कर दूसरे स्थान पर डालने के सरकारी रवैये पर उनका कहना था कि मैंने पिछले दिसंबर माह 2024 में नगर निगम में इस बाबत एक अर्जी लगाई थी कि यह तो सरासर गलत बात है कि आप एक स्थान से कचरा उठा कर दूसरे स्थान पर डालकर अपने कर्तव्य से इतिश्री कर ले रहे हैं, यह तो सरासर गलत है।
उनका कहना था कि अब तक उनकी अर्जी पर निगम ने कोई उत्तर नहीं दिया है। उनका कहना था कि हम इस संबंध में एक हफ्ते और इंतजार के बाद यह मामला अदालत में ले जाएंगे।
ध्यान रहे कि गुजरात के कचरा प्रबंधन पर एनजीटी ने भी नवंबर 2024 में कमियां गिनाई थी। एनजीटी ने राज्य सरकार की ओर से पेश की गई प्रगति रिपोर्ट में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कई गलत कदमों का जिक्र किया है।
यहां तक कि राज्य सरकार पर 2023 में अपशिष्ट प्रबंधन में कमियों के चलते 2100 करोड़ रुपए का जुर्माना तक लगाया था। एनजीटी ने अकेले गुजरात पर ही नहीं, ओडिशा सरकार पर भी गलत अपशिष्ट प्रबंधन पर जुर्माना लगाया था और उनके कचरा निपटान प्रक्रिया की कई कमियों को गिनाया था। हालांकि राज्य सरकार की ओर से शपथ पत्र दिए जाने के बाद से उस पर लगाए गए जुर्माने को टाल दिया था।
कचरे के पहाड़ के मामले में तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में एक नहीं दो-दो कचरे के पहाड़ हैं। पहला पेरुंगुडी और दूसरा पल्लीकरनई। इन दोनों कचरे के पहाड़ों के खिलाफ स्थानीय निवासियों द्वारा लगातार विरोध प्रदर्शन किया जाता रहा है।
हाल ही में गत 25 दिसंबर 2024 को तो पेरुंगुडी के स्थानीन निवासियों ने इस बात का विरोध किया कि उनके यहां के कचरे के पहाड़ से जो ऊर्जा परियोजना शुरू की जा रही है, उसे तुरंत बंद कर दिया जाए नहीं तो हमारा विरोध और तेज होगा।
पल्लीकरनई निवासियों की रेजीडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन इस योजना को इसलिए बंद करने का विरोध कर रही है, क्योंकि यहां की दलदली भूमि एक रामसर साइट है। अपशिष्ट से ऊर्जा निर्माण परियोजना के कारण यहां की दलदली भूमि के विविध परिस्थतिकी तंत्र पर गलत प्रभाव पड़ेगा। क्योंकि इस इलाके में यह वेटलैंड शहर में बाढ़ की रोकथाम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
आरडब्ल्यूए का कहना है कि अपशिष्ट से ऊर्जा परियोजना से साइट के पास 6 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले निवासियों पर असर पड़ने की संभावना है। यदि अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्र चालू हो जाता है तो स्थिति और खराब हो सकती है।
इसके अलावा देश में नागपुर का भंडेवाड़ी डंपिंया यार्ड, बंगलूरु में मंदूर डंपिंग यार्ड, मुंबई मुलंड डंपिंग यार्ड सहित दिल्ली के तीन-तीन कचरे के पहाड़, जहां स्थानीय लोग आए दिन विरोध-प्रदर्शन करते हैं। देश में प्रतिवर्ष लगभग 277 अरब किलो कचरा निकलता है। प्रति व्यक्ति लगभग 205 किलो कचरा निकालता है।