डाउन टू अर्थ मल्टीमीडिया टीम ने भारतीय पत्रकारिता में सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक रामनाथ गोयनका पुरस्कार जीता है। टीम को 'ब्रॉडकास्ट डिजिटल' श्रेणी में पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी रिपोर्टिंग के लिए प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका उत्कृष्टता पत्रकारिता पुरस्कार, 2022 से सम्मानित किया गया।
यह पुरस्कार डाउन टू अर्थ द्वारा तैयार की गई नौ कड़ियों की एक श्रृंखला द क्लीनिस्ट सिटीज ऑफ इंडिया (भारत के सबसे स्वच्छ शहर) के लिए दिया गया। इन नौ कड़ियों में देश के ऐसे नौ शहरों को दिखाया गया, जिन्होंने अनुकरणीय और अद्वितीय ठोस अपशिष्ट प्रबंधन रणनीतियों को अपनाया, जिससे पुराने कचरे के बोझ को कम करने और नगरपालिका ठोस कचरे के संग्रह, पृथक्करण और उपचार को सुव्यवस्थित करने में मदद मिली।
'द क्लीनिस्ट सिटीज ऑफ इंडिया' डॉक्यूमेंट्री की शुरुआत कचरा प्रबंधन के 9 विषयगत क्षेत्रों और इनमें से प्रत्येक विषय के अंतर्गत आने वाले मॉडल शहरों की पहचान और दस्तावेजीकरण के साथ किया गया। इन नौ शहरों में इंदौर-मध्य प्रदेश, कराड-महाराष्ट्र, मैसूरु-कर्नाटक, कुंभकोणम-तमिलनाडु, जमशेदपुर (झारखंड), मुंबई (महाराष्ट्र), भोपाल (मध्य प्रदेश), काकीनाडा (आंध्र प्रदेश), पारादीप (ओडिशा), ढेंकनाल (ओडिशा) शामिल थे।
भारतीय शहरों में बड़ी आबादी रहने लगी है। 35 प्रतिशत लोग अब शहरों में रहते हैं, जो 2001 में 28 प्रतिशत थे। वर्तमान में शहरी भारत सालाना लगभग 65 मिलियन टन नगरपालिका ठोस कचरा उत्पन्न करता है। अनुमान है कि 2030 तक यह मात्रा बढ़कर 165 मिलियन टन हो जाएगी। लेकिन एक अच्छी खबर है कि भारत की ठोस अपशिष्ट प्रबंधन रणनीति अब कचरे को इकट्ठा करना और पुन: उपयोग के लिए डिजाइन की गई है। यह वास्तव में चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर एक दृष्टिकोण है।
यह नीति और व्यवहार को और भी अधिक पर्यावरण-अनुकूल बनाएगा, क्योंकि इसमें सामग्रियों के पूर्ण पुन: उपयोग की आवश्यकता होगी और कोई बर्बादी नहीं होगी। देश भर के 28 शहर इस नई डिजाइन की गई रणनीति का पालन कर रहे हैं।
ये शहर सीखने की प्रयोगशाला हैं और लोगों तक पहुंचने के लिए उनकी सफलता की कहानी को सुनने, देखने और प्रदर्शित करने की जरूरत है। यह डॉक्यू-सीरीज़ 9 ऐसे शहरों को 9 अलग-अलग थीम के साथ प्रदर्शित करती है। अन्य शहरों को अपने अपशिष्ट प्रबंधन के भविष्य को एक नई दिशा देने में मदद करने के लिए इन मॉडलों को दोहराने की आवश्यकता है।
चुनौतियां
इस प्रकार के प्री-प्रोडक्शन रिसर्च एक लंबी और कठिन प्रक्रिया से होकर गुजरते हैं। खासकर इसलिए क्योंकि यह डॉक्यूमेंट्री अपनी तरह की पहली थी और टीम को यह सत्यापित करना था कि कचरे का प्रबंधन टिकाऊ होने पर इनमें से प्रत्येक शहर आचार संहिता का पालन कर रहा है या नहीं। टीम ने इस प्रक्रिया में शामिल सभी साइटों का दौरा किया, लैंडफिल से लेकर उन दुकानों तक जहां खाद बेची जाती है।
इसके बाद देश के विभिन्न हिस्सों की व्यापक यात्रा की गई और प्रत्येक शहर में शामिल विभिन्न हितधारकों से मुलाकात की गई। उस अवधि के दौरान भी कोविड-19 प्रतिबंध लागू थे, जिससे प्रोडक्शन और धीमा हो गया। मल्टीमीडिया टीम को 3 महीने की अवधि के भीतर 9 वीडियो की योजना बनाना, यात्रा करना, शूट करना, संपादित करना और पैकेज करना था।
देश में 7,000 से अधिक कस्बे और शहर हैं। शहरी भारत में सालाना लगभग 42.0 मिलियन टन नगरपालिका ठोस कचरा पैदा होता है यानी 1.15 लाख मीट्रिक टन प्रति दिन (टीपीडी), जिसमें से 83,378 टीपीडी 423 श्रेणी-I शहरों में उत्पन्न होता है।
इसके बावजूद, भारत में अपशिष्ट प्रबंधन अभी भी शुरुआती चरण में है और इसे रहस्य से मुक्त करने की आवश्यकता है। हमने अधिकांश प्रमुख विषयों को कवर करके ऐसा करने का प्रयास किया है। चूंकि अपशिष्ट व्यापक रूप से समझा जाने वाला विषय नहीं है, इसलिए ऐसी श्रृंखला को पैकेज करना और इसे आकर्षक बनाना और भी कठिन है। इन बाधाओं के बावजूद, श्रृंखला को एक वर्ष में लगभग 10 लाख बार देखा गया है।
इससे पहले इस वीडियो सीरीज को दुनिया भर के विभिन्न फिल्म समारोहों और कार्यशालाओं में भी मान्यता मिली है, जिसमें सीएमएस वातावरन फिल्म फेस्टिवल और वसुंधरा किर्लोस्कर फिल्म फेस्टिवल शामिल हैं।
इस डॉक्यूमेंट्री में जमशेदपुर के ई-कचरा प्रबंधन पर बनी फिल्म को 15 दिसंबर 2022 को मेगासिटीज शॉर्टडॉक्स फिल्म फेस्टिवल, पेरिस में शहरी जलवायु संकट पुरस्कार मिला था। भोपाल वेस्टलैंड रिक्लमेशन फिल्म को 2023 में अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान फिल्म महोत्सव में मानद ट्रॉफी मिली।