
शहरों से निकलने वाले गंदे पानी व सीवेज में से केवल 20,236 मिलियन लीटर रोजाना (28 प्रतिशत) का ही उपचार किया जा रहा है, बाकी 72 प्रतिशत गंदा पानी बिना उपचार के नदियों, झीलों और खाली जगहों पर बह रहा है। यदि इस पानी का भी उपचार करके दोबारा से इस्तेमाल किया जाए तो भारत के शहरी जल संकट को काफी हद तक काबू किया जा सकता है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा आज जारी रिपोर्ट "वेस्ट टू वर्थ: मैनेजिंग इंडियाज अर्बन वाटर क्राइसिस थ्रू वेस्टवाटर रीयूज" में यह बात कही गई है।
इस मौके पर सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा, "भारत तेजी से शहरीकरण, औद्योगिक विकास, जनसंख्या विस्तार और जलवायु परिवर्तन के कारण पानी के संकट का सामना कर रहा है। अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग इन चिंताओं को दूर करने और जल चक्रीयता और स्थिरता को बढ़ावा देने की रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है।"
यह रिपोर्ट भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के तहत सीएसई और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित एक राष्ट्रीय कार्यशाला में जारी की गई।
रिपोर्ट जारी करने के अवसर पर एनएमसीजी के महानिदेशक राजीव मित्तल ने कहा, “संसाधित जल का उपयोग और निपटान, इसकी क्षमता का दोहन किए बिना का मतलब है कि हम एक महत्वपूर्ण संसाधन का उपयोग करने से वंचित हो रहे हैं। चुनौती यह है कि हम इस क्षेत्र में जो काम कर रहे हैं, उसका विस्तार करें और सुनिश्चित करें कि वह प्रभावशाली हो।
जल शक्ति मंत्रालय का निर्देश है कि शहरों को अपने द्वारा उपयोग किए जाने वाले पानी का कम से कम 20 प्रतिशत पानी पुनर्चक्रित और पुनः उपयोग करना चाहिए। सीएसई के जल कार्यक्रम के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक सुब्रत चक्रवर्ती कहते हैं, “यह इस सोच के अनुरूप है कि एक सतत और जलवायु-सुचिंतित भविष्य को प्राप्त करने और मीठे पानी की लगातार बढ़ती मांग के प्रबंधन के लिए एक चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना आवश्यक है।”
सीएसई की रिपोर्ट बताती है कि सीवेज जल और उसके उपचार में अंतर उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक है, उसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, दिल्ली और हरियाणा (इसी क्रम में) हैं।
चक्रवर्ती कहते हैं, “इसके बावजूद, रिपोर्ट में अच्छे उदाहरणों पर भी प्रकाश डाला गया है। ऐसे राज्यों के मामले जिन्होंने उपचारित अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियां पेश की हैं।”
उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र ने शहरी क्षेत्रों में उद्योगों को उपचारित अपशिष्ट जल का उपयोग करना अनिवार्य कर दिया है। गुजरात ने कृषि और उद्योग में अनुप्रयोगों के साथ 100 प्रतिशत पुन: उपयोग का लक्ष्य रखा है, और तमिलनाडु ने औद्योगिक और शहरी हरियाली परियोजनाओं के लिए पुन: उपयोग को बढ़ावा दिया है।
राष्ट्रीय शहरी स्वच्छता नीति (एनयूएसपी) और नमामि गंगे कार्यक्रम जल सुरक्षा पहलों के प्रमुख घटकों के रूप में अपशिष्ट जल प्रबंधन और पुन: उपयोग पर जोर देते हैं।
नागपुर, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे शहरों ने अपशिष्ट जल पुन: उपयोग प्रथाओं को लागू करने में अग्रणी भूमिका निभाई है। नागपुर बिजली संयंत्रों को उपचारित अपशिष्ट जल की आपूर्ति करता है, जिससे मीठे पानी का उपयोग काफी कम हो जाता है, जबकि बेंगलुरु इसका उपयोग कृषि, झील पुनरुद्धार और भूजल पुनर्भरण के लिए करता है। चेन्नई ने औद्योगिक अनुप्रयोगों, शहरी भूनिर्माण और भूजल पुनर्भरण के लिए उपचारित अपशिष्ट जल को उपयोग में लाया है।
इस अवसर पर सीएसई में जल कार्यक्रम प्रबंधक सुमिता सिंघल ने कहा, “अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग को बढ़ावा देने में कई चुनौतियां हैं, जिनमें सीवेज उपचार और वितरण में बुनियादी ढांचे की कमी, पुनः उपयोग मानकों को पूरा करने के लिए गुणवत्ता आश्वासन, सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण सार्वजनिक प्रतिरोध और उपचार सुविधाओं की उच्च परिचालन लागत शामिल हैं।”
वह आगे कहती हैं, “आंकड़ों से पता चलता है कि 28 प्रतिशत (20,236 एमएलडी) उपचारित जल पुनः उपयोग के लिए तुरंत उपलब्ध है। शहरी नियोजन और औद्योगिक आवश्यकताओं के साथ नीतियों को संरेखित करने के अलावा, विकेंद्रीकृत और लागत प्रभावी उपचार प्रौद्योगिकियों में प्रगति से बुनियादी ढाँचे की कमी को दूर किया जा सकता है।”