जब 2.85 लाख आंगनबाड़ी केंद्रों और 38 हजार स्कूलों में नहीं है शौचालय तो कैसे खुले में शौच मुक्त हुआ भारत!

एक तरफ जहां देश कोविड-19 महामारी से जूझ रहा है वहीं बड़े दुःख की बात है कि अभी भी 285,103 स्कूलों में हाथ धोने की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध नहीं है
जब 2.85 लाख आंगनबाड़ी केंद्रों और 38 हजार स्कूलों में नहीं है शौचालय तो कैसे खुले में शौच मुक्त हुआ भारत!
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एक और स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि देश में 35 राज्य और केन्द्र-शासित प्रदेश, 711 जिले और 6 लाख से ज्यादा गांव खुले में शौच की प्रथा से मुक्त हो चुके हैं। सरकार का भी दावा है कि भारत दो अक्टूबर 2019 में पूरी तरह खुले में शौच से मुक्त हो चुका है, लेकिन दूसरी ओर सरकार ने राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए बताया कि 2.86 लाख आंगनबाड़ियों और 38,408 सरकारी स्कूलों में शौचालय का चालू हालत में नहीं हैं।

राज्यसभा में श्रीमती वंदना चव्हाण द्वारा पूछे प्रश्न के जवाब में केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने बताया कि महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 53,496 आंगनबाड़ियों में शौचालय सुविधा का अभाव है, जबकि उड़ीसा की 40,444, राजस्थान में 29,098, असम में 22,819, पश्चिम बंगाल में 20,884, तेलंगाना में 18,072, आंध्रप्रदेश में 14,731, कर्नाटक में 13,518, उत्तर प्रदेश में 12,891 और झारखंड के 12,883 आंगनबाड़ी केंद्रों में शौचालय उपलब्ध नहीं हैं। 

इसके अलावा तमिलनाडु की 7,899, मणिपुर में 6,493, अरुणाचल प्रदेश में 5,767, जम्मू और कश्मीर में 4,596, छत्तीसगढ में 4,151, उत्तराखंड में 3,594, मध्य प्रदेश में 3,117, हरियाणा में 2,613, पंजाब में 2,536, नागालैंड में 2,326, त्रिपुरा में 1,639, गुजरात में 1,562, केरल में 353, मेघालय में 309, मिजोरम में 189, हिमाचल प्रदेश में 155, पुदुचेरी में 75, लद्दाख में 51, अंडमान निकोबार द्वीप समूह में 46, सिक्किम में 2 और दिल्ली की एक आंगनबाड़ी में शौचालय नहीं हैं।

स्कूलों में भी शौचालय नहीं 

जल शक्ति मंत्री द्वारा दिए उत्तर से यह भी पता चला है कि देश में 38,408 स्कूलों में शौचालय उपयोग के लायक नहीं हैं। इतना ही नहीं 285,103 विद्यालयों में हाथ धोने की सुविधा उपलब्ध नहीं है। वहीं जल शक्ति राज्य मंत्री के अनुसार देश में 650,481 स्कूल अपनी पीने की पानी की जरुरत को पूरा करने के लिए अभी भी हैंडपंप पर निर्भर हैं। वहीं 415,102 स्कूलों में नल जल सुविधा उपलब्ध है। 

जहां 82,708 स्कूल अपनी पानी की जरूरतों के लिए सुरक्षित कुओं का पानी उपयोग कर रहे हैं, जबकि आजादी के इतने साल बाद अभी भी 61,627 स्कूल अपनी जल सम्बन्धी जरुरतों को पूरा करने के लिए असुरक्षित कुओं पर निर्भर हैं। आंकड़ों में यह भी सामने आया है कि 68,374 स्कूल अपनी पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पैकेज्ड या बोतल बंद पानी पर निर्भर हैं जबकि 174,632 विद्यालय अपनी जल सम्बन्धी जरूरतों के लिए अन्य स्रोतों पर निर्भर हैं।

जल शक्ति राज्य मंत्री ने सदन को यह भी जानकारी दी है कि 2021-22 के दौरान स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में जल गुणवत्ता की जांच के लिए 47,022 परीक्षण किए गए थे, जिसके लिए फील्ड टेस्ट किटों (एफटीके ) का उपयोग किया गया था। गौरतलब है कि 2 अक्टूबर, 2020 को जल जीवन मिशन के तहत ग्रामीण भारत के सभी स्कूलों, आंगनवाड़ी केंद्रों, आदिवासी आवासीय विद्यालयों में पाइप के जरिए पीने योग्य जल उपलब्ध कराने के लिए एक विशेष अभियान की शुरुआत की थी ताकि स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए ज्यादा से ज्यादा बच्चों के लिए सुरक्षित पानी और स्वच्छता सम्बन्धी सुविधाएं की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके।

इतना ही नहीं जल शक्ति राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल द्वारा एक अन्य प्रश्न के जवाब में दिए उत्तर से पता चला है कि देश में 44.7 फीसदी घरों में नल जल की सुविधा उपलब्ध है, जबकि 02 दिसंबर 2021 के लिए जारी आंकड़ों के मुताबिक अभी भी 55.3 फीसदी ग्रामीण घरों में अभी भी नल जल की सुविधा उपलब्ध नहीं है। 

साझा की गई जानकारी के अनुसार जब जल जीवन मिशन की घोषणा की गई थी उस समय 18.93 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से 3.23 करोड़ (17 फीसदी) ग्रामीण घरों में नल जल की सुविधा उपलब्ध थी। तब से लेकर अब तक पिछले 27 महीनों में करीब 5.36 करोड़ ग्रामीण घरों (27.9 फीसदी) को नल जल की सुविधा उपलब्ध कराई गई है।  

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