आज जब सारी दुनिया कोरोना के असर से जूझ रही है ऐसे में यूनिसेफ द्वारा जारी नई रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्डस हैंड हाइजीन’ से पता चला है कि 10 में से 3 लोगों के पास हाथ धोने के लिए पर्याप्त सुविधा नहीं है। अनुमान है कि इनकी कुल आबादी करीब 230 करोड़ है, इन लोगों के पास घर पर हाथ धोने के लिए पर्याप्त पानी और साबुन उपलब्ध नहीं है।
यही नहीं रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि 2020 में करीब 81.8 करोड़ बच्चों के स्कूल में साबुन और पानी से हाथ धोने की पर्याप्त सुविधा नहीं है। यही नहीं 3 में से एक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में उन स्थानों पर हाथ धोने की पर्याप्त सुविधा नहीं है जहां वे स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करते हैं। ऐसे में संक्रमण और बीमारियों के फैलने का जोखिम बना रहता है।
स्थिति कितनी बदतर है इसका अनुमान आप इसी बात से लगा सकते हैं कि करीब 200 करोड़ लोग उन स्वास्थ्य देखभाल सम्बन्धी सुविधाओं पर निर्भर हैं, जिनके पास बुनियादी जल सेवाएं भी नहीं हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि संक्रमण और बीमारियों को फैलने से रोकने के लिए सफाई से हाथ धोना अत्यंत जरुरी है। यह सामान्य सा दिखने वाला काम लाखों जिंदगियों को बचा सकता है। वहीं कोविड-19 महामारी के दौरान हाथों की पर्याप्त स्वच्छता, इस महामारी को रोकने की रणनीति का एक अहम हिस्सा बन चुकी है।
हालांकि अभी भी दुनिया में करोड़ों लोगों के पास इससे जुड़ी पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। यूनिसेफ का अनुमान है कि यदि इस क्षेत्र में जिस रफ्तार से प्रगति हो रही है यदि वो दर भविष्य में भी जारी रहती है तो 2030 में करीब 190 करोड़ लोगों के पास उनके घर में हाथ धोने की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध नहीं होगी। अनुमान है कि इस दर पर 2030 तक केवल 78 फीसदी लोगों को ही हाथ धोने की पर्याप्त सुविधा मिल सकेगी, जिसका मतलब है कि करीब 22 फीसदी लोग इससे वंचित रह जाएंगें।
यह रिपोर्ट दुनिया में हाथों की साफ-सफाई और स्वच्छता की जो वर्तमान स्थिति है उसे रेखांकित करती है। यही नहीं सरकारें, समुदाय, संगठन और व्यक्तिगत स्तर पर इस स्थिति में कैसे बदलाव कर सकते हैं, इसपर भी प्रकाश डाला गया है। रिपोर्ट की मानें तो हाथों की साफ-सफाई और स्वच्छता पर यदि प्रति व्यक्ति हर वर्ष एक डॉलर (75.35 रुपए) का निवेश किया जाता है तो उससे लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है।
हाथों की साफ सफाई पर किया गया एक डॉलर का निवेश देगा 15 डॉलर का लाभ
रिपोर्ट का कहना है कि यदि वैश्विक स्तर पर हर वर्ष प्रति व्यक्ति एक डॉलर का निवेश किया जाए तो उसकी मदद से दुनिया के सबसे कमजोर 46 देशों में 2030 तक सभी घरों में हाथ धोने की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध कराई जा सकती है। अनुमान है कि इसपर करीब 82,880 करोड़ रुपए का खर्च आएगा।
यह न निवेश न केवल कोविड-19 महामारी के खिलाफ जंग में मददगार होगा, जिससे अब तक करीब दुनिया भर में करीब 49.2 लाख लोगों की जान जा चुकी है। यही नहीं यदि हाथ धोने और साफ-सफाई पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए तो उससे डायरिया सम्बन्धी रोगों को 30 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
इसी तरह इसकी मदद से सांस सम्बन्धी गंभीर संक्रमण को करीब 20 फीसदी तक कम किया जा सकता है। यही नहीं यह एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स (रोगाणुरोधी प्रतिरोध) को भी कम करने में मददगार हो सकता है। हाथ धोने के यदि फायदों को आंका जाए तो इसपर निवेश किया गया एक डॉलर करीब 15 डॉलर का लाभ देगा। ऐसे में न केवल सरकार और नीति निर्माताओं को इस पर ध्यान देने की जरुरत है साथ ही व्यक्तिगत स्तर पर भी इस समस्या पर गंभीरता से सोचने की जरुरत है।