कैसे प्लास्टिक कचरे से निपटने में मददगार हो सकते हैं केले के छिलके?

शोधकर्ताओं का दावा है कि केले के छिलके का उपयोग बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग सामग्री बनाने के लिए किया जा सकता है, जो प्लास्टिक की जगह ले सकती है
केला करीब-करीब पूरी दुनिया में बड़े चाव से खाया जाता है। इसकी सालाना प्रति व्यक्ति औसत खपत 12 किलोग्राम है; फोटो: आईस्टॉक
केला करीब-करीब पूरी दुनिया में बड़े चाव से खाया जाता है। इसकी सालाना प्रति व्यक्ति औसत खपत 12 किलोग्राम है; फोटो: आईस्टॉक
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हम में से बहुत से लोग तकरीबन रोजाना केले का सेवन करते हैं, लेकिन इस स्वादिष्ट फल को खाने के बाद इसका छिलका कचरे में फेंक दिया जाता है। ऐसे में कितना अच्छा हो अगर हमें इस छिलके का कोई ऐसा उपयोग मिल जाए जो इस कचरे को कम करने के साथ-साथ बढ़ते प्लास्टिक की समस्या से निपटने में भी मदद कर सके। 

केला एक बेहद लोकप्रिय फल है, जिसे करीब-करीब पूरी दुनिया में बड़े चाव से खाया जाता है। इसकी हर साल प्रति व्यक्ति औसत खपत 12 किलोग्राम है। आज दुनिया के 150 देशों में केले की 1,000 से ज्यादा किस्में उगाई जाती हैं।

उत्पादन की बात करें तो यह, धान, गेहूं और मक्का के बाद दुनिया में चौथी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली खाद्य फसल है। 2010 से 2020 के बीच देखें तो इसके उत्पादन में 16 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है, जिसके बाद 2022 में इसकी सालाना पैदावार बढ़कर 13.5 करोड़ टन के पार पहुंच गई है। केले का सबसे ज्यादा उत्पादन भारत में होता है। आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि देश में सालाना तीन करोड़ टन से ज्यादा केला पैदा होता है।

अब आप सोच रहे होंगें कि इस फल के उत्पादन और लोकप्रियता का बढ़ते प्लास्टिक कचरे की समस्या से निपटने के बीच क्या संबंध है। तो बता दें कि वैज्ञानिकों का दावा है कि केले के छिलकों की मदद से पैकेजिंग के लिए उपयोग होने वाली बायोडिग्रेडेबल फिल्में बनाई जा सकती हैं, जो जीवाश्म ईंधन से बने प्लास्टिक के पैकजिंग मैटेरियल की जगह ले सकती हैं।

इस बारे में साउथ डकोटा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा एक अध्ययन किया गया है, जिसके नतीजे जर्नल सस्टेनेबल केमिस्ट्री एंड फार्मेसी में प्रकाशित हुए हैं। बता दें कि पिछले कई वर्षों से अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता श्रीनिवास जनास्वामी और उनके सहयोगी इस बात पर शोध कर रहे हैं कि कैसे केले और एवोकैडो के छिलकों जैसे विभिन्न कृषि उपोत्पादों का उपयोग बायोडिग्रेडेबल फिल्म जैसी पैकेजिंग सामग्री बनाने के लिए किया जा सकता है, जो प्लास्टिक की जगह ले सकें।

आज बड़े पैमाने पर पैकेजिंग के लिए पेट्रोलियम-आधारित प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है। लेकिन इसके साथ सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक इसका लम्बे समय तक पर्यावरण में बने रहना है।

साल दर साल विकराल रूप ले रहा है प्लास्टिक रूपी 'दैत्य'

उदाहरण के लिए किसी प्लास्टिक बैग को विघटित होने में 20 वर्षों तक का समय लगता है। वहीं नॉन-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक को तो वातावरण में घुलने में 700 से ज्यादा वर्षों का समय लग सकता है। साथ ही विघटन के साथ इस प्लास्टिक से कई हानिकारक केमिकल भी वातावरण में मुक्त होते हैं जो स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा हैं।

मौजूदा आंकड़ों को देखें तो वर्तमान में बहुत कम प्लास्टिक को रीसायकल किया जाता है, इसका अधिकांश हिस्सा ऐसे ही लैंडफिल में चला जाता है या ऐसे ही खुले वातावरण में फेंक दिया जाता है। यह प्लास्टिक, माइक्रोप्लास्टिक के रूप में टूट कर स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर समस्या पैदा कर रहा है।

ऐसे में वैज्ञानिक लगातार प्लास्टिक के ऐसे विकल्पों की खोज करने में लगे हैं जो प्लास्टिक की तरह ही टिकाऊ होने के साथ-साथ तेजी से विघटित होने के काबिल हों। इससे मौजूदा प्लास्टिक संकट से निपटने में काफी मदद मिलेगी।

जनस्वामी का कहना है कि “आम तौर पर, प्लास्टिक आसानी से नहीं टूटता, जो स्वास्थ्य के साथ पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है। ऐसे में हमें बेहतर विकल्प खोजने की जरूरत है।“ उनके मुताबिक केले के छिलके इसके एक अच्छे और सस्ते विकल्प के रूप में सामने आए हैं।

आंकड़ों की माने तो केले दुनिया में सबसे ज्यादा उगाए जाने वाले फलों में से एक हैं, जो भारी मात्रा में उपोत्पाद भी पैदा करते हैं। अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में, केले के प्रति 2.5 एकड़ बागान में करीब 220 टन अवशेष पैदा आता है। केले के इस अवशेष मुख्य रूप से लिग्नोसेल्युलोसिक का बना होता है, जो बायोडिग्रेडेबल फिल्म बनाने का प्रमुख घटक है।       

जनस्वामी के मुताबिक जैविक कचरे के रूप में यह लिग्नोसेल्युलोसिक युक्त बची सामग्री बायोप्लास्टिक्स बनाने के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकती है क्योंकि यह हल्की और मजबूत होने के साथ-साथ आसानी से विघटित हो सकती है। साथ ही इसमें हानिकारक केमिकल नहीं होते जिस वजह से यह सुरक्षित भी होती है। उनके अनुसार चूंकि केले के छिलकों को आमतौर पर फेंक दिया जाता है, इसलिए इस उद्देश्य के लिए यह एक बढ़िया विकल्प है।      

अध्ययन के अनुसार हर साल तकरीबन 3.6 करोड़ टन केले के छिलके पैदा होते हैं, जिनमें से अधिकांश को कचरे में फेंक दिया जाता है। बता दें कि न केवल घरों में बल्कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों जैसे चिप्स, आटा, जूस, जैम, शिशु आहार और केले से बने अन्य उत्पादों का निर्माण करते समय भी बड़ी मात्रा में केले के छिलके को लैंडफिल में फेंक दिया जाता है।

ऐसे में इनका बेहतर उपयोग न केवल कृषि के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद होगा। साथ ही वो बढ़ते कचरे को कम करने में भी मदद करेगा। शोधकर्ताओं के मुताबिक जिस तरह से केले के उत्पादन बढ़ रहा है उसको देखते हुए लगता है कि इसमें होती यह वृद्धि अगले दशक भी जारी रह सकती है। इसके साथ ही पैकेट बंद और प्रोसेस्ड फ़ूड की बढ़ती मांग के चलते प्लास्टिक से बने पैकेजिंग मैटेरियल की आवश्यकता भी बढ़ने की आशंका है।

छिलके से 'प्लास्टिक' तक का सफर

सरल शब्दों में कहें तो इस समस्या से निपटने के लिए प्लास्टिक के पर्यावरण अनुकूल विकल्प की सख्त जरूरत है। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि कैसे केले के छिलकों का उपयोग बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग सामग्री बनाने के लिए किया जा सकता है।

यह कुछ ऐसा है जो एक दिन खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग के लिए पेट्रोलियम से बने प्लास्टिक की जगह ले सकता है। इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने केले के छिलकों को चोकर में बदल दिया, फिर उन्होंने इस पाउडर से फाइबर निकालने के लिए एक रासायनिक प्रक्रिया की मदद ली, जिससे उन्होंने लिग्नोसेल्यूलोसिक सामग्री को अलग कर लिया।

इन निकाले गए रेशों को ब्लीचिंग, डिस्टिलिंग जैसी प्रक्रियाओं की मदद से एक पतली फिल्म में बदल दिया गया। इस फिल्म के सूखने के बाद, शोधकर्ताओं ने इसके गुणों की जांच की।

इसके बारे में जनस्वामी का कहना है कि, "यह फिल्म मजबूत होने के साथ-साथ पारदर्शी भी थी। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि मिट्टी में 21 फीसदी नमी होने पर यह फिल्म 30 दिनों में विघटित हो जाती है।" उनकी इस खोज से पता चलता है कि केले के छिलके और अन्य फलों को प्रोसेस करने के बाद बचे उपोत्पादों का उपयोग पर्यावरण-अनुकूल पैकेजिंग सामग्री बनाने के लिए किया जा सकता है, जो एक दिन प्लास्टिक की जगह ले सकती हैं।

बता दें कि पैकेजिंग सामग्री के लिए फिल्म में पारदर्शिता का होना बेहद अहम गुणों में से के है, क्योंकि उपभोक्ता भोजन की ताजगी का पता करने के लिए पारदर्शी पैकेजिंग को प्राथमिकता देते हैं। शोध के मुताबिक इस अध्ययन में केले के छिलके से जो फिल्म तैयार की गई वो विभिन्न उपोत्पादों से बनी पिछली फिल्मों की तुलना में कहीं ज्यादा पारदर्शी थीं।

इसी तरह खाद्य उत्पादों की पैकेजिंग के लिए फिल्म का मजबूत और लचीला होना भी बेहद जरूरी होता है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि केले के छिलके से बनी पैकेजिंग सामग्री नियमित किराने की थैलियों की तुलना में कहीं ज्यादा मजबूत थी।

उनके मुताबिक इनकी तन्यता 30 एमपीए से अधिक है, जो बैग और पैकेजिंग के रूप में उपयोग करने के लिए बेहद सही है। कुल मिलाकर देखें तो ये गुण बताते हैं कि बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग सामग्री बनाने के लिए केले के छिलके एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं।

शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि उनकी यह खोज सर्कुलर बायोइकोनॉमी में सकारात्मक योगदान दे सकती है। इस बारे में जारी प्रेस विज्ञप्ति से यह भी जानकारी दी गई है कि आगे के शोध में वैज्ञानिक फिल्म को कहीं अधिक लचीला बनाने के साथ-साथ इस प्रक्रिया को बड़े पैमाने पर उत्पादन और व्यावसायिक उपयोग के लिए उपयुक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करेंगें।

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