आम बजट 2021: रोजगार मिलेगा लेकिन जान हथेली पर रखकर करना होगा काम

वित्तमंत्री ने घोषणा की है कि शिप रिसाइकलिंग वर्क से डेढ़ लाख रोजगार मिलेगा, लेकिन आईएलओ के अनुसार दुनिया का यह सबसे खतरनाक रोजगार है
Photo: wikimedia commons
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कोविड-19 के दौर में भारत में प्रवासी मजदूरों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। बजट में यह वर्ग उम्मीद कर रहा था कि उनके लिए सरकार रोजगार संबंधी घोषणाएं करेगी। बजट में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा अवश्य की, लेकिन यहां देखने वाली बात यह है कि भारत के प्रवासी मजदूरों के लिए सरकार ने ऐसा रोजगार देने की घोषणा की है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन यानी आईएलओ ने उसे दुनिया का सबसे खतरनाक काम की संज्ञा दी है।

जी हां, हम बात कर रहे हैं कि शिप रिसाइकिल वर्क यानी पुराने जहाजों को तोड़ने का काम। आईएलओ के अनुसार शिपब्रेकिंग दुनिया की सबसे खतरनाक नौकरियों में से एक है। यह विशाल पुराने जहाजों को स्पेयर पार्ट्स में तोड़ने की प्रक्रिया है। यह हमेशा भारत सहित कई और विकासशील देशों में होता है और इससे काम करने वाले मजदूर हर हाल में गंभीर चोटों के शिकार आए दिन होते हैं और इसके अलावा उन्हें कई लाइलाज बीमारियां भी बड़े पैमाने पर होती हैं।

अब वित्तमंत्री ने बड़े फक्र से केंद्रीय सरकार के वित्तीय वर्ष 2021-22 के आम बजट में ग्लोबल शिपिंग क्षेत्र में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने की घोषणा करते हुए कहा कि इससे लगभग डेढ़ लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। इसके लिए वित्त मंत्री ने 1,624 करोड़ रुपए के बजट की घोषणा की है।

उन्होंने इसके लिए गुजरात में शिप रिसाइकल वर्क में विस्तार की भी घोषणा की। बजट भाषण में वित्तमंत्री ने कहा कि भारत ने एक रिसाइकिलिंग ऑफ शिप्स एक्ट, 2019 तैयार किया है। गुजरात के अलंग में लगभग 90 शिप रिसाइकिलिंग यार्ड्स है। भाषण में कहा गया है कि यूरोप और जापान से और अधिक जहाजों को यहां रिसाइकिलिंग के लिए लाने का प्रयास भविष्य में किया जाएगा।भारत की शिप रिसाइकिलिंग कैपेसिटी फिलहाल लगभग 4.5 मिलियन लाइट डिस्प्लेसमेंट टन (एलडीटी) है। इसे वर्ष 2024 तक दो गुना करने का लक्ष्य रखा गया है।

पर्यावर्णीय हानि

अलंग शिप रिसाइक्लिंग साइट भावनगर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस साइट पर काम करने वाले अधिकांश श्रमिक प्रवासी श्रमिक हैं जो उत्तर प्रदेश,  उड़ीसा और बिहार जैसे भारत के कम औद्योगिक क्षेत्रों वाले राज्यों से आते हैं। 

केंद्रीय जहाजरानी राज्यमंत्री मनसुख मांडवीया के अनुसार पूरी दुनिया में हर साल लगभग 1,000 बड़े जहाज को तोड़ा जाता है। इनमें से करीब 350 से 400 जहाज अकेले अलंग के शिप ब्रेकिंग यार्ड में तोड़े जाते हैं। लेकिन इसके एवज में कितनी पर्यावर्णीय नुकसान होता आया है या अब तक कितने श्रमिकों की मौत हुई है, इसका अनुमान वित्तमंत्री ने बजट भाषण में नहीं लगाया।

गैर सरकारी संगठन शिपब्रेकिंग प्लेटफार्म के अनुसार इस उद्योग में पारदर्शिता की अत्याधिक कमी है। किसी भी मीडिया, वैज्ञानिक और गैर सरकारी संगठनों को इन साइटों पर जाने की अनुमति नहीं मिलती है। संगठन के अनुसार उसने अलंग की साइट पर अनुमति मांगी थी, लेकिन  गुजरात मैरीटाइम बोर्ड (एक सार्वजनिक निकाय है जो गुजरात में सभी बंदरगाहों को चलाता है) ने नहीं दी।

यह बोर्ड अलंग में शिपब्रेकिंग यार्ड को नियंत्रित करता है। फिर भी संगठन ने स्थानीय सूत्रों के हवाले बताया कि  2018 में यार्ड में कम से कम 9 श्रमिकों की मृत्यु हुई थी। टॉक्सिक्स वॉच एलायंस की रिसर्च के अनुसार 1991 और 2012 के बीच भारतीय शिपब्रेकिंग यार्ड में कम से कम 434 लोगों की मौत हुई।

इसके अलावा इन साइटों पर श्रमिकों के घायल होने की संख्या उपलब्ध नहीं है। साथ ही यहां काम करने के कारण होने वाली बीमारियों जैसे कि कैंसर, श्वसन और त्वचा रोग संबंधी किसी प्रकार के आंकड़े नहीं रखे जाते। यहां तक कि इस खतरनाक काम की असुरक्षित स्थिति पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी चिंता जताई थी क्योंकि अदालत ने इस उद्योग की तुलना खनन जैसे खतरनाक उद्योग  से की थी।

अन्य देशों में यह काम भारत सहित दक्षिण एशियाई देशों बांग्लादेश और पाकिस्तान में और साथ ही साथ हाल ही में पश्चिमी अफ्रीकी देशों नाइजीरिया और घाना में भी किया जाता है। ध्यान रहे कि जब भी जहाज अपने जीवन के अंत में पहुंचते हैं तो वे लोगों और पर्यावरण के लिए खतरा पैदा करते हैं।

विश्व बैंक द्वारा 2010 में जारी एक अध्ययन के अनुसार, “हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि 2030 तक बांग्लादेश और पाकिस्तान में लाखों टन खतरनाक कचरा जलकर नष्ट हो जाएगा।” अध्ययन के अनुसार इसमें 85,000 टन एस्बेस्टस, 2,56,000 टन खतरनाक रसायन, 75,000 टन पेंट जिसमें भारी धातु और विष होते हैं, 720 टन भारी धातु शामिल होंगे।

अध्ययन में बताया गया है कि काम की जगह के आसपास के समुद्री जीवन को भी भारी नुकसान पहुंचता है और कायदे से देखा जाए तो इस उद्योग ने मछुआरों की आजीविका को खतरे में डाल दिया है। शिपब्रेकिंग प्लेटफार्म के अनुसार 2017 में दुनिया के लगभग 80 प्रतिशत शिप रिसाइकलिंग भारत के अलंग, बांग्लादेश में चटगांव और पाकिस्तान के गडानी के समुद्र तटों हुआ।

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