बदल चुकी है खुले में शौच करने की आदत, आगे भी रहेगी जारी: सचिव

स्वच्छ भारत मिशन के तहत भारत के खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) होने की स्थिति को आगे कैसे बरकरार रखा जाएगा, इस बारे में डाउन टू अर्थ ने पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के सचिव परमेश्वरन अय्यर से बातचीत की
शौचालयों से निकलने वाले मल के प्रबंधन के लिए दो गड्ढे बनाते ग्रामीण। फोटो: विकास चौधरी
शौचालयों से निकलने वाले मल के प्रबंधन के लिए दो गड्ढे बनाते ग्रामीण। फोटो: विकास चौधरी
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दो अक्टूबर 2019 को स्वच्छ भारत मिशन के तहत देश को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) करने का जश्न मनाया जाएगा। परंतु सवाल यह है कि क्या यह सफलता चिरस्थायी रहेगी, क्या लोग शौचालयों का इस्तेमाल आगे भी जारी रखेंगे? इसे लेकर सरकार की क्या तैयारी है? इस बारे में डाउन टू अर्थ ने केंद्र के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के सचिव परमेश्वरन अय्यर से बातचीत की

प्रस्तुत हैं, बातचीत के प्रमुख अंश -

भारत अब पूरी तरह से खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) हो चुका है। इस स्थिति को हासिल करने के लिए आपको किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

इतने बड़े पैमाने पर और इतने कम समय में व्यवहार परिवर्तन लाना सबसे बड़ी चुनौती थी। लेकिन स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) के मांग-केंद्रित (मांग के बाद आपूर्ति) दृष्टिकोण के कारण यह हासिल कर लिया गया। लोगों को जागरूक करने के लिए केंद्र और राज्यों ने मिलकर व्यापक स्तर पर लोगों को शिक्षित करने का काम किया गया। इसे इंटेनसिव एजुकेशन कॉम्युनिकेशन (आईईसी) कहा गया। लोगों तक संदेश पहुंचाने का सबसे बड़ा काम प्रधानमंत्री ने किया। उनके नेतृत्व ने गेम चेंजर की भूमिका निभाई। हाल ही में राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण (एनएआरएसएस) ने पाया कि शौचालय का उपयोग 95 प्रतिशत से अधिक हो रहा है। यह व्यवहार परिवर्तन का एक बड़ा साक्ष्य है।

इस स्थिति को बनाए रखने की क्या योजना है?

हमारे लगभग 6 लाख स्वच्छाग्रही लोगों को नियमित शौचालय उपयोग के लिए प्रेरित करते हैं और उन्हें जागरूक करते हैं। इसका मकसद खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) को चिरस्थायी बनाए रखना है। इसके अलावा हर जिले में जिला प्रशासन द्वारा ओडीएफ सस्टेनएबिलिटी सेल बनाए गए हैं। स्थानीय स्तर पर निगरानी समितियां बनाई गई हैं, जो सुनिश्चित करती हैं कि शौचालयों को इस्तेमाल करने की आदत बनी रहे और लोग लगातार शौचालयों का इस्तेमाल करें। साथ ही, दरवाजा बंद- भाग दो जैसे अभियान मीडिया के माध्यम से चलाए जा रहे हैं।

स्वच्छ भारत मिशन के तहत बने सभी शौचालयों में पानी की आपूर्ति की व्यवस्था नहीं हो पाई है। ऐसे में, पानी के बिना ओडीएफ की नियमितता को लेकर आपकी क्या योजना है?

हालांकि शौचालय में पानी होना चाहिए, लेकिन शौचालय के उपयोग को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक शर्त नहीं है। ग्रामीण भारत के अधिकांश शौचालयों में खड़ी ढलान वाले पैन हैं, जिनके लिए केवल 1.5 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, और इसलिए शौचालय को पानी की आपूर्ति से जोड़ना आवश्यक नहीं है। हालांकि, प्रधानमंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन के दौरान घोषणा की कि जल जीवन मिशन का लक्ष्य 2024 तक सभी घरों में पाइप जलापूर्ति प्रदान करना होगा, और यह ओडीएफ स्थिरता को और मजबूत करेगा।

स्वच्छ भारत मिशन के तहत बने इन सभी शौचालयों से निकलने वाले गंदे पानी के प्रबंधन की क्या योजना है?

ग्रामीण भारत में अधिकांश शौचालय ट्विन-पिट लीच पिट प्रकार के हैं, जो अपने आप में एक ट्रीटमेंट प्लांट की तरह है और इसके लिए अलग से गंदे पानी या मल निपटान के प्रबंधन की जरूरत नहीं है। इन शौचालयों में जमीन में खोदे गए दो छत्तेदार गड्ढे हैं और इनमें से एक मल इकट्ठा होता रहता है, जबकि दूसरा बंद रहता है। गड्ढे से तरल लीकेज निकलता है और गड्ढे के कुछ ही फीट के भीतर रोगाणु मर जाते हैं। जबकि ठोस पदार्थ (सॉलिड वेस्ट) गड्ढे में ही रहता है।

एक बार जब पहला गड्ढा पांच से छह साल में भरता है तो उसके बाद मल-मूत्र को दूसरे गड्ढे में ले डाला जाता है और पहले गड्ढे को बंद कर दिया जाता है। लगभग छह महीनों में, जो गड्ढा बंद है, वहां पड़ा मल जैविक खाद में परिवर्तित हो जाता है और उसे निकाल कर कृषि क्षेत्र में उपयोग किया जा सकता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ सेप्टिक टैंक भी हैं और इनमें से अधिकांश में गड्ढे हैं जो सुरक्षित रूप से शौचालय से निकलने वाले गंदे पानी का प्रबंधन करते हैं। हालांकि इससे आगे अब स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत देश भर में इन सेप्टिक टैंक से निकलने वाले मल-मूत्र को निपटाने के लिए प्लांट लगाए जाएंगे।

क्या कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के साथ मिलकर ऐसी कोई योजना पर काम किया जा रहा है, जिससे शौचालयों से निकलने मल के खाद में तब्दील होने और कृषि उपयोग में आने की व्यवस्था हो सके?

जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, दोहरे गड्ढे वाले शौचालयों में मल सामग्री को उच्च गुणवत्ता वाले जैविक खाद में परिवर्तित किया जा रहा है। पेयजल और स्वच्छता विभाग द्वारा ग्रामीण भारत में लोगों को इसके बारे में जागरूक किया जा रहा है और कई किसान पहले से ही अपने खेतों में इस खाद का उपयोग कर रहे हैं।

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