भारत में अभी भी लग्जरी है बाथरूम, देश में 41 फीसदी से ज्यादा लोगों के घरों में नहीं इसकी व्यवस्था

रिपोर्ट के मुताबिक देश में 58.7 फीसदी लोगों के घरों में स्नानघर की सुविधा उपलब्ध है
गंगा नदी के किनारे खुले में कपड़े धोती महिला; फोटो: आईस्टॉक
गंगा नदी के किनारे खुले में कपड़े धोती महिला; फोटो: आईस्टॉक
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भारत में अभी भी बहुत से परिवारों के लिए बाथरूम किसी लग्जरी से कम नहीं। आजादी के दशकों बाद भी देश के हर घर में बाथरूम की सुविधा उपलब्ध नहीं है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नई रिपोर्ट "प्रोग्रेस ऑन हाउसहोल्ड ड्रिंकिंग वाटर, सैनिटेशन एंड हाइजीन 2000-2022" के अनुसार देश में केवल 58.7 फीसदी लोगों के घरों में स्नानघर की सुविधा उपलब्ध है जबकि 41 फीसदी लोग इससे वंचित हैं। यह रिपोर्ट पांच जुलाई 2023 को जारी की गई है, जिसे संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सम्मिलित रूप तैयार किया है।

इसका सबसे ज्यादा प्रभाव देश में महिलाओं पर पड़ रहा है, जिन्हें अपनी इस बुनियादी जरूरत के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या बाथरूम का निर्माण देश में स्वच्छता और नारी के सम्मान से जुड़ा मुद्दा नहीं है? और यदि है तो नीति निर्माताओं का ध्यान उस ओर क्यों नहीं जाता।

आज भी देश के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए इसकी सुविधा किसी लग्जरी से कम नहीं है। देखा जाए तो सालों से चलती आ रही प्रथाएं, पैसे की कमी और अन्य जरूरी मुद्दों ने इस जरूरत को उजागर ही नहीं होने दिया।

रिपोर्ट के मुताबिक यह स्थिति सिएरा लियोन में कहीं ज्यादा बदतर है जहां केवल 7.7 फीसदी लोगों के घरों में बाथरूम की सुविधा उपलब्ध है। इसी तरह घाना में यह आंकड़ा 43.8 फीसदी है। वहीं यदि चीन की बात करें तो 88.4 फीसदी लोगों के घरों में स्नानघर की सुविधा उपलब्ध है, जबकि स्पेन और ऑस्ट्रेलिया में यह आंकड़ा शत-प्रतिशत है।    

यह सही है कि भारत ने पिछले कुछ वर्षों में शौचालयों के मामले में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। लेकिन साफ पानी और स्वच्छता से जुड़े ऐसे कई मुद्दे हैं जिनपर अभी काम किया जाना बाकी है।

यह सही है कि भारत ने पिछले कुछ वर्षों में शौचालयों के मामले में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। लेकिन साफ पानी और स्वच्छता से जुड़े ऐसे कई मुद्दे हैं जिनपर अभी काम किया जाना बाकी है। यदि रिपोर्ट में जारी 2022 के आंकड़ों पर गौर करें तो देश में केवल 52 फीसदी आबादी ऐसी स्वच्छता सेवाओं का उपयोग कर रही है जिनका प्रबंधन सुरक्षित तरीके से किया जा रहा है।

इसी तरह देश में करीब 76 फीसदी आबादी की बुनियादी स्वच्छता सेवाओं तक पहुंच है। वहीं 24 फीसदी आबादी अभी भी इससे दूर है। देखा जाए तो स्वच्छता का यह मुद्दा ने केवल साफ-सफाई से जुड़ा है साथ ही यह सीधे तौर पर लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा भी है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

हालांकि आंकड़ों की मानें तो बुनियादी स्वच्छता के मुद्दे पर भारत ने 2015 के बाद से अच्छी खासी प्रगति की है, 2015 से 2022 के बीच इसकी कवरेज में 21 पॉइंट का सुधार आया है।

आंकड़ों का उपलब्ध न होना भी इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों के लिए एक बड़ी समस्या है। यदि साफ और सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल की बात करें तो रिपोर्ट के अनुसार भारत में इससे जुड़े पर्याप्त आंकड़े मौजूद नहीं है।

वहीं यदि भारत के जल जीवन मिशन द्वारा जारी मौजूदा आंकड़ों को देखें तो देश में 64.19 फीसदी ग्रामीण घरों तक नल जल की व्यवस्था हो चुकी है। हालांकि अभी भी भारत में पानी भरने की जिम्मेवारी काफी हद तक महिलाओं और बच्चियों के कन्धों पर हैं, जिसके लिए उन्हें काफी संघर्ष तक करना पड़ता है।

दुनिया के कई देशों में खराब है स्थिति

इस रिपोर्ट में न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में 2015 से 2022 के बीच पानी और स्वच्छता से जुड़े मुद्दों में आए सुधार की तस्वीर प्रस्तुत की गई है। आंकड़ों के अनुसार दुनिया में करीब 220 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके घर पर स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल का प्रबंध नहीं है।

मतलब की दुनिया में हर चार में से एक व्यक्ति ऐसा है, जिसके पास सुरक्षित पेयजल की कमी है। यह सही है कि 2000 से 2022 के बीच करीब 210 करोड़ लोगों के लिए इसकी व्यवस्था की गई है। लेकिन अभी भी 2030 के लिए जो लक्ष्य तय किए गए हैं वो काफी दूर हैं।

रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में पेयजल और स्वच्छता से जुड़े इस संकट का सबसे ज्यादा खामियाजा महिलाओं और बच्चियों को भुगतना पड़ रहा है। पता चला है कि घरों के लिए पानी लाने की जिम्मेवारी पुरुषों की तुलना में महिलाओं की कहीं ज्यादा है। इसी तरह लड़कों के मुकाबले इस जिम्मेवारी को निभाने वाली बच्चियों की संख्या करीब दोगुनी है। करीब 200 करोड़ लोगों के घरों में साफ पानी की व्यवस्था नहीं हैं। इनमें से 70 फीसदी घरों में पानी की व्यवस्था करने की जिम्मेवारी महिलाओं और बच्चियों की है।

इसी तरह करीब 340 करोड़ लोगों की सैनिटेशन तक पहुंच नहीं है। मतलब की 40 फीसदी आबादी अभी भी इससे वंचित है। 2022 के आंकड़ों को देखें तो दुनिया में करीब 57 फीसदी आबादी यानी 450 करोड़ लोग सुरक्षित सैनिटेशन सुविधाओं का उपयोग कर रहे हैं। वहीं आज भी दुनिया में करीब 200 करोड़ लोगों के घर पर हाथों को धोने के लिए साबुन-पानी की व्यवस्था नहीं है। वहीं 2022 में दुनिया की करीब 75 फीसदी आबादी के पास इसकी सुविधा मौजूद है।

नतीजन महिलाएं और लड़कियां आज भी घर के बाहर शौच के लिए जाने को मजबूर हैं। इसकी वजह से वो अपने आप को असुरक्षित महसूस करती हैं। साथ ही इसका प्रतिकूल प्रभाव उनपर पड़ता है। करीब 50 करोड़ लोग सैनिटेशन सुविधाओं को दूसरे परिवारों के साथ साझा करते हैं।

22 देशों पर किए हालिया सर्वेक्षणों से पता चला है कि साझा शौचालय वाले घरों में, महिलाएं और बच्चियां रात में इन सुविधाओं का उपयोग करने में असुरक्षित महसूस करती हैं। साथ ही उन्हें यौन उत्पीड़न और अन्य सुरक्षा जोखिमों का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं स्वच्छता से जुड़ी सुविधाओं का आभाव उनके स्वास्थ्य के लिए भी जोखिम को बढ़ा रह है। इस बारे में डब्ल्यूएचओ के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य विभाग की निदेशक डॉक्टर मारिया नीरा ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि पानी, स्वच्छता और हाइजीन तक सीमित पहुंच के चलते हर साल 14 लाख लोगों की मौत हो जाती है।

देखा जाए तो सतत विकास के छठे लक्ष्य के तहत 2030 तक सभी के लिए साफ और सुरक्षित पानी के साथ स्वच्छता का स्थाई प्रबंध करने का लक्ष्य तय किया गया था। हालांकि अभी भी कई देश इन लक्ष्यों से काफी दूर हैं।

इतना ही नहीं देशों के बीच भी इन सेवाओं के मामले में भारी अंतर है। देखा जाए तो यह असमानता सतत विकास के लक्ष्यों के लिए एक बड़ी चुनौती है। उदाहरण के लिए यदि साफ पेयजल की उपलब्धता से जुड़े आंकड़ों को देखें तो जहां यूरोप और उत्तरी अमेरिका में 94 फीसदी आबादी के पास इसकी पहुंच है वहीं उप-सहारा अफ्रीका में केवल 31 फीसदी आबादी के पास ही पीने का साफ और सुरक्षित पानी उपलब्ध है।

ऐसे में यदि कमजोर देशों को भी इनसे जुड़े सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करना है तो उन्हें साफ पानी की दिशा में हो रही प्रगति की रफ्तार को छह गुणा, स्वच्छता के मामले में 13 गुणा और हाइजीन के मुद्दे में होती प्रगति को 16 गुणा तेज करने की जरूरत है।

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