इसमें कोई शक नहीं है कि पिछले पांच वर्षों में 2015 से 2020 के बीच खुले में शौच करने वालों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है। पर इसके बावजूद अभी भी दुनिया भर में करीब 49.4 करोड़ लोग खुले में शौच करते हैं, जिसमें भारत की भी करीब 15 फीसदी आबादी शामिल है। यदि देखा जाए तो दुनिया के 55 देशों में अभी भी 5 फीसदी से ज्यादा आबादी खुले में शौच करती है। जहां उप सहारा अफ्रीका में स्थिति सबसे ज्यादा बदतर है।
हालांकि देखा जाए तो 2015 से 2020 के बीच खुले में शौच करने वालों की संख्या में करीब 24.5 करोड़ की गिरावट आई है। जो काफी हद तक मध्य और दक्षिण एशिया की वजह से संभव हो पाया है। जहां पिछले पांच वर्षों में खुले में शौच करने वालों की संख्या में 19.6 करोड़ की कमी आई है, इसमें एक बड़ी आबादी भारत की भी है।
यही नहीं जहां पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया में इसकी संख्या में 2.4 करोड़ की कमी आई है वहीं दक्षिण अमेरिका और कैरिबियन में यह कमी करीब एक करोड़ दर्ज की गई है। देखा जाए तो दुनिया के अधिकांश क्षेत्र 2030 तक खुले में शौच करने की कुप्रथा को पूरी तरह समाप्त करने की राह पर हैं।
इस मामले में उप-सहारा अफ्रीका बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रहा है, जबकि ओशिनिया में खुले में शौच की दर में वृद्धि दर्ज की गई है। यह जानकारी हाल ही में डब्लूएचओ और यूनिसेफ द्वारा संयुक्त रूप से जारी रिपोर्ट 'प्रोग्रेस ऑन हाउसहोल्ड ड्रिंकिंग वाटर, सैनिटेशन एंड हाइजीन 2000-2020' नामक रिपोर्ट में सामने आई है।
अफ्रीका में दक्षिण सूडान, चाड और नाइजर ऐसे देश हैं जहां अभी भी 60 फीसदी से ज्यादा आबादी खुले में शौच करती है। वहीं दक्षिण अफ्रीका, गाम्बिया, मायोट, रीयूनियन, सैंटो हेलेना, सेशेल्स जैसे देश हैं जहां कि एक फीसदी से भी कम आबादी खुले में शौच करती है।
पिछले 5 वर्षों में भारत में भी 14 फीसदी की आई है कमी
यदि भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो जहां 2015 में देश की करीब 29 आबादी खुले में शौच करने जाती थी, वो 2020 में घटकर 15 फीसदी रह गई है। जो स्पष्ट तौर पर स्वच्छ भारत मिशन की सफलता की कहानी कहता है। इस लिहाज से भारत इस दिशा में हर साल करीब 2.96 फीसदी की दर से प्रगति कर रहा है।
वहीं यदि ग्रामीण भारत की बात करें तो 2015 में देश की करीब 40 फीसदी ग्रामीण आबादी खुले में शौच करती थी, लेकिन 2020 में यह आंकड़ा घटकर 22 फीसदी रह गया है। इसी तरह शहरी भारत में जहां 7 फीसदी आबादी 2015 के दौरान खुले में शौच करती थी वो 2020 में घटकर एक फीसदी से भी कम रह गई है। देखा जाए तो दुनिया भर में 2015 से 2020 के बीच इस दिशा में जो प्रगति हुई है उसमें सबसे बड़ा योगदान भारत का ही है। जहां पिछले पांच वर्षों में इसमें 14 फीसदी की गिरावट आई है।
वहीं कंबोडिया में पिछले पांच वर्षों में खुले में शौच करने वालों की आबादी में करीब 16 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं अफ्रीकी देश इथिओपिया ने भी सबको हैरान किया है जहां इसमें 15 फीसदी और नेपाल में 14 फीसदी की कमी आई है।
यदि इस दिशा में हो रही प्रगति इसी रफ्तार से जारी रहती है तो दुनिया के अधिकांश क्षेत्र 2030 तक खुले में शौच जैसी कुप्रथा से मुक्त हो जाएंगें। हालांकि उप सहारा अफ्रीका में इस विकास की रफ्तार धीमी है जबकि ओशिनिया में इसमें इजाफा हो रहा है। ओशिनिया में पापुआ न्यू गिनी वह देश है, जहां खुले में शौच की प्रथा सबसे ज्यादा प्रचलित है। वहां करीब 14 लाख लोग या 16 फीसदी आबादी खुले में शौच करती है।
वहीं किरिबाती में 30 फीसदी और सोलोमन द्वीप में करीब 45 फीसदी आबादी ऐसा करती है। ऐसे में देखा जाए तो दुनिया के सबसे कम विकसित देशों को 2030 तक शौच मुक्ति के लक्ष्य को हासिल करने दोगुनी तेजी से प्रयास करने की जरुरत है।