
जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर के बारे में देश भर के लोगों की यह एक धारणा बनी हुई है कि श्रीनगर एक खूबसूरत, साफ-सुथरा और प्राचीनतम शहर है। पर्यटकों को बस डल झील के आसपास का नजारा ही दिखाया जाता है लेकिन किसी को भी इस तथ्य का इल्म नहीं है कि श्रीनगर एक कचरे से भरा हुआ शहर है। यह बात श्रीनगर के सैदापोरा क्षेत्र के स्थानीय निवासी वाहिद अहमद ने डाउन टू अर्थ से कहा। साथ ही उन्होंने बताया कि गर्मियों के महीनों में लैंडफिल साइट से निकलने वाली बदबू 7 से 8 किलोमीटर दूर तक फैलती है।
यह बात श्रीनगर नगर निगम के आयुक्त द्वारा राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के समक्ष प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में सामने आई है कि श्रीनगर शहर में अवैज्ञानिक तरीके से कचरे का प्रबंधन किया जा रहा है। ध्यान रहे कि पिछले कुछ सालों से लगातार अचन-सैदापोरा (श्रीनगर) के निवासी लैंडफिल साइट को हटाने की मांग कर रहे हैं। इसे 35 साल पहले वेटलैंड क्षेत्र बनाया गया था। रिपोर्ट के अनुसार श्रीनगर के अचन इलाके में स्थित लैंडफिल साइट पर 11 लाख मीट्रिक टन (एमटी) से अधिक कचरा डाला जाता है और यह 123 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ क्षेत्र है। रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रीनगर शहर में प्रतिदिन 600 टन (टीपीडी) ठोस कचरा उत्पन्न होता है और इसमें से 450 टन इसी लैंडफिल साइट पर फेंका जाता है।
इस संबंध में मामला 12 दिसंबर 2024 को एनजीटी की तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था। पीठ में न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव (अध्यक्ष), न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल (न्यायिक सदस्य) और ए सेंथिल वेल (विशेषज्ञ सदस्य) शामिल थे। इस मामले के याचिकाकर्ता के वकील के तौर पर राहुल चौधरी और इतिशा अवस्थी एनजीटी पीठ के समक्ष पेश हुए। सुनवाई के बाद एनजीटी के आदेश में कहा गया है कि आयुक्त द्वारा दाखिल रिपोर्ट के अनुसार कचरे का वर्तमान उत्पादन 600 टीपीडी है, जिसके 2028 तक 918.04 टीपीडी बढ़ने का अनुमान है। उक्त दैनिक कचरा उत्पादन में 360 टीपीडी गीला कचरा शामिल है। यह कुल कचरे का 60 प्रतिशत है और 240 टीपीडी सूखा कचरा है, यह कुल कचरे का 40 प्रतिशत है। वर्तमान में श्रीनगर की कचरा निपटान करने की क्षमता अपर्याप्त है। इसकी क्षमता केवल 150 टीपीडी कचरे के निपटन की होती है। इसमें 50 टीपीडी गीला कचरा शामिल है।
ध्यान रहे कि श्रीनगर के अचन-सैदापोरा क्षेत्र में अवैज्ञानिक अपशिष्ट निपटान के लिए इस वर्ष की शुरुआत में एक स्थानीय स्वैच्छिक समूह द्वारा एनजीटी में एक और मामला दायर किया गया। अचन-सैदापोरा के निवासी इस अवैज्ञानिक लैंडफिल साइट को स्थानांतरित करने की लगातार मांग कर रहे हैं। एनजीटी ने मई 2024 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड-सीपीसीबी, राष्ट्रीय आर्द्रभूमि समिति, जम्मू-कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण समिति और जिला मजिस्ट्रेट श्रीनगर की एक संयुक्त समिति का गठन किया। संयुक्त समिति के सदस्यों ने जुलाई 2024 में श्रीनगर में साइट का दौरा किया और हाल ही में एनजीटी के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत की है।
रिपोर्ट में श्रीनगर नगर निगम (एसएमसी) की कई खामियां गिनाई गईं हैं। संयुक्त समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि निरीक्षण के दौरान यह बात सामने आई कि कई प्रमुख अपशिष्ट प्रसंस्करण इकाइयों का पूरी तरह से काम नहीं कर रही हैं। प्रतिदिन 100 टन की क्षमता वाला मैकेनिकल सेग्रीगेटर खराब पाया गया, जिससे कर्मचारियों को अकुशल मैनुअल सेग्रीगेशन पर निर्भर रहना पड़ा। इसके अलावा 120 केएलडी की संयुक्त क्षमता वाले सभी तीन लीचेट ट्रीटमेंट प्लांट-एलटीपी काम नहीं कर रहे थे। साथ ही भूजल की गुणवत्ता की निगरानी के लिए बनाए गए बोरवेल भी काम नहीं कर रहे थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रतिदिन 130 किलोलीटर की क्षमता वाला एक मल उपचार संयंत्र और एक सेप्टेज उपचार संयंत्र पूरी तरह निष्क्रिय पाए गए। लीचेट संग्रह प्रणालियों की कमी के कारण अनुपचारित लीचेट सीधे लैंडफिल से केवल 500 मीटर की दूरी पर स्थित एंकर झील से जुड़े नाले में बहया जा रहा है। इस बीच संयुक्त समिति की रिपोर्ट और श्रीनगर नगर निगम द्वारा दिए गए जवाब का स्वत: संज्ञान लेते हुए एनजीटी ने अपने आदेश में कहा कि हमारा मानना है कि ठोस अपशिष्ट, लीचेट मुद्दे या सीवेज समस्या को हल करने के लिए अधिकारियों द्वारा कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया जा रहा है। अपशिष्ट सीधे नदी में डाला जा रहा है। यह जल अधिनियम 1974 सहित एमएसडब्ल्यू नियमों का उल्लंघन है। इस मुद्दे की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए श्रीनगर नगर निगम के आयुक्त को इस विपिरत स्थिति को ठीक करने के लिए एक समयबद्ध कार्य योजना प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है।