वायु प्रदूषण के गंभीर खतरों के बीच दिल्ली में “प्रदूषण ओपीडी” की शुरुआत

राम मनोहर लोहिया की यह ओपीडी हफ्ते में एक दिन लगेगी। वायु प्रदूषण से पीड़ित मरीजों की संख्या में इजाफा होता है तो ओपीडी की समयावधि और दिनों की संख्या बढ़ाई जा सकती है
राम मनोहर लोहिया अस्पताल में प्रदूषण ओपीडी शुरू की गई है। फोटो: मिधुन
राम मनोहर लोहिया अस्पताल में प्रदूषण ओपीडी शुरू की गई है। फोटो: मिधुन
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वायु प्रदूषण के गंभीर स्तर को देखते हुए दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल ने एक ऐसी ओपीडी शुरू की है जिसमें केवल प्रदूषण से पीड़ित मरीजों का ही इलाज होगा। अस्पताल प्रशासन ने इसे “प्रदूषण ओपीडी” नाम दिया है।

इस ओडीपी को देखने-समझने के लिए डाउन टू अर्थ की टीम 13 नवंबर को अस्पताल पहुंची और पाया कि जानकारी के अभाव में अभी यहां मरीज नहीं पहुंच रहे हैं। 13 नवंबर को ओपीडी का दूसरा दिन था।  डॉक्टरों को उम्मीद है कि जैसे-जैसे इसकी जानकारी लोगों तक पहुंचेगी, वैसे-वैसे उनका आना शुरू होगा।

अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर अजय शुक्ला ने डाउन टू अर्थ को बताया कि यह पहल इसलिए करनी पड़ी है ताकि प्रदूषण से जुड़ी सभी शिकायतों को अलग-अलग विभाग के डॉक्टर एक ही जगह देख सकें।

उन्होंने बताया कि नवंबर दिसंबर में दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण का स्तर गंभीर होने पर लोगों की स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ जाती हैं। इस दौरान प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों में करीब 30 प्रतिशत का उछाल आ जाता है।

उनका कहना है कि वायु प्रदूषण से सांस से जुड़ी परेशानियां ही नहीं होतीं, बल्कि यह शरीर के विभिन्न अंगों पर असर डालता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर ओपीडी की शुरुआत की गई है। इस ओपीडी में श्वसन रोग, ईएनटी, त्वचा, आंख और मनोरोग विशेषज्ञ अपनी सेवाएं देंगे।

उन्होंने आगे बताया कि फिलहाल ओपीडी हर सोमवार को दोपहर दो से चार बजे की बीच चलेगी। अगर वायु प्रदूषण से पीड़ित मरीजों की संख्या में इजाफा होता है तो ओपीडी की समयावधि और दिनों की संख्या भी बढ़ाई जा सकती है।  

डॉ. शुक्ला ने बताया कि प्रदूषण हर आयु वर्ग से लोगों को प्रभावित करता है,  विशेषकर पांच साल से कम आयु के बच्चों और वरिष्ठ नागरिक सबसे संवेदनशील हैं। उन्होंने यह भी बताया कि मध्य आयु वर्ग के लोग जो अधिक फिट होते हैं, उन्हें लगता है कि वे इससे दुष्प्रभावों ने मुक्त हैं। उन्हें लगता है कि हमें खांसी नहीं आ रही, हमारी सांसें नहीं फूल रही, आंखें लाल नहीं हो रहीं। ऐसे में ये लोग अपने रुटीन को नहीं बदलते।

वह आगे बताते हैं कि जो लोग प्रदूषित हवा में व्यायाम, साइक्लिंग या दौड़ जैसी गतिविधियां करते हैं, उनका सांसें तेज हो जाती हैं और इससे अधिक प्रदूषक उनके शरीर में कई गुणा मात्रा में प्रवेश कर जाते हैं। हवा में कई प्रदूषक ऐसे होते हैं जो कैंसरकारी हैं। ये शरीर में प्रवेश करके कोशिकाओं में म्यूटेट हो सकते हैं। ये कोशिकाएं बाद में कैंसर का रूप धारण कर सकती हैं।

उन्होंने बताया कि हो सकता है कि आज आपको खांसी न आए या सांस न फूले लेकिन 10-15 साल आपके चेकअप में कैंसर निकल सकता है। शुक्ला बताते हैं कि लोगों की समग्र जीवन प्रत्याशा जो लगातार बढ़ रही थी, वह प्रदूषण के कारण घटने लगी है।

ओपीडी में मौजूद श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉक्टर देश दीपक ने डाउन टू अर्थ को बताया कि प्रदूषण के कारण सांस से जुड़ी परेशानियां सबसे अधिक होती हैं। उन्होंने बताया कि ऐसी समस्याओं को हम सामान्य ओडीपी में भी देख सकते हैं लेकिन अगर किसी को ईएनटी की भी दिक्कत है तो उसे दूसरी जगह जाकर इंतजार करना पड़ेगा। मरीजों की इसी से बचाने के लिए एक जगह सभी विशेषज्ञ डॉक्टरों को प्रदूषण ओपीडी में रखा गया है। यहां केवल एक बार रजिस्ट्रेशन कराकर मरीज सभी डॉक्टरों को दिखा सकता है।

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