गोमती नदी में भारी धातुओं का स्तर चिंताजनक

वैज्ञानिकों का मानना है कि लखनऊ के उद्योगों और नगरपालिका से निकलने वाला उपचारित व अनुपचारित अपशिष्ट गोमती में बहाए जाने से जल की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित हो रही है।
Credit: Samrat Mukharjee
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लखनऊ में गोमती नदी प्रदूषण के कारण काफी समय से सुर्खियों में बनी हुई है। अब वैज्ञानिकों ने अपने शोध से गोमती के जल में हानिकारक भारी धातुओं के होने की पुष्टि की है। पहली बार गोमती में आर्सेनिक की उपस्थिति का भी पता चला है।

भारी धातुओं का मतलब ऐसी धातुओं से होता है जिनका घनत्व 5 से अधिक होता है और जिनकी अत्यधिक सूक्ष्म मात्रा का भी पर्यावरण पर खासा असर पड़ता है। इनका निर्धारित सान्द्रण सीमा से अधिक पाया जाना वनस्पतियों, जीवों एवं मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। साथ ही ये जल और मृदा के धात्विक प्रदूषण का भी कारण बनती हैं। भारी धातुओं में कैडमियम, क्रोमियम, कोबाल्ट, मरकरी, मैगनीज, मोलिब्डिनम, निकिल, लेड, टिन तथा जिंक शामिल हैं।

बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के पर्यावरण विज्ञान विभाग, झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय, रांची के पर्यावरण विज्ञान केंद्र तथा भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के वैज्ञानिकों ने सम्मिलित रूप से गोमती के पारिस्थितिक तंत्र में भारी धातुओं की सांद्रता का एकीकृत मूल्यांकन किया है। अभी तक गोमती के जल तथा उसकी तलहटी में बैठे तलछटों और प्राकृतिक रुप से मिलने वाले जलीय पादपों पर कोई व्यापक अध्ययन नहीं किया गया था। इस शोध के परिणाम हाल ही में वैज्ञानिक पत्रिका करेंट साइंस में प्रकाशित हुए हैं।

अध्ययन के लिए लखनऊ शहर में 10 चुनिंदा स्थलों गौ घाट, कुरिया घाट, डालीगंज, शहीद स्मारक, हनुमान सेतु, बोट क्लब, लक्ष्मण मेला ग्राउंड, खाटु श्याम वाटिका, बैकुंठ धाम और गोमती बैराज से गोमती के जल, तलछट और जलीय पादपों के नमूने इकठ्ठे किए गए।

वैज्ञानिकों का मानना है कि लखनऊ शहर के उद्योगों और नगरपालिका से निकलने वाला उपचारित व अनुपचारित अपशिष्ट गोमती में बहाए जाने से इसकी जल की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित हो रही है। जल का पीएच 6.54 और 8.14 के बीच था। डालीगंज और हनुमान सेतु को छोड़कर सभी शोध साइटों पर जल क्षारीय पाया गया और साथ ही घुलित ऑक्सीजन भी 3.69 से 7.3 मिलीग्राम प्रति लीटर आंकी गई। ये दोनों तथ्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उन जगहों पर धातुओं की जैव उपलब्धता को दर्शाते हैं। दस साइटों में से गोमती बैराज में सभी भारी धातुओं की सांद्रता अधिकतम पाई गई। मौजूदा परिणामों की तुलना पहले के अध्ययनों से की गई, तो यह पाया गया कि गोमती नदी के पानी में तांबा, कैडमियम और लैड की सांद्रता में वृद्धि हुई है।

गोमती के तलछटों में भारी धातु के विश्लेषण दर्शाते हैं कि लगभग सभी साइटों पर भारी धातुओं की सांद्रता उच्चतम है। तलछट में मिली धातुओं की सांद्रता नदी के पानी में मिली धातुओं की तुलना में काफी अधिक है। तलछटी में मिली धातुओं की उच्च सांद्रता भविष्य में धातु-विषाक्तता के कारण नदी के तलीय जीवों के लिए भारी जोखिमभरा साबित हो सकती है।

वैज्ञानिकों ने इन दसों साइटों पर नदी में मिलने वाले चार जलीय मैक्रोफॉइटों यानि पानी में उगने वाले बृहत् जलीय पादपों पिस्टिया स्ट्रेटिओट्स, आइकॉर्निया क्रैसीपीस, पॉलीगोनम कोसीनिअम और मार्सिलिया क्वाड्रिफोलिया में भारी धातुओं के जैवसंचयन अर्थात् इनके शरीर में धातुओं के जमने का भी मूल्यांकन किया। मैक्रोफाईट्स अपने शरीर के विभिन्न अंगों में विषाक्त धातुओं को जमा करने की क्षमता रखते है, जिससे उन्हें धातु प्रदूषण का एक प्रभावी जैव-सूचक माना जाता है। वैज्ञानिकों ने पाया कि पिस्टिया स्ट्रेटिओट्स व पॉलीगोनम कोसीनिअम में लैड और आइकॉर्निया क्रैसीपीस व मार्सिलिया क्वाड्रिफोलिया में तांबा सबसे अधिक मात्रा में जमा हुआ। जबकि शेष भारी धातुएं कैडमियम और आर्सेनिक का जैवसंचयन अपेक्षाकृत कम देखा गया। 

वास्तव में ये मैक्रोफाइट्स अन्य जलीय जीवन के लिए भोजन और आश्रय प्रदान करते हैं। भले ही अभी गोमती के पानी में विषाक्त भारी धातुओं की सांद्रता कम पाई गई हो, लेकिन मैक्रोफाइट्स में धातु-जैवसंचयन से इनके खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करने के कारण उच्चतर पोषक स्तरों पर भारी धातुओं के हस्तांतरण की संभावना बढ़ जाती है, जो चिंताजनक है।

वैज्ञानिकों ने भारी धातु प्रदूषण पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए गोमती के जल और तलछट दोनों के दूषित स्तर पर नियमित रूप से निगरानी की आवश्यकता पर बल दिया है। इसके अलावा उनका कहना है कि गोमती के पानी का कृषि में सिंचाई के लिए उपयोग करते समय भी कड़ी देखभाल की जरुरत है। तलछट, जल और जलीय पादपों के बीच निरंतर अंतर्संबंधों पर आधारित धातु सांद्रता के एकीकृत मूल्यांकन से निकले ये आंकड़े गोमती के पारिस्थितिकी तंत्र में विषाक्त भारी धातुओं के व्यवहार को समझने और एक कुशल प्रदूषण नियंत्रण और जल संसाधन प्रबंधन कार्यक्रम तैयार करने के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे।

अनुसंधानकर्ताओं की टीम में नेहा, धनंजय कुमार, प्रीति शुक्ला, संजीव कुमार, कुलदीप बौद्ध, जया तिवारी, नीतू द्विवेदी, एस. सी. बर्मन, डी. पी. सिंह और नरेंद्र कुमार शामिल थे।

(इंडिया साइंस वायर)

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