विश्व पर्यावरण दिवस विशेष:  प्लास्टिक से निजात संभव है?

विगत 100 वर्षों में जितना प्लास्टिक का उत्पादन किया गया उतना एक दशक में कर लिया गया
इकोब्रिक: प्लास्टिक कूड़े के विरुद्ध बच्चों का अभियान। फोटो: विनीता परमार
इकोब्रिक: प्लास्टिक कूड़े के विरुद्ध बच्चों का अभियान। फोटो: विनीता परमार
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विश्व पर्यावरण दिवस 2018 की मेजबानी भारत को सौंपी गई थी। उस वर्ष थीम दिया गया था, “प्लास्टिक प्रदूषण को पराजित करो”। विडम्बना यह है कि पिछले 5 वर्षों में भी प्लास्टिक प्रदूषण और उससे संबंधित खतरों और नुकसान को जानते हुए भी पूरे विश्व की स्थिति बद से बदतर हुई है।

मतलब पांच साल चले सिर्फ ढाई कोस वाली स्थिति है। क्योंकि इस वर्ष भी विश्व पर्यावरण दिवस का थीम बीट प्लास्टिक पोल्यूशन ही है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि मानवता प्लास्टिक में डूबते जा रही है। पिछले पांच दशकों में प्लास्टिक उत्पादों ने हमारी दैनिक जीवन के लगभग हर पहलू में अपनी जगह बना ली है।

प्लास्टिक के कहर से हमसब वाकिफ हैं। कैसे एक बार की हुई बारिश में मुम्बई,दिल्ली, बेंगलुरु,पटना जैसे शहर डूबने लगते हैं और अब छोटे शहरों के नाले जाम होकर मानवनिर्मित बाढ़ का कारण बनते जा रहे हैं।

प्लास्टिक कूड़ा सड़ता गलता नहीं, जिस वजह सर्वाधिक नुकसान हमारी मिट्टी को होती है। हमारे आहार शृंखला में भी माइक्रोप्लास्टिक और माइक्रोफाइबर पाया जा रहा यह सोच कर ही स्थिति की भयावहता समझ में आ रही है। मतलब हमारे पानी, अनाज, दूध, फल सबमें न्यूनतम स्तर पर ही सही प्लास्टिक मौजूद है।

ताजा अध्ययन बताते हैं कि माइक्रोप्लास्टिक अम्बिलिकल कॉड में भी पाया जाता है। कुल वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन 9 बिलियन टन से ऊपर पहुंच गया है यानी वर्तमान में धरती पर मौजूद हर व्यक्ति के जिम्मे 1 टन से अधिक प्लास्टिक बन चुका है।

हाल के अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि पृथ्वी पर कुल प्लास्टिक का वजन मनुष्यों और जानवरों के कुल वजन से दोगुना हो चुका है और अगर यही रफ्तार रही तो 2060 तक प्लास्टिक उत्पादन तीन गुनी हो जाएगी।

विगत 100 वर्षों में जितना प्लास्टिक का उत्पादन किया गया उतना एक दशक में कर लिया गया। प्लास्टिक प्रदूषण की भयवाहता का आलम यह है कि अब तक उत्पादित प्लास्टिक अपनी संपूर्णता या सूक्ष्मता के स्तर पर इस पृथ्वी पर ही मौजूद है।

विगत कई वर्षों से प्लास्टिक प्रदूषण के नियंत्रण के लिए एक वैश्विक समझ बनाने की जरूरत महसूस की जा रही थी, एक सुकून की खबर यह है कि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा ने मार्च 2022 में संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी 193 सदस्य देशों द्वारा एक ऐतिहासिक निर्णय लिया कि एक वैश्विक बाध्यकारी कानून की रूपरेखा 2024 तक तैयार कर ली जाए।

जब इसके कानून बनाने की रूप-रेखा के प्रथम ड्राफ्ट पर नजर दौड़ाई गई तो यह रियूज,रिसाइकल, रिओरिएंट और विविधता के आधार पर सर्कुलर प्लास्टिक इकोनॉमी की बात करता दिखाई दे रहा है। प्लास्टिक उद्योग में सर्कुलर इकोनॉमी को एक जादू मंत्र की तरह समझा जा रहा है।

मतलब अगर हम बस पहले से ही बनाए हुए प्लास्टिक का उपयोग फिर से कर प्लास्टिक प्रदूषण के असर को कम करेंगे। पर प्लास्टिक रिसायकल और उसके दुबारा उपयोग के स्वास्थ्य संबंधी खतरों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है।   

एक अनुमान है कि अब तक उत्पादित प्लास्टिक में से मात्र 10 प्रतिशत प्लास्टिक को ही रिसाइकल किया जा सका है। हालांकि प्लास्टिक कचरे के रिसाइकलिंग के मामले में भारत का स्थान संतोषजनक है। ग्रीनपीस के एक ताजा अध्ययन के मुताबिक रिसाइकल किए गए प्लास्टिक प्रकृति और जीवों के लिए और अधिक जहरीले हो सकते हैं। और रिसाइकलिंग से प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने की बात बेमानी है।

प्लास्टिक प्रदूषण की भयावहता का असर इस धरती पर सार्वभौमिक है। साक्ष्य बताते हैं कि महासागर के सबसे गहरे तल से लेकर संसार के सबसे ऊँची पर्वत चोटियों पर प्लास्टिक ढेर से लेकर माइक्रोप्लास्टिक के रूप में व्याप्त है। आज सारा विश्व प्लास्टिक के माइक्रोकणों को लेकर चिंतित है, लेकिन दूसरी तरफ हम यह भूल जा रहे हैं कि प्लास्टिक उत्पादन के साथ पुनरुत्पादन में निकलने वाले रसायन इस धरती को व्यापक रूप से प्रभावित कर रहे हैं।

यह अनुमान लगाया गया है कि 13,000 से अधिक विभिन्न रसायन प्लास्टिक के उत्पादन में इस्तेमाल होते हैं जो प्लास्टिक को विभिन्न प्रकार से इस्तेमाल के अनुरूप बनाते हैं। और सबसे बड़ी चिंता की बात है कि इनमें से किसी रसायन का कभी भी उनकी दुष्प्रभाव के लिए मूल्यांकन तक नहीं किया गया है। इतने सारे रसायनों का इस्तेमाल प्लास्टिक को विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए जरूरी भौतिक गुणों के लिए पॉलीमर के साथ किया जाता है। जैसे उसे लचीला या कठोर बनाना वांछित रंग देना, अर्थात प्लास्टिक सिर्फ और सिर्फ रसायनों का खेल है।

हालांकि सिर्फ खाद्य पैकेजिंग और छोटे बच्चों के खिलौनों के उत्पाद के लिए सख्त नियम लिए हैं जिनमें विषाक्त पदार्थों के संपर्क के संभावित जोखिम को कम करने के लिए कम से कम रसायनों को शामिल किया जाए। हालांकि, समस्या तब उत्पन्न होती है जब हम रिसाइकिल प्लास्टिक का इस्तेमाल करना शुरू करते हैं। इस प्रकार रिसाइकिल प्लास्टिक में वर्जिन प्लास्टिक की तुलना रसायनों की मात्रा तुलनात्मक रूप से बढ़ जाती है जो प्रकृति और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है।

रिसाइकिलिंग के लिए इस्तेमाल किए गए प्लास्टिक बहुत आसानी से उन पदार्थों को अवशोषित कर लेते हैं जो उनके पिछले इस्तेमाल के दौरान संपर्क में आ चुके होते हैं। जैसे कीटनाशकों, घरेलू सफाई उत्पादों,दवाइयों आदि रसायनों  के लिए प्रयुक्त प्लास्टिक को जब रिसाइकिलिंग के लिए ले जाया जाता है तब ये पदार्थ भी प्लास्टिक के साथ रिसाइकिल हो जाते हैं।

व्यावसायिक संवेदनशीलता को देखते हुए प्लास्टिक उत्पादन में प्रयुक्त रसायनों की सूची उत्पाद की सूची अबतक उपलब्ध नहीं हो पाई है, जो प्लास्टिक के उपयोग से होने वाले दुष्प्रभाव के जन जागरूकता के लिए जरूरी है।  

हालांकि प्लास्टिक के निर्माण में प्रयुक्त अधिकांश रसायनों के स्वास्थ्य के ऊपर पड़नेवाले प्रभावों का मूल्यांकन नहीं किया गया है फिर भी कुछ भयानक प्रभाव सामने आ रहे हैं। जिसमें यह कैंसर, हॉर्मोन संबंधी रोग और प्रजनन समस्याओं सहित कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं। ये रसायन हमारे जीवों पर भी असर डालते हैं मसलन मछली के प्रजनन स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं।

प्लास्टिक प्रदूषण के नियंत्रण के लिए वैश्विक स्तर पर हाल में जो समझ बनी है जिसमें रियूज,रिसाइकल, रिओरिएंट और विविधता प्रमुख रूप से शामिल है और इन सभी के केंद्र में प्लास्टिक आधारित सर्कुलर एकोनॉमी की अवधारणा है। सर्कुलर इकोनॉमी के लिए रिसाइकलिंग आधारभूत आवश्यकता है।

स्वास्थ्य संबंधी खतरों को देखते हुए रिसाइकलिंग एक बेहतर विकल्प नहीं हो सकता है। प्लास्टिक कूड़े के निस्तारण में रिसाइक्लिंग के एक नियंत्रित योगदान से इंकार नहीं किया जा सकता है अगर इसका इस्तेमाल आहार-शृंखला से इतर इसे निर्माण सामग्री में डालना या नई सड़क निर्माण,नींव के निर्माण औद्योगिक पैकेजिंग शामिल है।  

महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था, दो चीजें असीमित हैं−एक ब्रह्माण्ड तथा दूसरी मानव की मूर्खता। मानव ने अपनी मूर्खता के कारण अनेक समस्याएं पैदा की हैं। इसमें से प्लास्टिक प्रदूषण और उससे उत्पन्न हालात अहम है। एक तरफ हम प्लास्टिक का जखीरा तैयार करते जा रहे हैं उसके इस्तेमाल पर रोक न लगाकर उसके निस्तारण पर अपनी समूची ऊर्जा खर्च कर रहे हैं।

यह कहना सही नहीं होगा कि हमें प्लास्टिक उत्पादन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा देना चाहिए। हमें इसके इस्तेमाल पर लगाम लगानी होगी। निश्चित रूप से एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर हमारी दैनिक निर्भरता को कम करना समाधान का हिस्सा होना चाहिए। हमारे देश में 1 जुलाई 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक की चीजों को बनाने, बेचने और इस्तेमाल करने पर पाबंदी लग गई है लेकिन इसका प्रभाव अभी भी दिखाई नहीं पड़ रहा है।

भारतीय कानून के मुताबिक प्लास्टिक के निस्तारण के लिए विस्तारित उत्पाद जिम्मेदारी लागू है जिसमें उत्पादक को जिम्मेदार बनाया गया है। इसे किस प्रकार प्रभावी बनाया जाये अभी भी यक्ष प्रश्न है? पर्यावरण संरक्षण के लिए हमारे देश भारत में 200 से भी ज्यादा कानून हैं। इन कानूनों का खुलेआम उल्लंघन होता है और भारत एनवायरमेंटल परफॉरमेंस इंडेक्स की सूची में निचले पायदान पर है।

पर्यावरण एवं प्रकृति संरक्षण भले ही एक कानूनी मुद्दा है, किन्तु इसे शुद्ध करने के लिए, इसे संरक्षित रखने के लिए समाज के सभी अंगों के मध्य आवश्यक समझ एवं सामंजस्य के द्वारा, सामूहिक प्रयास किया जाना ज्यादा जरूरी है। दरअसल, इसके लिए सामाजिक जागरूकता की जरूरत है।

रूसो का कथन है कि “हमें आदत न डालने की आदत डालनी चाहिए”। हमें निश्चित रूप से प्रकृति की ओर लौटना होगा। लेकिन प्रकृति की ओर लौटने की हमारी शैली पुरातन न होकर नूतन रहेगी। प्रकृति के साथ जो भूल मानव जाति अनजाने में कर रही है, उसकी पुनरावृत्ति को रोकना होगा।

ऋग्वेद में कहा गया है कि - प्रकृति का सम्मान ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा होगी कहा भी जाता है की प्रकृति ही ईश्वर है। अगर आप सच्चे ईश्वर भक्त हैं तो भगवान की बनाई इस दुनिया कि हवा, पानी जंगल और जमीन को प्रदूषित होने से बचाएं वर्तमान संदर्भों में इससे बढ़कर कोई पूजा नहीं है। जरूरत हमें स्वयं सुधरने की है, साथ ही हमें अपनी आदतों में पर्यावरण की ख़ातिर बदलाव लाना होगा। याद रहे हम प्रकृति से हैं प्रकृति हम से नहीं। प्लास्टिक की समस्या वास्तविक भी है और गंभीर भी, लेकिन अगर वैज्ञानिक, उद्योग, सरकारें और उपभोक्ता सब मिलकर काम करें तो हम इस संकट से पार पा सकते हैं।

प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्ति जनजागृति के बिना अपूर्ण रहेगा, सरकार तथा अंतरराष्ट्रीय संगठन चाहे कितना भी प्रयास करें। वास्तव में पर्यावरण को समग्रता के रूप में देखा जाये और जितना जरूरी सुंदर परिवार के साथ जीवन है उतना ही जरूरी सुंदर पर्यावरण है।

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