क्यों कम हो रहा है सागरमाला और जलमार्ग परियोजना का संशोधित बजट

सागरमाला और राष्ट्रीय जलमार्ग जैसी पोत परिवहन मंत्रालय की प्रमुख योजनाओं के बारे में बजट भाषण में कुछ नहीं कहा गया
Photo: wikimedia commons
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अवली वर्मा/श्रीपाद धर्माधिकारी

2021–2022 बजट को पेश करते हुए वित्त मंत्री के भाषण में पत्तन, जलमार्ग और नौपरिवहन मंत्रालय के लिए तीन बातें बोली गईं। पहले  बिंदु में यह बताया गया कि बड़े पत्तन (बंदरगाह–पोर्ट्स ) अब एक ऐसे मॉडल के रूप में सामने आएंगे, जिसका प्रबंधन इसके निजी भागीदार द्वारा किया जाएगा।

इस सम्बन्ध में गौर करने लायक है कि पोत परिवहन मंत्रालय की प्रमुख परियोजना राष्ट्रीय जलमार्ग-1/जल मार्ग विकास परियोजना के तीन बड़े मल्टी-मॉडल टर्मिनल के निजीकरण की प्रक्रिया ख़ासी मुश्किल से गुजर रही हैं। हाल ही में इनके निजीकरण के टेंडर की शर्तों में ढील दी गई।

दूसरे बिंदु में भारत में मर्चेंट शिप्स को बढ़ावा देने की बात कही गयी, जिसके द्वारा ग्लोबल शिप्पिंग में भारतीय कंपनियों की हिस्सेदारी बढ़े। तीसरी बिंदु में शिप रिसाइक्लिंग की क्षमता को अब के मुकाबले दोगुना कर देने की बात कही गई। यूरोप और जापान से और अधिक जहाज को भारत में लाने के लिए प्रयास किए जाएंगे।

वित्त मंत्री ने यह तो बताया कि गुजरात के अलंग में स्थित 90 शिप रिसाइक्लिंग यार्ड्स को पहले से एचकेसी (हांगकांग कन्वेंशन) अनुपालन सर्टिफिकेट प्राप्त है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के 27.11.2020 के ऑर्डर के अनुसार तकरीबन 70 फीसदी रिसाइक्लिंग यार्ड्स एचकेसी का पालन करते हुए ग्रीन केटेगरी सर्टिफिकेट हासिल कर चुके हैं, पर 30 फीसदी अभी भी प्रदूषण घटाने के उस स्तर पर नहीं हैं कि उन्हें ग्रीन केटेगरी में बताया जाए। सागरमाला और राष्ट्रीय जलमार्ग जैसी पोत परिवहन मंत्रालय की प्रमुख योजनाओं के बारे में बजट भाषण में कुछ नहीं कहा गया।

सागरमाला

बजट में सागरमाला के अनुदान विवरण में कहा गया है कि यह प्रावधान तटीय समुदाय के विकास, समुद्र/ राष्ट्रीय जलमार्गों द्वारा कार्गो /यात्रियों की आवाजाही को बढावा देने के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए सहायता, अनूठी नवाचार परियोजनाओं के वित्तपोषण की सहायता के लिए है। यहां यह खास बात है कि 2017–18 से 2020-21 तक के संशोधित बजट आवंटित बजट से कम ही रहे हैं।

पोत परिवहन की अनुदानों की मांगो (2020 -2021 ) के सम्बन्ध में 3 फरवरी 2021 को राज्य सभा की परिवहन पर्यटन और संस्कृति समिति द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट में कहा गया कि “सागरमाला परियोजनाओं के लिए बीई (आवंटित बजट) 2019-20 में 150 करोड़ रुपए का आबंटन किया गया था, जिसमें आरई (संशोधित बजट) 2019-20 स्तर पर कटौती कर 98.26 करोड़ रुपए कर दिया गया, क्योंकि इस परियोजना के अंतर्गत अनुमोदित कई परियोजनाओं का वैधानिक स्वीकृतियों के कारण वित्तपोषण नहीं किया जा सका। इससे कमजोर योजना एवं राजस्व अनुशासन का पता चलता है..।”

अंतर्देशीय जल परिवहन

पत्तन जलमार्ग और नौपरिवहन मंत्रालय के बजट में अंतर्देशीय जल परिवहन को 623 करोड़ रुपए का आबंटन है, वहीँ सागरमाला परियोजना को 401 करोड़ रुपए आवंटित हुए हैं। 2019-20 और 2020-21 में अंतर्देशीय जल परिवहन का संशोधित बजट अनुदानों की मांगो में पेश किये बजट से कम ही रहा है।

ऐसा मुमकिन है इस बार भी संशोधित बजट 623 करोड़ रुपए आवंटित बजट से कम हो। 2017-18 एवं 2018 -19 में, इसके विपरीत, संशोधित बजट आवंटित बजट के मुकाबले ज्यादा पाया गया। इसका कारण जलमार्ग अधिनियम 2016 के लागू होना और जल मार्ग विकास परियोजना में वर्ल्ड बैंक की वित्तीय सहायता है। 

2019-20 में आवंटन की तुलना में संशोधित अनुमान कम किए जाने पर राज्यसभा समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन से सम्बंधित परियोजना के कार्यान्वयन की गति का सही मूल्यांकन किये बिना बड़ी राशि आवंटित की गई।  

अंतर्देशीय जल परिवहन में मुख्य रूप से ‘भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (जो कि इनलैंड वाटरवेज़ ऑथोरिटी ऑफ़ इंडिया (आईडब्ल्यूएआई) भी कहा जाता है) को अनुदान’, अथवा ‘आईडब्ल्यूएआई परियोजना’  शामिल हैं।  भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण को अनुदान से आईडब्ल्यूएआई राष्ट्रीय जलमार्गो में अंतर्देशीय जल परिवहन विकास गतिविधियों का कार्यान्वयन करता है।

‘आईडब्ल्यूएआई परियोजना’ का प्रावधान आईडब्ल्यूएआई की ईएपी परियोजनाओं यानी एक्सटरनली एडेड प्रोजेक्ट्स के लिए है। बजट के विवरण में आईडब्ल्यूएआई परियोजना’  जल मार्ग विकास प्रोजेक्ट - वाराणसी से हल्दिया तक गंगा –भागीरथी – हूगली नदियों पर राष्ट्रीय जलमार्ग -1 की क्षमता वर्ल्ड बैंक की वित्तीय सहायता से बढ़ाने की परियोजना – के तहत विभिन्न उप-परियोजनाएं ही शामिल है।

हालांकि जनवरी 2021 में हूगली नदी पर यात्री एवं माल की ढुलाई के लिए 105 मिलियन डॉलर की एक और परियोजना पर  भारत सरकार, पश्चिम बंगाल की सरकार और वर्ल्ड बैंक के बीच समझौता हुआ है जो बजट के इस विवरण में मौजूद नहीं है। यह अलग मुद्दा है कि जहां एक तरफ हूगली जो कि वर्ल्ड बैंक की जल मार्ग विकास परियोजना  और अर्थ गंगा परियोजना का पहले से ही भाग है, उसी  हूगली नदी पर समान उद्देश्यों पर एक और परियोजना कितनी  सार्थक है।

इस से जुड़ा दूसरा गंभीर चिंतन का विषय है कि सरकार ने 2020 में वर्ल्ड बैंक से जल मार्ग विकास परियोजना के 375 मिलियन डॉलर ऋण में से 57.78 मिलियन डॉलर रद्द करने का अनुरोध किया था। ऐसे में हूगली पर अंतर्देशीय जल परिवहन की सुविधाएं दूसरे वर्ल्ड बैंक प्रोजेक्ट से पूर्ण करना सरकार की जल मार्ग विकास परियोजना पर बचत और आयोजन जनता को भ्रमित करने का तरीका दिखाई पड़ता है।

ध्यान दिया जाए कि दिसंबर 2019 से असम अंतर्देशीय जल परिवहन परियोजना को भी मंजूरी मिल गयी है। यह वर्ल्ड बैंक की 88 मिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता से असम की नदियों पर (जिनमे ब्रह्मपुत्र –राष्ट्रीय जलमार्ग -2 भी शामिल है ) यात्री फेरी क्षेत्र के आधुनिकीकरण करने की परियोजना है।

इस सब से मालूम पड़ता है कि पोत परिवहन मंत्रालय को राज्य सभा की समिति की बजट आवंटन के सही मूल्यांकन की सिफारिशों पर गौर करना चाहिए। इसके साथ शिप रिसाइक्लिंग अथवा सागरमाला, अंतर्देशीय जलमार्ग परियोजनाओं के सामाजिक एवं पर्यावरणीय प्रभावों का सही आंकलन और स्थानीय स्तर पर चर्चा ही इन परियोजनाओं को लम्बे समय तक सार्थक बने रहने में लाभकारी होंगी।

लेखक द्वय मंथन अध्ययन केंद्र से जुड़े हैं

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