सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपने विश्लेषण में पाया कि प्लांट के आसपास हवा में स्टाइरीन की मौजूदगी स्वीकार्य मात्रा से 2500 गुना अधिक रही। विशेषज्ञों के मुताबिक, ये स्थानीय लोगों के लिए खतरनाक हो सकती है। सात मई 2020 की सुबह एलजी पोलिमर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड से स्टाइरीन गैस लीक हुई थी, जिससे हजारों लोग प्रभावित हुए और हवा में इसकी मौजूदगी अब भी सामान्य से बहुत ज्यादा है। मीडिया में आई रिपोर्ट में क्षेत्र में स्टाइरीन का स्तर 2.5 पीपीएम से अधिक होने की बात कही गई थी, जबकि वायुमंडल में इसकी स्वीकार्य मात्रा 5 पीपीबी से कम होनी चाहिए।
आईआईटी बॉम्बे से पीएचडी व वायू प्रदूषण डिस्पर्सन मॉडलर डॉ. अवकाश कुमार कहते हैं, “अगर हम ये मान लें कि लगातार एक घंटे तक गैस लीक होता रहा होगा, तो जब स्टाइरीन लीक हुआ होगा, तो प्लांट के दो किलोमीटर के दायरे में हवा में इसकी मात्रा 20 पीपीएम रही होगी। इसकी वजह से लोग बेहोश होकर गिर पड़े होंगे।”
डॉ कुमार ने अपने अध्ययन में अनुमान लगाया कि स्टोरेज टैंक की क्षमता 2 किलो टन रही होगी और गैस का रिसाव 10 सेंटीमीटर वाली पाइप के जरिए एक घंटे तक हुआ होगा. (नीचे चित्र देखें)
चित्र: स्टाइरीन प्रदूषक के फैलाव का विश्लेषण
नोट: इस अध्ययन में निम्नलिखित अनुमान लगाए गए हैं- इनवर्सन – 100मी, क्लास एफ स्टेब्लिटी, टैंक का तापमान 18 डिग्री सेल्सियस व मौसम के मापदंड
स्रोत: डॉ. अवकाश कुमार, 2020
स्टाइरीन ऐसा रसायन है, जो कैंसर का कारण बन सकता है। ये मानव शरीर में शरीर के चमड़े, आंख व मुख्य तौर पर नाक के रास्ते पहुंचता है। फेफड़े की वायुकोष्ठिका के रास्ते ये खून में पहुंच जाता है। अन्य अंगों की तुलना में फेफड़े के रास्ते खून में स्टाइरीन देर से पहुंचता है। शोध में पता चला है कि शरीर में पहुंचे स्टाइरीन का 86 फीसद हिस्सा यूरिन के रास्ते शरीर से बाहर निकल जाता है। स्टाइरीन का जो हिस्सा पच नहीं पाता है, वो शरीर को नुकसान पहुंचाता है। इससे आंखों में जलन, सुनने में दिक्कत, जठरांत्र में जलन आदि की शिकायत हो सकती है।
लंबे समय तक अगर इस रसायन के संपर्क में रहें, तो ये केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकता है। इस रसायन के प्रभाव को लेकर चूहों व अन्य जानवरों पर बहुत सारे प्रयोग हो चुके हैं, लेकिन मानव शरीर पर बहुत कम प्रयोग किया गया है। स्टाइरीन को संभावित तौर पर कैंसर फैलाने वाला तत्व माना जाता है क्योंकि ये अपने मूल रूप में कैंसर नहीं फैलाता है। स्टाइरीन मूटाजेन होता है, जिसका अर्थ होता है कि ये सेल के डीएनए को बदल देता है, जिससे कैंसरकारक तत्व बनते हैं।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एयर मॉनीटरिंग स्टेशन विशाखापट्टनम जिले में घटनास्थल से 14 किलोमीटर नीचे तीन खतरनाक जैविक योगिक जाइलिन (सी8एच10), बेंजीन (सी6एच6), टोलुईन (सी7एच8) की निगरानी करते हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इन प्रदूषकों की निगरानी नियमित तौर पर हर आधे घंटे के अंतराल पर करता है।
इन आंकड़ों के आधार पर विश्लेषण कर सीएसई ने पाया कि जाइलीन की मात्रा 18 पीपीबी, टोलुईन की मात्रा 35 पीपीबी और बेंजीन की मात्रा 12 पीपीबी है। विशाखापत्तनम से 400 किलोमीटर दूर आंध्रप्रदेश की राजधानी अमरावती में इन प्रदूषकों की मात्रा उसी अवधि में काफी कम मिली। पुराने आंकड़ों से पता चलता है कि विशाखापत्तनम में प्रदूषक तत्व का ये स्तर सामान्य है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, वायुमंडल में हाइड्रोकार्बन की स्वीकार्य मात्रा 5 पीपीबी (सलाना औसत) है।
स्वास्थ्य व सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खतरनाक जैविक यौगिक की निगरानी जरूरी है। अमरीकन लंग एसोसिएशन के मुताबिक खतरनाक जैविक योगिक “खुद में नुकसानदेह है और कुछ कैंसर का कारण भी बन सकता है। इसके साथ ही ये वायुमंडल में जाकर दूसरे गैसों के साथ प्रतिक्रिया कर दूसरे तरह के वायु प्रदूषक बनाते हैं।”