विशाखापट्टनम गैस लीक : स्टाइरीन से मौत होना बड़े खतरे का संकेत
“थर्मोकोल से हम सब परिचित हैं। प्लास्टिक कप में चाय और प्लास्टिक प्लेट में खाना भी खाते हैं लेकिन इसे बनाने वाले रसायन स्टाइरीन से अचानक मौत ने अचंभित कर दिया है। यह तंत्रिका तंत्र पर असर डालने वाला न्यूरोटॉक्सिक है और लंबे समय तक इसकी जद में आए लोगों में बाद में लीवर रोग और कैंसर भी पैदा हो सकता है।“
आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में 7 मई, 2020 को एलजी पॉलिमर्स कंपनी से हुई गैस लीक मामले में टॉक्सिक लिंक संस्था के सतीश सिन्हा ने डाउन टू अर्थ से यह बात कही।
एलजी पॉलिमर्स ने 1996 में हिंदुस्तान पॉलिमर नाम की कंपनी का अधिग्रहण किया था। उस वक्त आस-पास का बफर जोन क्या था, आबादी थी या नहीं। प्लांट लगने के बाद अगर आबादी बसी तो किस आधार पर? या फिर रिहायश के पास ही कंपनी को चलाने की इजाजत दी गई तो परियोजना का पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन किया गया या नहीं?
सतीश सिन्हा ने बताया कि यह ध्यान देने लायक तथ्य है कि स्टाइरीन से अचानक मौत हुई है। यह अचरज में डालने वाला है। ऐसा तभी संभव है कि केमिकल बहुत ही ज्यादा मात्रा या कंसट्रेटेड फॉर्म में था जो आधी रात (2 से 2:30 बजे के बीच) को लीक होने के बाद वातावरण में फैला। लोग काफी देर तक इस जहरीली गैस को सांस के जरिए भीतर तक खींचते रहे। ऑक्सीजन की कमी हुई और फिर वह कोमा में चले गए और उनकी मृत्यु हो गई। अभी तक यह बताया गया है कि 5,000 टन के दो टैंक थे जिनसे यह लीकेज हुआ है। इस रसायन का दुष्प्रभाव यह है कि बिना प्रोटेक्शन इसकी जद में आते ही लोग मूर्छित हो जाते हैं और नियंत्रण खो देते है।
अब यह गहराई से जांच का विषय है कि आखिर कितनी गैस लीकेज हुई है? बहुत सारे केमिकल होते हैं जिनका प्लास्टिक (पॉलिमर) में इस्तेमाल किया जाता है। मोनोमर यानी एक अणु दूसरे अणु से जुड़कर पॉलीमर (बहुलक) बनता है। जब मोनोमर से पॉलिमर बनाते हैं तो बहुत सारे एडिटिव जोड़े जाते हैं। स्टाइरीन (मोनोमर) से पॉलिस्टराइन (पॉलिमर) बनता है। नेफ्था के साथ पॉलिस्टराइन बनाया जाता है। जैसे थर्मोकोल एक पॉलिस्टराइन है। भारत में कई रासायनिक औद्योगिक हादसे होते हैं लेकिन कानूनों की अधिकता और उनका पालन न किए जाने से इसका खतरा काफी अधिक बढ़ गया है। भोपाल गैस हादसे के बाद यह दूसरा बड़ा गैस लीक हादसा है जिसमें रिहायश को काल के गाल में समाना पड़ा है।