एक तरह के यातायात से होने वाले वायु प्रदूषण से खतरनाक कण निकलते हैं जिन्हें पार्टिकुलेट मैटर कहा जाता है। यह मनोभ्रंश या डिमेंशिया के बढ़ते खतरे से जुड़ा हो सकता है। शोधकर्ताओं ने विशेष रूप से सूक्ष्म कण पीएम 2.5 को देखा, जो हवा में बिखरे 2.5 माइक्रोन से कम व्यास के प्रदूषक कण होते हैं। मेटा विश्लेषण में वायु प्रदूषण और मनोभ्रंश के खतरे पर सभी उपलब्ध अध्ययन शामिल किए गए थे।
अध्ययनकर्ता एहसान अबोलहासानी ने कहा जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, लोगों में मनोभ्रंश जैसी स्थितियां अधिक सामान्य होती जा रही हैं, इसलिए रोकथाम योग्य खतरे वाले कारणों का पता लगाना और समझना इस बीमारी के बढ़ने को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है। एहसान अबोलहासानी, लंदन के वेस्टर्न यूनिवर्सिटी में शोधकर्ता हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक दुनिया की 90 फीसदी से अधिक आबादी वायु प्रदूषण के निर्धारित स्तर से अधिक प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रह रही है।
मेटा-विश्लेषण के लिए, शोधकर्ताओं ने 17 अध्ययनों की समीक्षा की। जिसमें प्रतिभागियों की उम्र 40 से अधिक थी। सभी अध्ययनों में 9.1 करोड़ से अधिक लोग थे। उनमें से, 55 लाख या 6 फीसदी लोगों को मनोभ्रंश की बीमारी हुई।
अध्ययन में कई कारणों को शामिल किया गया है जो उम्र, लिंग, धूम्रपान और शिक्षा सहित किसी व्यक्ति के मनोभ्रंश के खतरे को प्रभावित करते हैं।
शोधकर्ताओं ने मनोभ्रंश के साथ और बिना दोनों लोगों के लिए वायु प्रदूषण जोखिम की दरों की तुलना की और पाया कि जिन लोगों में मनोभ्रंश की बीमारी नहीं हुई थी, उनमें मनोभ्रंश वाले लोगों की तुलना में सूक्ष्म कण वायु प्रदूषकों का रोज होने वाले औसत खतरे से कम था। अमेरिका की पर्यावरण प्रदूषण एजेंसी (ईपीए) 12 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक के औसत वार्षिक जोखिम को सुरक्षित मानती है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि सूक्ष्म कण पदार्थ के संपर्क में हर एक माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर वृद्धि से मनोभ्रंश का जोखिम 3 फीसदी बढ़ जाता है।
अबोलहसानी ने कहा कि जबकि हमारा मेटा-विश्लेषण यह साबित नहीं करता है कि वायु प्रदूषण से मनोभ्रंश होता है, यह केवल एक जुड़ाव दिखाता है, हमारी आशा है कि ये निष्कर्ष लोगों को प्रदूषण के जोखिम को कम करने में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए सशक्त बनाएंगे।
वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से मनोभ्रंश के खतरे को समझकर, लोग खतरे को कम करने के लिए कदम उठा सकते हैं, जैसे कि स्थायी ऊर्जा का उपयोग करना, प्रदूषण के निम्न स्तर वाले क्षेत्रों में रहना और आवासीय क्षेत्रों में कम प्रदूषण वाले यातायात की हिमायत करना।
अबोलहसानी ने कहा कि मेटा-विश्लेषण की एक सीमा इस विशिष्ट विषय पर उपलब्ध अध्ययनों की कम संख्या थी और इसमें और अध्ययन की जरूरत है। यह अध्ययन अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी के मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ है।