खुले नाले से जहरीली गैस का रिसाव मामला : बहाली का प्लान तैयार लेकिन डीजेबी और एमसीडी ने नहीं भरा 50 करोड़ का जुर्माना

डीजेबी और एमसीडी ने जुर्माना भरने के बजाए एनजीटी में पुनर्विचार याचिका दायर की है, सीपीसीबी ने कहा कि एनजीटी के अगले आदेश का इंतजार
दिल्ली की यमुना में झाग, प्रतीकात्मक छवि : आईस्टॉक
दिल्ली की यमुना में झाग, प्रतीकात्मक छवि : आईस्टॉक
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दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) और नगर निगम दिल्ली (एमसीडी) पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) द्वारा लगाए गए 50.46 करोड़ रुपये के पर्यावरणीय जुर्माने का भुगतान अब तक नहीं किया गया है। दोनों निकायों ने जुर्माने की रकम जमा करने के बजाय नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में पुनर्विचार याचिका दायर कर दी है।

एनजीटी ने दोनों एजेंसियों पर 21 नवंबर 2024 को जुर्माने का आदेश जारी किया था, जिसमें दोनों को संयुक्त रूप से 50.46 करोड़ रुपये का जुर्माना भरने के निर्देश दिए गए थे। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 17 मार्च, 2025 को एनजीटी में दाखिल अपनी अनुपालन रिपोर्ट में यह बताया है। एनजीटी की यह रिपोर्ट 24 मार्च, 2025 को अपलोड की गई।

एनजीटी ने यह जुर्माना दिल्ली के ग्रेटर कैलाश-I (उत्तर) क्षेत्र में 25 वर्षों से (1990 से ) जारी अपशिष्ट जल के अनुचित निस्तारण और पर्यावरणीय क्षति के चलते लगाया गया था।

एनजीटी में जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली पीठ ने बीते वर्ष 21 नवंबर को दिए गए अपने आदेश में कहा था कि दोनों एजेसियों को 50.46 करोड़ रुपये (प्रत्येक पर 25.23 करोड़ रुपये) का जुर्माना केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को जमा करना होगा। साथ ही इस जुर्माने की रकम दिल्ली में पर्यावरणीय क्षति की भरपाई के लिए इस्तेमाल की जाएगी।

वहीं, पीठ ने कहा था कि सीपीसीबी को दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी), वन विभाग और पर्यावरण मंत्रालय के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर एक बहाली योजना तैयार करनी होगी।

पीठ ने कहा था कि यह बहाली योजना एक महीने के भीतर तैयार कर ली जाए और अगले दो महीनों में इसे लागू किया जाए।

यमुना को प्रदूषित करने वाले नालों का यह मामला 1990 से अदालत में चल रहा है। स्थानीय निवासियों ने शिकायत की थी कि डीजेबी द्वारा असंशोधित (अशुद्ध) सीवेज को नजदीकी बरसाती नालों में छोड़ा जा रहा है। इससे जहरीली गैसें उत्पन्न हो रही थीं, जिससे क्षेत्र के लोगों को स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था।

इस मामले को एनजीटी में ग्रेटर कैलाश-I (उत्तर) आरडब्ल्यूए एनजीटी के समक्ष उठाया था। याचिका में कहा गया कि इस नाले का अधिकतर हिस्सा ढक दिया गया था, लेकिन बी-159 से बी-187 तक का 14209.776 वर्ग मीटर का भाग अब भी खुला है, जिससे लगातार जहरीली गैसों का रिसाव हो रहा है।

एनजीटी ने इस मामले को गंभीर पर्यावरणीय उल्लंघन मानते हुए डीजेबी और एमसीडी को जिम्मेदार ठहराया और भारी जुर्माना लगाने का आदेश दिया।

एनजीटी के आदेश के बाद सीपीसीबी ने 13 जनवरी 2025 को दोनो एजेंसियों को पत्र भेजकर 50.46 करोड़ रुपये जमा करने को कहा।

इसके जवाब में डीजेबी ने 13 फरवरी 2025 को सीपीसीबी को पत्र लिखकर बताया कि उन्होंने एनजीटी में पुनर्विचार याचिका दायर कर दी है।

वहीं, एमसीडी ने 7 फरवरी 2025 को पत्र भेजकर सूचित किया कि उन्होंने भी 18 दिसंबर 2024 को एनजीटी में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी थी।

वहीं, अब एनजीटी में दाखिल अनुपालन रिपोर्ट में सीपीसीबी ने इन तथ्यों के हवाले से कहा है कि वे एनजीटी के अगले आदेश का इंतजार करेंगे और अनुपालन के लिए प्रतिबद्ध हैं।

सीपीसीबी ने बताया है कि उन्होंने एनजीटी के द्वारा गठित संयुक्त समिति के साथ मिलकर बहाली योजना तैयार कर ली है, जिसमें दिल्ली में पर्यावरणीय क्षति को कम करने और नाले को सुधारने के उपाय शामिल हैं। हालांकि, जुर्माने की राशि जमा न होने के कारण इस बहाली योजना को लागू करने में देरी हो रही है।

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