
राजस्थान में प्रधानमंत्री जी-वन योजना के तहत जैव ईंधन परियोजनाओं की स्थापना
संसद बजट सत्र के दूसरे चरण की आज, यानी 10 मार्च से शुरुआत हो चुकी है। इस बीच सदन में पूछे गए एक सवाल के जवाब में, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय में राज्य मंत्री सुरेश गोपी ने राज्यसभा में अपना लिखित जवाब दिया। जिसमें उन्होंने कहा सरकार ने लिग्नोसेल्यूलोसिक बायोमास और अन्य नवीकरणीय फीडस्टॉक का उपयोग करके देश में उन्नत जैव ईंधन परियोजनाओं की स्थापना के लिए एकीकृत जैव-इथेनॉल परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु “प्रधानमंत्री जी-वन (जैव ईंधन- वातवरण अनुकूल उपचार अवशेष निवारण) योजना” 2019 को अधिसूचित किया था, जिसे 2024 में संशोधित किया गया है।
इस योजना के तहत कुल 14 व्यावसायिक पैमाने के प्रस्ताव और आठ प्रदर्शन पैमाने के प्रस्ताव अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किए गए थे, जिनमें से आठ व्यावसायिक पैमाने के प्रस्ताव और चार प्रदर्शन पैमाने के प्रस्तावों को मंजूरी दे दी गई है। राजस्थान से इस योजना के तहत कोई प्रस्ताव प्राप्त नहीं हुआ है।
महाकुंभ मेले में सीवेज प्रबंधन
महाकुंभ मेले में सीवेज प्रबंधन को लेकर सदन में उठाए गए एक प्रश्न का उत्तर देते हुए, जल शक्ति राज्य मंत्री राज भूषण चौधरी ने राज्यसभा में बताया कि प्रयागराज में 10 एसटीपी चालू थे, जिनकी कुल क्षमता 340 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) थी, जो उत्पन्न सीवेज के उपचार के लिए थे।
कुंभ पूर्व निगरानी के दौरान, 78 प्रथम श्रेणी के नालों की निगरानी की गई। इनमें से 44 नालों को टैप किया गया और 34 को अनटैप किया गया। सभी अनटैप किए गए नालों को टैप किया गया, अपशिष्ट जल को डायवर्ट किया गया और एसटीपी या जियो ट्यूब एडवांस ऑक्सीडेशन तकनीक के माध्यम से उपचारित किया गया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रयागराज में नदियों में कोई भी अनुपचारित अपशिष्ट जल न बहाया जाए।
महाकुंभ 2025 के दौरान स्वच्छता व्यवस्था के लिए, पर्याप्त संख्या में एफआरपी शौचालय, प्रीफैब स्टील शौचालय, मूत्रालयों की तैनाती की गई, साथ ही मौजूदा एसटीपी के माध्यम से सीवेज व अपशिष्ट जल के संग्रह और उपचार की व्यवस्था की गई और मल कीचड़ उपचार संयंत्रों का विकास किया गया।
महाकुंभ 2025 के दौरान ठोस अपशिष्ट के प्रबंधन के लिए कचरा पात्र, टिपर, कॉम्पैक्टर सहित व्यापक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली को पर्याप्त स्वच्छाग्रहियों के साथ तैनात किया गया था। संपूर्ण अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली की निगरानी एकीकृत कमांड और नियंत्रण केंद्र और तीसरे पक्ष की निरीक्षण एजेंसियों के माध्यम से की गई थी।
महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में गंगा और यमुना नदी के संगम पर पानी की गुणवत्ता
संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में आज, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने लोकसभा में कहा कि माननीय एनजीटी के आदेश के अनुपालन में, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 12 जनवरी, 2025 से गंगा और यमुना नदी के संगम स्थल सहित श्रृंगवेरपुरघाट से दीहाघाट तक के सात जगहों की सप्ताह में दो बार नियमित जल गुणवत्ता निगरानी की, जिसमें ऐसे स्नान दिवसों के पूर्व और पश्चात के दिन शामिल हैं।
इसके बाद, सीपीसीबी ने तीन, फरवरी, 2025 को माननीय एनजीटी के समक्ष अपनी शुरुआती निगरानी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें 12 से 26 जनवरी, 2025 के दौरान एकत्र नदी जल गुणवत्ता के आंकड़ों, जिसमें प्रयागराज में स्थापित 10 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और सात जियोसिंथेटिक डीवाटरिंग ट्यूब (जियो-ट्यूब) फ़िल्टरेशन के निगरानी के आंकड़े शामिल हैं, इसकी रिपोर्ट की गई।
इसके अलावा सीपीसीबी ने पानी की गुणवत्ता के आंकड़ों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए 21 फरवरी, 2025 से तीन और जल गुणवत्ता निगरानी स्थानों को जोड़ा और निगरानी आवृत्ति को बढ़ाकर हर दिन दो बार कर दिया, इस प्रकार जल गुणवत्ता निगरानी जगहों की कुल संख्या 10 हो गई है।
केरल में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
केरल में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को लेकर उठाए गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने लोकसभा में कहा कि केरल की 2023 से 2030 की अवधि के लिए जलवायु परिवर्तन पर संशोधित राज्य कार्य योजना (एसएपीसीसी 2.0) के अनुसार, केरल में गर्मी और सर्दी दोनों मौसमों में मध्यम गर्मी की प्रवृत्ति देखी गई है, साथ ही सालाना बारिश में भी कमी आई है।
अनुमानों से पता चलता है कि मॉनसून से पहले, मानसून और सर्दियों के मौसम में बारिश में वृद्धि देखी गई है। इसके अलावा, सभी जिलों में भारी बारिश जैसी चरम मौसम की घटनाएं और भी अधिक होने की आशंका है।
वन भूमि में बदलाव
सदन में उठे एक पश्न के उत्तर में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने लोकसभा में बताया कि कैम्पा की शुरुआत से लेकर दिसंबर, 2024 तक बिना वनीय उपयोग के लिए वन भूमि के डायवर्सन या बदलाव के एवज में विभिन्न उपयोगकर्ता एजेंसियों से प्रतिपूरक शुल्क के रूप में 94,843.60 करोड़ रुपये की राशि प्राप्त हुई है।
इन प्रतिपूरक शुल्कों का उपयोग प्रतिपूरक वनीकरण और वन भूमि तथा पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के नुकसान की भरपाई के लिए वनों की गुणवत्ता में सुधार के लिए किया जाता है। ये निधियां भारत के लोक लेखा तथा संबंधित राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के लोक लेखा में रखी जाती हैं।