झरिया: कभी हरे भरे थे पहाड़, आज धधकती आग और सुनसान खदानों के साए में रह रहे हैं लोग

भारत के पूर्वी राज्य झारखंड का झरिया क्षेत्र कभी हरे-भरे पहाड़ों से घिरा था। कभी इस क्षेत्र में जिंदगी खुशहाल थी। लेकिन आज लोग यहां सुनसान खदानों और धधकती आगे के साए में रह रहे हैं
झरिया: कभी हरे भरे थे पहाड़, आज धधकती आग और सुनसान खदानों के साए में रह रहे हैं लोग
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एक बार फिर झारखंड का झरिया चर्चा में है। यहां खदान में चाल धंसने के कारण दो लोगों की मौत हो गई। आखिर झरिया क्यों लोगों की कब्रगाह बनता जा रहा है। इस रिपोर्ट से समझें- 

भारत के पूर्वी राज्य झारखंड का झरिया क्षेत्र कभी हरे-भरे पहाड़ों से घिरा था। कभी इस क्षेत्र में जिंदगी खुशहाल थी। लेकिन आज लोग यहां सुनसान खदानों और धधकती आगे के साए में रह रहे हैं। एक तरफ जमीन धंसने का खतरा, वहीं दूसरी ओर धधकते कोयले से होता प्रदूषण लोगों की जान ले रहा है।

आइए जानते हैं झरिया से जुड़े कुछ अहम सवालों के जवाब

कहां हैं है झरिया? क्यों है अनूठा?

झरिया, भारत के पूर्वी राज्य झारखंड के धनबाद जिले में स्थित है। देखा जाए तो झरिया एक अनूठी कोयला बेल्ट है। जहां दुनिया भर की कोयला खदानों में सबसे अच्छी गुणवत्ता का कोयला जमीन से करीब 300 मीटर नीचे है, वहीं झरिया में यह सतह के करीब ही है।

 इससे भूमिगत आग या अवैज्ञानिक तरीके से किए खनन की स्थिति में जमीन धंसने की आशंका बढ़ जाती है। झरिया में पहले भी जमीन धंसने और लोगों के हताहत होने के कई मामले सामने आ चुके हैं।

क्यों सुर्खियों में रहा है यह क्षेत्र

यह क्षेत्र अपने कोयला खदानों के लिए प्रसिद्ध है। झरिया में खनन का एक लंबा इतिहास रहा है, जहां 1894 से खनन किया जा रहा है। यहां की अर्थव्यवस्था कोक बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले स्थानीय कोयला क्षेत्रों पर बहुत अधिक निर्भर है। गौरतलब है कि यहां बेहतर क्वालिटी का कोयला सतह के करीब ही पाया जाता है।

कब से और क्यों धधक रहा है झरिया?

झरिया एक ऐसा इलाका है, जहां की जमीन पिछले 100 सालों से धधक रही है। ऐसा वहां जमीन के अंदर मौजूद कोयले की वजह से हो रहा है। यहां जमीन में मौजूद कोयले की वजह से अंदर ही अंदर आग जलती रहती है। जमीन धंसने और आग को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय कोयला मंत्रालय के तहत 1922 में पहली समिति का गठन किया गया था।

खतरे की जद में हैं कितने लोग?

डाउन टू अर्थ में 2009 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि झरिया शहर और उसके आसपास के 450,000 लोगों को जमीन में लगी आग से खतरा है।

खनन ने कृषि से लेकर स्वास्थ्य पर डाला है असर

झरिया में अत्यधिक खनन की वजह से जमीन बंजर हो गई है। इतना ही नहीं छोड़ी गई कोयला खदानों के कारण भूमि धंसने से वहां के लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया था। जमीन में मौजूद कोयले की वजह से लंबे समय से आग भड़की हुई है, जो वहां रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही है। इतना ही नहीं यह वहां के पर्यावरण पर भी व्यापक असर डाल रहा है।

कैसे प्रभावित कर रही है यह आग?

झरिया में लगी इस आग से जो प्रदूषण हो रहा है वो हवा, पानी और जमीन को दूषित कर रहा है। इससे निकलने वाले धुएं में कार्बन, नाइट्रोजन और सल्फर जैसी जहरीली गैसें होती हैं, जो पार्टिकुलेट मैटर के साथ मिलकर फेफड़ों और त्वचा के रोगों का कारण बनती हैं।

प्रदूषण के कण सांस सम्बन्धी रोगों जैसे क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और अस्थमा को बढ़ा सकते हैं। साथ ही यह गैसें ग्लोबल वार्मिंग में भी योगदान देती हैं। इतना ही नहीं यह आग, वहां मौजूद पानी को भी दूषित कर रही है। इसकी वजह से पानी में अम्लता बढ़ रही है। ऐसा कोयले में मौजूद सल्फर की एक निश्चित मात्रा के कारण हो रहा है।

मुद्दा कितना गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सर्वोच्च न्यायलय को भी लोगों के पुनर्वास के लिए कहना पड़ा था।

कैसे लोगों की सेहत को प्रभावित कर रहा है खदानों में बचा कोयला?

बंद पड़ी खदानों में जो कोयला बचा है। यहां के स्थानीय उस कोयले को बेच अपनी जीविका कमा रहे हैं। इस कोयले को बेच यह लोग हर दिन 120 रूपए तक कमा लेते हैं लेकिन इसकी कीमत उन्हें अपने स्वास्थ्य के रूप में चुकानी पड़ रही है। इसकी वजह से लोगों को सूजन के साथ अन्य बीमारियां हो रही हैं।

धधकती आग और जहरीली गैसों के बावजूद क्यों अपने घरों को छोड़कर जाना नहीं चाहते लोग?

डाउन टू अर्थ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक लोगों के इस क्षेत्र को न छोड़ने के पीछे कई वजह हैं। पहली तो लोगों का कहना है कि उन्हें जो मकान दिए जा रहे हैं वो बहुत छोटे हैं। इसके अलावा लोग अपनी जीविका के लिए बड़े पैमाने पर कोयला खदानों में बचे कोयले पर निर्भर हैं। ऐसे में यदि वो इस जगह को छोड़कर जाते हैं तो उन्हें इस बात की चिंता है कि वो अपने लिए रोजी-रोटी का इंतजाम कैसे करेंगे।

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