सिकुड़ रही कश्मीर घाटी की झीलें, इंसानी हस्तक्षेप के चलते पानी की गुणवत्ता में भी आ रही गिरावट

रिसर्च से पता चला है कि जहां डल झील के आकार में 25 फीसदी तक की गिरावट आई है। वहीं वुलर झील का जल क्षेत्र भी एक चौथाई सिकुड़ गया है
डल झील पर तैरता सब्जी बाजार, फोटो: आईस्टॉक
डल झील पर तैरता सब्जी बाजार, फोटो: आईस्टॉक
Published on

कश्मीर घाटी में मौजूद झीलें पिछले कुछ वर्षों में तेजी से सिकुड़ रहीं हैं। साथ ही इन झीलों में मौजूद पानी की गुणवत्ता भी तेजी से गिर रही है। यह जानकारी नासा अर्थ ऑब्जर्वेटरी द्वारा साझा की गई रिपोर्ट में सामने आई है। इन झीलों में कश्मीर को दो बेहद प्रसिद्ध झीलें डल और वुलर शामिल हैं। यह झीलें हिमालय के ऊंचे पहाड़ों से घिरी हैं जो कश्मीर घाटी में पहले मौजूद बड़ी झीलों का ही अंश हैं।

नासा के मुताबिक यह दोनों झीलें हिमालय के ग्लेशियरों से आने वाले पानी और झेलम के किनारे बहने वाले पानी के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। साथ ही पीने के पीने और सिचाई के लिए जल की व्यवस्था करती हैं।

इनमें से यदि डल झील की बात करें तो वो दोनों झीलों में तुलनात्मक रूप से छोटी है। लेकिन यह अपने आप में एक छोटा सा शहर है। इस झील पर ने केवल तैरती हाउसबोट हैं बल्कि साथ ही स्कूल, बाजार और पोस्ट ऑफिस तक है। यह झील श्रीनगर के केंद्र में स्थित है। यह पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का बड़ा केंद्र है। 16 वीं और 17 वीं शताब्दी में मुगल बादशाह इस झील की खूबसूरती से इतना ज्यादा प्रभावित हुए थे कि उन्होंने इसके चारों और सीढ़ीदार बगीचों का निर्माण करवाया था।

रिसर्च से पता चला है कि जिस तरह से इस क्षेत्र में भूमि उपयोग में बदलाव आ रहा है उसका खामियाजा इस झील को भी उठाना पड़ रहा है। अक्टूबर 2018 में जर्नल एसएन एप्लाइड साइंसेज में प्रकाशित एक रिसर्च के मुताबिक इस बेसिन में हो रहे शहरी विकास के चलते जिस तरह से भूमि उपयोग में बदलाव आ रहा है, उसकी वजह से झील की पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है। साथ ही इसका असर झील के आकार पर भी पड़ रहा है।

रिपोर्ट के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक डल झील का आकार 1980 से 2018 के बीच पिछले 38 वर्षों में 25 फीसदी तक घट गया है। इतना ही नहीं यह झील बढ़ते प्रदूषण, अतिक्रमण जैसे खतरों का भी सामना कर रही है। साथ ही इसके जलग्रहण क्षेत्र में डाले जा रहे सीवेज और कचरे के कारण झील के पारिस्थितिकी तंत्र पर असर पड़ा है। इसकी वजह से पानी की पारदर्शिता में 70 फीसदी की कमी आई है।

हालांकि डल झील के बारे में सरकार का कुछ और ही कहना है मार्च 2023 में जम्मू कश्मीर में झीलों की स्थिति और संरक्षण के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय का कहना है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान, डल झील की साफ सफाई और सौंदर्यीकरण पर 23,900 लाख रूपए खर्च किए गए हैं। इससे झील के पानी की गुणवत्ता में सुधार आया है।

प्रदूषण से लेकर अतिक्रमण और जलवायु में आते बदलावों का सामना कर रही झीलें

वहीं वुलर झील की बात करें जो न केवल जम्मू कश्मीर बल्कि भारत की भी सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है। यह झील एशिया की सबसे बड़ी झीलों में से एक है। जो जम्मू कश्मीर के बांडीपोरा में है। यह झील झेलम नदी के रास्ते में पड़ती है जो उसके पानी का स्रोत भी है।

यह झील करीब 45-वर्ग-किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है जो आसपास के क्षेत्रों में ताजे पानी के साथ-साथ लोगों के लिए जीविका और आहार भी उपलब्ध कराती है। इस झील के किनारे पर कई वेटलैंड स्थिति हैं। जो बत्तख, हंस, समुद्री पक्षियों और सारस के साथ कई प्रवासी पक्षियों के लिए आवास प्रदान करती है। जैवविविधता और जीविका के लिए इसके महत्व को देखते हुए इस झील को 1990 में रामसर इंटरनेशनल ने अंतराष्ट्रीय महत्त्व की आद्रभूमि के रूप में नामित किया था।

इस झील की नासा ने जो तस्वीरें साझा की हैं उनमें इसके पूर्वी हिस्से में चमकीली हरी वनस्पति को देखा जा सकता है। गौरतलब है कि पिछले कुछ दशकों के दौरान झील में तलछट और पोषक तत्वों के प्रवाह के चलते शैवाल और जलीय वनस्पति में तेजी से वृद्धि हुई है।

यही वजह है कि यह झील अब यूट्रोफिकेशन से जूझ रही है। यह एक ऐसी स्थिति है जब पानी में पौधों और शैवाल की बहुत ज्यादा वृद्धि हो जाती है जिसकी वजह से जलीय वातावरण में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है।

इस क्षेत्र में जिस तरह से जंगलों को काट कर शहरों में कंक्रीट बढ़ रहा है। उसका खामियाजा इस झील को भी भुगतना पड़ रहा है। भूमि उपयोग में आते बदलाव से इस झील में तलछट में वृद्धि हुई है। साथ ही शहरी क्षेत्रों से इस झील में डाले जा रहे दूषित पानी से झील में पोषक तत्वों की मात्रा में वृद्धि हो रही है। इससे झील के पानी की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है।

इसे समझने के लिए भारतीय शोधकर्ताओं ने झील के पानी की गुणवत्ता और लैंडसेट उपग्रहों से प्राप्त जानकारी के का विश्लेषण किया है। इस रिसर्च से पता चला है कि 2018 में वुलर झील का करीब 57 फीसदी हिस्सा यूट्रोफिकेशन से पीड़ित था।

रिसर्च के अनुसार पोषक तत्वों से भरपूर तलछट और जलीय वनस्पतियों ने झील के कुछ हिस्सों को भर दिया था, जो हाल के दशकों में इसके सिकुड़ने की वजह बना है। 2022 में वैज्ञानिकों द्वारा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एलआईएसस-IV सेंसर से प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि 2008 से 2019 के बीच वुलर झील का खुला जल क्षेत्र आकार में एक-चौथाई सिकुड़ गया है।

ऐसा नहीं है कि केवल इंसानी हस्तक्षेप के चलते केवल जम्मू कश्मीर में मौजूद झीलों का आकार घट रहा है। हाल ही में  जर्नल साइंस में प्रकाशित एक रिसर्च से पता चला है कि हम इंसानों की वजह से दुनिया की आधे से ज्यादा झीलें तेजी से सिकुड़ रही हैं। यह झीलें 1992 से हर साल औसतन करीब 21.5 गीगाटन पानी खो रही हैं।

इस अध्ययन के मुताबिक भारत में 30 से ज्यादा बड़ी झीलों में पानी घट रहा है। इनमें दक्षिण भारत की 16 बड़ी झीलें भी हैं, जिनमें मेत्तूर, कृष्णराजसागर, नागार्जुन सागर और इदमलयार आदि शामिल हैं। 

वैज्ञानिकों की मानें तो दुनियाभर में झीले जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के साथ बड़ी तेजी से पानी खो रही हैं। एक रिसर्च के मुताबिक हर साल झीलों और जलाशयों से करीब 1,500 क्यूबिक किलोमीटर पानी भाप बनकर उड़ रहा है। इतना ही पानी के इस वाष्पीकरण की दर में हर साल 3.12 क्यूबिक किलोमीटर की दर से तेजी आ रही है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in