पूर्वी कर्नाटक के भूजल में यूरेनियम की मात्रा तय सीमा से कई गुणा अधिक पाई गई : अध्ययन

वैज्ञानिकों ने पाया कि तुमकुर और चित्रदुर्ग जिलों के एक-एक गांव में, कोलार में पांच और चिक्काबल्लापुर जिले के सात गांवों में यूरेनियम की मात्रा 1,000 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से अधिक थी।
पूर्वी कर्नाटक के भूजल में यूरेनियम की मात्रा तय सीमा से कई गुणा अधिक पाई गई : अध्ययन
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कर्नाटक भारत का छठा सबसे बड़ा राज्य है। इसका क्षेत्रफल 191,791 वर्ग किमी है और जनसंख्या लगभग 6.84 करोड़ है। राज्य को 30 जिलों में बांटा गया है। यह अध्ययन पूर्वी कर्नाटक में किया गया है। पूर्वी कर्नाटक का इलाका 92,000 वर्ग किमी में फैला हुआ है।

58 वर्षों के वर्षा के आंकड़ों के आधार पर कर्नाटक में जलवायु परिवर्तन परिदृश्य पर एक रिपोर्ट में पाया गया है कि पूर्वी कर्नाटक के दक्षिण-पूर्वी भाग में बारिश में 8 फीसदी की वृद्धि हुई जबकि उत्तरी भाग में 1 फीसदी की गिरावट देखी गई है। औसत वार्षिक वर्षा के 650 मिमी होने का अनुमान लगाया गया। हालांकि, पिछले दो दशकों के दौरान वर्षा वितरण असमान रहा है।

राज्य मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम मानसून पर निर्भर रहता है, मॉनसूनी बारिश में अंतर के चलते राज्य में सूखा पड़ा है। पिछले दो दशकों (2001-19) में, लगभग 80 फीसदी तालुका (तहसील) सूखाग्रस्त हो गए हैं। सूखा प्रभावित क्षेत्रों का एक बड़ा हिस्सा कर्नाटक के उत्तरी भाग में स्थित है।

राज्य के पूर्वी भाग का क्षेत्रफल का लगभग 4.85 फीसदी  है, जसमें बहुत कम वन क्षेत्र है। पूर्वी कर्नाटक में 15 प्रशासनिक जिले हैं और राज्य की राजधानी बेंगलुरु और इसके उपनगरों को छोड़कर, लगभग 2.5 करोड़ की आबादी है। इस आबादी का अधिकांश हिस्सा ग्रामीण है।

निर्भरता के आधार पर, 85 फीसदी आबादी, यानी लगभग 2 करोड़ लोग, पीने और कृषि के लिए सीधे भूजल पर निर्भर हैं। केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) ने अनुमान लगाया है कि 2018-19 में, राज्य के लगभग 25 फीसदी क्षेत्र में भूजल का अत्यधिक दोहन हुआ था। कर्नाटक के इस अतिशोषित भाग का अधिकांश भाग राज्य के पूर्वी भाग में स्थित है।

भूजल पर आधारित सिंचाई, अनियमित वर्षा पैटर्न, शहरी विकास, कई सूखे के बाद भूजल की बढ़ती मांग, सभी के कारण जल स्तर में गिरावट आई है, खासकर कर्नाटक के पूर्वी हिस्से में।

अध्ययन में कर्नाटक के पूर्वी हिस्से के 73 गांवों के भूजल का रासायनिक विश्लेषण किया गया। इनमें से 78 फीसदी स्थानों में यूरेनियम की मात्रा अधिक पाई गई और इसका स्तर असुरक्षित पाया गया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के द्वारा निर्धारित सुरक्षा सीमा 30 माइक्रोग्राम प्रति लीटर है, जबकि भारत के परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड ने प्रति लीटर 60 माइक्रोग्राम की उच्च सुरक्षा सीमा निर्धारित की है।

यह अध्ययन दिवेचा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) और सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च इन एनवायर्नमेंटल रेडियोधर्मिता, मैंगलोर यूनिवर्सिटी द्वारा किया गया है। अध्ययन में प्रदूषण के लिए प्राकृतिक कारणों को जिम्मेदार ठहराया गया है न कि मानवजनित गतिविधियों को।

अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने राज्य के पूर्वी हिस्से के 73 गांवों का सर्वेक्षण किया। उन्होंने पाया कि 57 गांवों में यूरेनियम की मात्रा 30 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से अधिक थी, जबकि उनमें से 48 में 60 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से अधिक की सांद्रता पाई गई।

वैज्ञानिकों ने पाया कि तुमकुर और चित्रदुर्ग जिलों के एक-एक गांव में, कोलार में पांच और चिक्काबल्लापुर जिले के सात गांवों में यूरेनियम की मात्रा 1,000 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से अधिक थी। 

यूरेनियम के संपर्क में आने से स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। तत्काल प्रभाव में  सिरदर्द, बुखार, उल्टी आना शामिल है। हालांकि, लंबे समय तक इसके सम्पर्क में जहां महीनों से लेकर वर्षों तक रहने पर, लीवर, हड्डियों और फेफड़ों का कैंसर हो सकता है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि कोई भी बोरवेल जहां से पानी का नमूना लिया गया था, वह कहीं भी परमाणु सुविधाओं या शहरी अपशिष्ट निपटान के आस-पास का इलाका नहीं था।

भूजल में यूरेनियम की मात्रा अधिक क्यों है?

शोधकर्ताओं ने जोर देकर कहा कि यूरेनियम की अधिक मात्रा भूजल में गिरावट और कर्नाटक के भूगर्भीय बनावट का परिणाम है।

गामा-रे स्पेक्ट्रोमेट्रिक सर्वेक्षणों से पता चला है कि पश्चिमी भाग की तुलना में कर्नाटक के पूर्वी हिस्से में पोटेशियम, यूरेनियम और थोरियम की अधिकता है, जिसे भूवैज्ञानिक पूर्वी और पश्चिमी धारवाड़ क्रेटन के रूप में जानते हैं जिन्हें पूर्वी और पश्चिमी धारवाड़ क्रेटन कहा जाता है। 

प्रमुख अध्ययनकर्ता डॉ. आर. श्रीनिवासन ने बताया कि कर्नाटक प्रमुख रूप से प्राचीन ग्रेनाइट, गनीस और शिस्टोज़ चट्टानों से बना है, जिसे हार्ड रॉक टेरेन कहा जाता है। कठोर चट्टानों में, पानी गहराई में आमतौर पर अपक्षय क्षेत्र (मिट्टी की परत) के आधार पर होता है और जल तालिका का निर्माण करता है। अपक्षयित क्षेत्र जितना मोटा होगा, ऑक्सीकृत परत की मोटाई उतनी ही अधिक होगी। यह खनिजों में यूरेनियम के ऑक्सीकरण को बढ़ावा देता है।

बेंगलुरु के शहरी और ग्रामीण इलाकों में रेडॉन की एक उच्च सामग्री के परिणामस्वरूप बेंगलुरु ग्रामीण जिले के तीन गांवों में यूरेनियम के उच्च स्तर का पता चला है। अवथी गांव के नमूनों में उच्च यूरेनियम 174 से 942 माइक्रोग्राम प्रति लीटर था, जबकि कोडागुर्की गांव के नमूनों में 356 माइक्रोग्राम प्रति लीटर यूरेनियम था। शोधकर्ताओं ने कहा कि यह केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा किए गए अवलोकनों से मेल खाता है।

गुडला मुद्दनहल्ली जिले के एक नमूने में भी डब्ल्यूएचओ की निर्धारित सीमा से अधिक यूरेनियम की मात्रा पाई गई।

बेंगलुरू शहर में, गोलाहल्ली गांव में दोबारा लिए गए नमूनों में पाया गया कि पूरे वर्ष में यूरेनियम की मात्रा 9 से 310 माइक्रोग्राम प्रति लीटर तक अलग-अलग होती है। यह अध्ययन करंट साइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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