नदियों में बढ़ रही है रासायनिक पदार्थों की मात्रा, कौन है जिम्मेवार?

नदियों से दुनिया भर के महासागरों में कुल घुलने वाले ठोसों की मात्रा 68 फीसदी है जिसमें क्लोराइड 81, सोडियम 86 और सल्फेट में 142 फीसदी तक की वृद्धि हुई है।
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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एक नए शोध के मुताबिक प्राकृतिक और इंसानी गतिविधियों के चलते दुनिया की कई बड़ी नदियों की रासायनिक संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव हो रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बदलाव की वजह से नदियों में कैल्शियम, पोटेशियम, क्लोराइड और बाइकार्बोनेट जैसे घुलने वाले पदार्थों की मात्रा बढ़ रही है, जो बह कर समुद्र में समा जाते हैं। 

हालांकि नदियों में पाए जाने वाले ये घुलनशील पदार्थ महत्व भी रखते हैं, क्योंकि इनसे मीठे पानी का पारिस्थितिक तंत्र स्वस्थ रहता है, लेकिन अगर ये घुलनशील पदार्थ नदियों में एक सीमा से अधिक पाए जाएं तो इससे नदियों को खतरा पैदा हो जाता है। इनसे न केवल नदियों का पारिस्थितिक तंत्र बिगड़ सकता है, बल्कि ये पदार्थ इंसानों के लिए भी नुकसानदायक साबित होते हैं। इसे रिवर सिंड्रोम कहा जाता है।   

एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने पिछले एक दशक के दौरान लगभग 150 बड़ी नदियों के बहाव और घुलने वाले पदार्थों की सांद्रता के आंकड़ों का एक वैश्विक डेटाबेस बनाया। इनमें अमेरिका की कोलोराडो और मिसिसिपी नदियां, दक्षिण अमेरिका की अमेजन नदी, अफ्रीका की कांगो नदी, यूरोप की राइन नदी, चीन की पीली और यांग्त्ज़ी नदियां और ऑस्ट्रेलिया की मरे नदी शामिल है।

यह अध्ययन चीन की पेकिंग यूनिवर्सिटी और नॉर्मल यूनिवर्सिटी, अमेरिका की मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी और यूके के प्लायमाउथ विश्वविद्यालय और एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने मिलकर किया है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि इनके आंकड़ों के विस्तृत विश्लेषण से पता चलता है कि नदियों से दुनिया भर के महासागरों में कुल घुलने वाले ठोस का 68 फीसदी, क्लोराइड 81 फीसदी, सोडियम 86 फीसदी और सल्फेट में 142 फीसदी की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

इन प्रभावों को विशेष रूप से ध्रुवीय क्षेत्रों और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के बीच महसूस किया जा रहा है, जहां शहरीकरण और कृषि में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि, दक्षिण अमेरिका की नदियों में मौजूद नदी के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण बाइकार्बोनेट स्तर के परिणामस्वरूप भूमध्य रेखा के करीब अम्लीकरण भी देखा गया था।

हर साल नदियों से लगभग 640 करोड़ टन घुलनशील पदार्थ समुद्र में पहुंचते हैं, ऐसे बदलावों से मनुष्यों और पारिस्थितिक तंत्र के लिए हानिकारक परिणाम हो सकते हैं, जिन्हें रिवर सिंड्रोम कहा जाता है। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन में इस बात की जांच करने की कोशिश की गई कि विभिन्न प्राकृतिक प्रक्रियाओं के साथ-साथ कृषि, खनन और बांधों सहित मानव गतिविधियों के माध्यम से बड़ी नदियों में घुलनशील कैसे सात नदी सिंड्रोम जैसे - खारेपन, खनिजों की बढ़ोतरी, अम्लीकरण, क्षारीकरण, पानी को सख्त और नरम बनाने के लिए जिम्मेवार हैं।

ऐसा करने के लिए, टीम ने नदी के प्रवाह और प्रमुख घुलनशीलों के सांद्रता की जांच की, जिसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम, पोटेशियम, सल्फेट, क्लोराइड, और बाइकार्बोनेट आयन शामिल हैं। 149 बड़ी नदियों से प्राप्त सिलिका है, जिनमें से प्रत्येक में एक बेसिन क्षेत्र है जो कि 1000 वर्ग किलोमीटर से अधिक में फैला हुआ है।

प्लायमाउथ विश्वविद्यालय में एप्लाइड हाइड्रोडायनेमिक्स के प्रोफेसर सह-शोधकर्ता एलिस्टेयर बोर्थविक ने कहा नदियां हमारे धरती की स्थिरता के लिए अत्यधिक महत्व रखती हैं। बड़ी नदियां तलछट से लेकर मछली तक बड़ी मात्रा में विभिन्न सामग्रियों को ले जाने के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि हमारा अध्ययन एक सरल संदेश देता है जिसमें घुलनशील सामग्री में बड़े बदलाव के खिलाफ नदियों की रक्षा के लिए इनसे निपटने के उपायों की तत्काल आवश्यकता है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि हमें प्रमुख नदियों में घुलनशील सिंड्रोम मिले हैं जो कुल घुलने वाले ठोस, क्लोराइड, सोडियम और सल्फेट में पर्याप्त वृद्धि के बाद बनते हैं क्योंकि उन्हें महासागरों तक ले जाया जाता है। चट्टानों के टूटने या घुलने और सिंचाई और शहरीकरण जैसी मानवीय गतिविधियों के कारण दुनिया के ध्रुवीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के बीच में सिंड्रोम का सबसे अधिक प्रभाव पड़ रहा है। 

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