पीने लायक नहीं देहरादून का पानी: रिपोर्ट

देहरादून में लिए गए पानी के नमूनों में से 84.8 प्रतिशत में बेक्टीरिया पाए गए, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होते हैं
देहरादून में पानी के सैंपल लेते संस्था के कार्यकर्ता।
देहरादून में पानी के सैंपल लेते संस्था के कार्यकर्ता।
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पिछले 25 वर्षों से देहरादून और आसपास के क्षेत्रों में पानी के नमूनों की जांच करने वाली संस्था सोसायटी ऑफ पॉल्यूशन एंड एन्वायर्नमेंटल कंजरवेशन साइंटिस्ट्स (स्पैक्स) ने अपनी इस वर्ष की रिपोर्ट जारी कर दी है। संस्था की यह रिपोर्ट बताती है कि देहरादून शहर और आसपास के क्षेत्रों को पानी पीने लायक नहीं रह गया है। पानी के ज्यादातर नमूनों में सिर्फ मानक से कई ज्यादा बेक्टीरिया पाये गये, बल्कि पानी की क्लोरीनिंग के जिम्मेदार विभाग भी अपने काम को ठीक से नहीं कर रहा है। कई जगहों पर पानी के कम तो कई जगह ज्यादा क्लोरीन पाई गई। कई जगहों पर तो पानी में क्लोरीन मिला ही नहीं। जांच में पाया गया कि शहर में 84.8 प्रतिशत जगहों पर पानी में खतरनाक किस्म के बेक्टीरिया मौजूद हैं, जो कई तरह की बीमारियों का कारण बनते हैं। केवल 12 प्रतिशत ऐसे सैंपल मिले जिनमें किसी तरह का कोई बैक्टीरिया मौजूद नहीं है।

संस्था ने इस बार मुख्य शहर और इससे लगते क्षेत्रों के 125 नमूनों की जांच की। इनमें से इनमें 106 सैंपल ऐसे निकले जिनमें खतरनाक किस्म के फीकल और टोटल कॉलीफाम की मात्रा सामान्य से कई गुणा ज्यादा पाई गई। सामान्य रूप से पीने के पानी में फीकल कॉलीफार्म की मात्रा शून्य होनी चाहिए। लेकिन देहरादून में कई सैम्पल में यह बेक्टीरिया 16 प्रति 100 मिली तक पाया गया। इसी तरह से पानी में टोटक कॉलीफार्म की मात्रा समान्य रूप से 100 मिली में 10 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, लेकिन देहरादून में 125 में से 106 सैंपल में टोटल कॉलीफार्म भी सामान्य स्तर से अधिक पाया गया। ऐसे ज्यादातर नमूनों में इसकी मात्रा 12 से 28 प्रति 100 मिली तक पाई गई।

स्पैक्स के अध्यक्ष और पर्यावरणविद् डॉ. बृजमोहन शर्मा ने बताया कि देहरादून में पानी आपूर्ति के लिए जिम्मेदार विभाग पानी में क्लोरीन मिलाने के बाद दावा करता है कि अब पानी में किसी तरह के बेक्टीरिया बाकी नहीं हैं और पानी पूरी तरह से पीने योग्य है, लेकिन जांच में पता चला कि विभाग क्लोरीनिंग में भी भारी लापरवाही बरत रहा है। जांच के दौरान 25.6 प्रतिशत नमूने ऐसे मिले, जिनमें क्लोरीन की मात्रा शून्य मिली। यानी इस क्षेत्रों में क्लोरीनिंग की ही नहीं गई थी। 28.8 परसेंट नमूने ऐसे थे, जिनमें क्लोरीन की मात्रा 0.1 मिग्रा प्रति लीटर थी, जबकि पानी में क्लोरीन की सामान्य मात्रा 0.2 मिग्रा प्रति लीटर होनी चाहिए। 125 में से 8 नमूनों में क्लोरीन निर्धारित मात्रा से ज्यादा पाया गया।

डॉ. बृजमोहन शर्मा के अनुसार पानी में क्लोरीन की अनियमितता विभाग की लापरवाही को दर्शाती है तो बेक्टीरिया की मौजूदगी कई तरह की बीमारियों का संकेत देती है। उनका कहना है कि बरसात बढ़ने के साथ ही पानी की बेक्टीरिया की संख्या भी बढ़ जाती है। यही वजह है कि वे अपना सर्वे मध्य जून से मध्य जुलाई के बीच करते हैं। उनका कहना है कि पाइप लाइनों की लीकेज और गड्ढों में पानी भर जाना पानी के दूषित होने की सबसे बड़ी वजह हैं। उनकी संस्था हर वर्ष अपनी रिपोर्ट के साथ संबंधित विभागों को इस तरह के खतरों से भी आगाह करती है।

वे कहते हैं कि स्पैक्स पानी के नमूनी शहर के विभिन्न इलाकों को तीन वर्गों में बांटकर लेती है। इनमें पॉश इलाके, मध्यम वर्गीय आवासीय क्षेत्र और स्मल बस्तियां शामिल हैं। जांच रिपोर्ट बताती है कि स्मल बस्तियां में सप्लाई किया जाने वाला पानी सबसे ज्यादा असुरक्षित है और इन क्षेत्रों में पीलिया, पोलियो, गैसट्रो-इन्ट्राइस्टिस, जुखाम, संक्रामित यकित्र रोग, अतिसार, दस्त, मियादी बुखार, अति ज्वर, हैजा, कुकुर खांसी, सुजाक, अपदंष, जठरात्र षोथ, प्रवाहिका, क्षय रोग, पायरिया, निद्रा रोग, मलेरिया, अमिबियोसिस रूग्णता, फाइलेरिया, हाइड्रेटिड सिस्ट रोग फैलने का हमेशा खतरा बना रहता है।

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