श्रीलंका सरकार का बड़ा फैसला, एक जून से देश में बंद हो जाएगा सिंगल यूज प्लास्टिक

इससे पहले 2017 में बाढ़ के खतरे को देखते हुए श्रीलंका नॉन-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक बैग पर पहले ही प्रतिबंध लगा चुका है
श्रीलंका के त्रिंकोमाली में डंपिंग ग्राउंड के बीच भोजन की तलाश में जंगली हाथियों का समूह; फोटो: आईस्टॉक
श्रीलंका के त्रिंकोमाली में डंपिंग ग्राउंड के बीच भोजन की तलाश में जंगली हाथियों का समूह; फोटो: आईस्टॉक
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श्रीलंका सरकार ने पर्यावरण के मद्देनजर बड़ा फैसला लेते हुए एक जून 2023 से सिंगल यूज प्लास्टिक के आयात, निर्माण और उपयोग पर रोक लगा दी है। इस बारे में श्रीलंका के आधिकारिक समाचार पोर्टल ने जानकारी दी है कि 30 अगस्त 2021 को हुई कैबिनेट की बैठक में सात प्रकार के सिंगल यूज प्लास्टिक/ पॉलीथीन उत्पादों के आयात, घरेलू उत्पादन, बिक्री और स्थानीय उपयोग के प्रस्तावों को लेकर चर्चा की गई थी।

इसके बाद प्रस्तावों की जांच और सिफारिशों के साथ एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त की गई थी। गौरतलब है कि विशेषज्ञों के इस पैनल द्वारा जांच के बाद प्लास्टिक से बनी इन वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई थी।

इसी सिफारिश को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण मंत्रालय ने श्रीलंका में जून 2023 से सिंगल यूज प्लास्टिक के बने उत्पादों जैसे स्ट्रॉ, ड्रिंक स्टिरर,  प्लेट, कप (दही के कप को छोड़कर), चम्मच, कांटे, चाकू, प्लास्टिक की माला और स्ट्रिंग हॉपर मोल्ड जैसे उत्पादों पर पूरी तरह रोक लगा दी है। वहां जून 2023 से इनके उत्पादन, आयात, बिक्री और उपयोग की अनुमति है।

गौरतलब है कि इससे पहले 2017 में बाढ़ के खतरे को देखते हुए श्रीलंका नॉन-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक बैग पर पहले ही प्रतिबंध लगा चुका है। इस बारे में कैबिनेट प्रवक्ता बन्दुरा गुणावर्दने ने संवाददाता सम्मेलन में बताया कि यह फैसला पर्यावरण और वन्य जीवन पर प्लास्टिक कचरे के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए 18 महीने पहले नियुक्त एक पैनल की सिफारिश पर उठाया गया है।

इस बारे में कैबिनेट प्रवक्ता गुणावर्दने ने बताया कि जांच से पता चला है कि खाने के कचरे के साथ मिश्रित प्लास्टिक खाने से श्रीलंका में कई हाथियों और हिरणों की मौत हो गई थी। गौरतलब है कि 2022 में भारतीय वैज्ञानिकों को उत्तराखंड के जंगलों और उसके आसपास के क्षेत्रों से एकत्र किए गए हाथी की लीद के करीब एक तिहाई नमूनों में इंसानी कचरे की उपस्थिति के सबूत मिले थे, जिनमें प्लास्टिक के अंश भी शामिल थे।

वरदान से अभिशाप बन चुका है प्लास्टिक

देखा जाए तो सिर्फ श्रीलंका ही नहीं दुनिया भर के लिए अब प्लास्टिक एक बड़ा सिरदर्द बन चुका है। हर दिन ऐसे नए अध्ययन सामने आ रहे हैं जिनमें इनके इंसानों और अन्य जीवों के स्वास्थ्य पर पड़ते दुष्प्रभाव उजागर हो रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, रिवरसाइड द्वारा की गई ऐसी ही एक रिसर्च से पता चला है कि प्लास्टिक में मौजूद हानिकारक केमिकल्स अगली दो पीढ़ियों में मेटाबॉलिक डिजीज का कारण बन सकते हैं।

कचरे का कहर वातावरण पर किस तरह हावी हो गया है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज दुनिया में शायद ही कोई जगह ऐसी बची होगी जहां इस कचरे के होने के सबूत न मिले हों। हाल ही में वैज्ञानिकों को रक्त और फेफड़ों के बाद इंसानी नसों में भी माइक्रोप्लास्टिक के अंश के पाए जाने के सबूत मिले थे।

इस बढ़ते कचरे के लेकर हाल ही में ओईसीडी ने एक नई रिपोर्ट “ग्लोबल प्लास्टिक आउटलुक: पालिसी सिनेरियोज टू 2060” जारी की थी। इस रिपोर्ट से पता चला है कि अगले 37 वर्षों में वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक वेस्ट तीन गुना बढ़ जाएगा।

रिपोर्ट का अनुमान है कि 2060 तक हर साल करीब 100 करोड़ टन से ज्यादा कचरा पैदा होगा, जिसका एक बड़ा हिस्सा ऐसे ही पर्यावरण में डंप कर दिया जाएगा। रिपोर्ट के अनुसार जहां 2019 में हर साल 7.9 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा ऐसे ही वातावरण में डंप किया जा रहा था, जो 2060 में बढ़कर 15.3 करोड़ टन पर पहुंच जाएगा।

ऐसे में इस कचरे का उचित प्रबंधन न हो पाना जहां इंसानों और जानवरों के स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा पैदा कर रहा है, साथ ही यह प्रदूषण इकोसिस्टम को भी भारी नुकसान पहुंचा रहा है। ऐसे में इस संकट से निपटने के लिए श्रीलंका सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम सचमुच सराहनीय है। उम्मीद है कि आने वाले समय में दुनिया के अन्य देश भी इस मामले में सामने आएंगें।

एक अन्य रिपोर्ट से पता चला है कि यदि वैश्विक स्तर पर नीतियों में सुधार किया जाए तो अभी जहां 12 फीसदी प्लास्टिक रीसायकल किया जा रहा है वो भविष्य में बढ़कर 40 फीसदी तक हो सकता है। लेकिन यह तभी मुमकिन होगा जब दुनिया के सभी देश इस समस्या की गंभीरता को समझें और इससे निपटने के लिए ठोस रणनीति बनाएं।

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