लखनऊ में कागजों पर चल रहे हैं साइलेंस जोन और ध्वनि प्रदूषण निगरानी केंद्र

लखनऊ में कुल 10 रियल टाइम एंबिएंट नाइस मॉनिटरिंग स्टेशन बनाए गए हैं। इनमें से 8 स्थानों पर दर्शाए जा रहे आंकड़े विचलित करते हैं
 उत्तर प्रदेश के लखनऊ के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मुख्यालय पर ध्वनि प्रदूषण की निगरानी की जाती है। फोटो: रोहन सिंह
उत्तर प्रदेश के लखनऊ के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मुख्यालय पर ध्वनि प्रदूषण की निगरानी की जाती है। फोटो: रोहन सिंह
Published on

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में ध्वनि प्रदूषण के रोकथाम कागजी साबित हो रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की तमाम डांट–फटकार के बाद भी जमीनी स्तर पर लगभग न के बराबर परिर्वतन देखने को मिल रहे हैं। 

लखनऊ में ध्वनि प्रदूषण के आंकड़ों की निगरानी करने के लिए मॉनिटरिंग नेटवर्क, क्वॉलिटी सेंसर और माइक्रोफोन लगाए गए थे। लेकिन ये प्रयास सब जमीनी स्तर पर फेल साबित हो रहे हैं।

गौरतलब है कि ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम 2000 तथा संविधान के 1950 के अनुच्छेद 21 में, बिना शोरगुल के शान्ति से रहने का अधिकार दिया गया है। 

लखनऊ में कुल 10 रियल टाइम एंबिएंट नाइस मॉनिटरिंग स्टेशन बनाए गए हैं। इनकी निगरानी राज्य प्रदषण नियंत्रण बोर्ड के सहयोग से केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा की जाती है। लेकिन इन 10 में से 8 स्थानों पर दर्शाए जा रहे आंकड़ें विचलित करते हैं।

बाकी बचे 2 क्षेत्र, जिसमें एक यूपी प्रदूषण बोर्ड, लखनऊ के अपने मुख्यालय में है, और दूसरा औधोगिक क्षेत्र चिनहट में हैं। इन दोनों क्षेत्रों में लगा मीटर कई महीनों से बंद पड़ा है, जबकि मुख्य सर्वर पर आधा अधूरा आंकड़ा दर्ज हो रहा है। 

खास बात यह है कि यूपीपीसीबी के सदस्य सचिव सहित सभी आला अधिकारी यहां बैठते हैं। लेकिन उन्हें बंद पड़े मॉनिटरिंग स्टेशनों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इस बारे में जानकारी के लिए मुख्य पर्यावरण अधिकारी राम करन सिंह को अप्रेल 25, 2024 को मेल किया गया और 2 मई,  2024 को शाम 4 बजे ट्विटर पर यूपीपीसीबी और सीपीसीबी को टैग किया गया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। 

राजधानी लखनऊ का इसाबेला थोंबर्न आईटी, कॉलेज में ध्वनि प्रदूषण की निगरानी हेतु ध्वनि मोनिटरिंग टर्मिनल लगाया गया है, उक्त स्थान को केंद्रीय प्रदूषण नियत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुख्य सर्वर पर "मौन क्षेत्र" यानी साइलेंस जोन न करके "आवासीय श्रेणी" में दर्शाया गया है।

मौन क्षेत्र के तय मानक दिन का 50 (dB(A)) और रात 40 डीबी निर्धारित है, लेकिन आईटी कॉलेज के बाहर दिन के यातायात का शोर 80 से पार पहुंच जाता है।

सीपीसीबी के वेबसाइट के मुख्य सर्वर पर सभी 7 शहरों के 70 स्टेशनों में एक भी जोन "साइलेंस जोन" के अंतर्गत नही दिखाई दिया। विश्लेषण और अध्ययन करने पर पता चला कि पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत बने ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम 2000 के मुताबिक राज्यों में 100 मीटर के अंतर्गत कॉलेज, यूनीवर्सिटी संस्थान, अस्पताल और कोर्ट परिसर के बाहर ध्वनि प्रदूषण पर पाबंदी है। 

यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सहायक वैज्ञानिक अमरेंद्र सिंह ने बताया कि नियम 2000 के मुताबिक, 10 में 3 स्टेशन साइलेंस जोन हैं, लेकिन मुख्य सर्वर पर क्या दर्शा रहा या दर्ज है, इससे वह अवगत नही हैं। यूपीपीसीबी की वेबसाइट में ध्वनि प्रदूषण के 3 (आईटी कॉलेज, एसजीपीजीआई और गोमती नगर लोहिया हॉस्पिटल) स्थान "साइलेंस जोन" भी है लेकिन यह तीनों मुख्य सर्वर पर "आवासीय जोन" नजर आते हैं। 

दिल्ली में सीपीसीबी के मुख्य सर्वर पर यह 3 "साइलेंस जोन" न होकर "आवासीय जोन" क्यों दिखाई पड़ते हैं? 

दिल्ली के सीपीसीबी, हेडक्वार्टर में बैठे वरिष्ठ वैज्ञानिक आदित्य शर्मा कहते हैं कि इस मुद्दे पर तो उनका और उनकी टीम का ध्यान कभी गया ही नहीं। वह इसे ठीक कराएंगे। 

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से अध्ययन कर चुके लखनऊ उच्च न्यायालय में अधिवक्ता व विधि सलाहकार, दुर्गेश कुमार शुक्ल सवाल करते हैं कि नगर निगम ने साइलेंस जोन के तहत उस स्थान पर बोर्ड क्यों नहीं लगाया? क्या शोर मचाने पर बोर्ड या पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई की गई? क्या एसपीसीबी ने इस बारे में कोई जागरूकता मुहिम चलाई? 

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in