वाहनों के बढ़ते कबाड़ से निपटने के लिए कितनी तैयार है सरकार

कबाड़ में तेजी से बदल रहे वाहन भविष्य में कितनी बड़ी चुनौती बनेंगे और क्या भारत इस चुनौती से निपटने के लिए तैयार है?
स्वस्थ आयु के बाद चलने वाले वाहन पर्यावरण और हादसों का जोखिम बढ़ाते हैं (रॉयटर्स)
स्वस्थ आयु के बाद चलने वाले वाहन पर्यावरण और हादसों का जोखिम बढ़ाते हैं (रॉयटर्स)
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दिल्ली के मायापुरी में पुराने वाहनों के स्क्रैप बाजार में सन्नाटा पसरा है। कुछ समय पहले तक एिशया का सबसे बड़ा स्क्रैप बाजार रहे मायापुरी में 35 साल से पुराने वाहनों की खरीद-फरोख्त का काम कर रहे मोहिंदर सिंह अपनी दुकान के बाहर कुर्सी डालकर बैठे हैं और ग्राहकों का इंतजार कर रहे हैं। करीब साल भर पहले उनके पास इतना काम था कि सांस लेने की फुर्सत नहीं थी। लेकिन अब हालात एकदम उलट हैं। अप्रैल 2019 से बाजार में पुराने वाहनों की खरीदारी बिल्कुल बंद है। दरअसल, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने मई 2015 में मायापुरी में अवैध रूप से चल रहे स्क्रैपिंग उद्योग को बंद करने का आदेश दिया था। आदेश का पालन न होने पर एनजीटी ने 27 नवंबर 2018 में सात सदस्यीय स्पेशल टास्क फोर्स का गठन कर अवैध गतिविधियां रोकने का आदेश दिया। 25 जनवरी 2019 को दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने एनजीटी को बताया कि मायापुरी में बड़े पैमाने पर अवैध गतिविधियां चल रही हैं। एनजीटी की फटकार के बाद डीपीसीसी ने 13 अप्रैल 2019 को मायापुरी में सीलिंग ड्राइव चलाई। इसके बाद से यहां पुराने वाहनों का क्रय-विक्रय बंद है। दुकानदार पुराने वाहनों के कल-पुर्जों का पुराना स्टॉक बेचने के लिए ही दुकान खोल रहे हैं।

मोहिंदर सिंह बताते हैं, “हजारों लोगों को रोजगार देने वाले मायापुरी के इस बाजार में इतना सन्नाटा पहले कभी नहीं था।” ओल्ड मोटर एंड मशीनरी पार्ट्स डीलर्स असोसिएशन के महासचिव गुरुविंदर कुमार उर्फ कुक्कू कहते हैं, “एनजीटी के आदेश के बाद बाजार में वाहनों की डिस्मेंटलिंग (कल-पुर्जों को निकालना और वाहनों की तुड़ाई) बंद है। साल भर पहले तक 300-400 से पुरानी कारें प्रतिदिन यहां बेचने के लिए लाई जाती थीं, लेकिन अब यह पूरी तरह ठप है। करीब 10 हजार लोग यहां काम करते थे जिनका रोजगार खत्म हो गया है।” रोजी रोटी पर आए संकट के कारण मायापुरी के स्क्रैप कारोबारी एनजीटी के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील दायर करने के साथ ही संसद के बाहर प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं।

प्रदूषण की वजह

द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी) द्वारा 2017 में प्रकाशित पोजिशन पेपर के अनुसार, वाहनों से होने वाला करीब 60 प्रतिशत प्रदूषण 10 साल से अधिक पुराने वाहनों से होता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, पुराने वाहन वर्तमान मानकों से 15 गुणा अधिक प्रदूषण फैला रहे हैं। दिल्ली में पुराने वाहनों को प्रदूषण का मुख्य दोषी मानते हुए ही एनजीटी ने 2016 में 10 पुराने वाले डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगा दिया था। उच्चतम न्यायालय ने भी अक्टूबर 2018 में दिल्ली-एनसीआर में 10 पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों पर रोक लगा दी। बिहार में हवा की गुणवत्ता खराब होने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 4 नवंबर 2019 को घोषणा की कि राज्य में 15 साल से पुराने व्यवसायिक और सरकारी वाहन नहीं चलेंगे। इसके अलावा 15 साल पुराने वाहनों की फिटनेस जांच होगी। इस तरह के प्रतिबंध अपनी उम्र पूरी कर चुके वाहन (ईएलवी यानी एंड ऑफ लाइफ व्हीकल) की संख्या में भारी बढ़ोतरी कर रहे हैं। भारत में अब तक समस्या से िनपटने के लिए कोई कारगर नीति नहीं बनी है।

फिलहाल अनुपयोगी हो चुके वाहनों को असंगठित क्षेत्र के बाजारों में बेचकर उनके तमाम उपयोगी पुर्जों को निकाल लिया जाता है। दुकानदार उपयोगी पुर्जों को बेच देते हैं और अनुपयोगी हिस्सा कबाड़ में जाता है या जला दिया जाता है। असंगठित क्षेत्र में वाहनों को डिस्टमेंटल करने की पूरी प्रक्रिया अवैज्ञानिक ढंग से संचालित होती है। अक्सर रबड़ और प्लास्टिक को जलाने के पर्यावरणीय दुष्परिणाम सामने आते हैं। आमतौर पर इंजन ऑयल और बैटरी का तेजाब नालियों में बहा दिया जाता है जिससे मिट्टी और पानी की गुणवत्ता खराब होती है। इन बाजारों में गैस और बिजली से चलने वाले कटर का इस्तेमाल किया जाता था जिनका इस्तेमाल एनजीटी ने 2015 में प्रतिबंधित कर दिया था। पुराने वाहनों की अवैज्ञानिक डिस्मेंटलिंग के कारण ही 1975 से दिल्ली के मायापुरी में चल रहे स्क्रैप बाजार पर गाज गिरी है और उसे प्रदूषण के खिलाफ चल रहे अभियानों की कीमत चुकानी पड़ रही है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने साल 2016 में पहली बार ईएलवी के पर्यावरण हितैषी प्रबंधन हेतु गाइडलाइंस जारी की थीं। एनजीटी के आदेश के अनुपालन में जनवरी 2019 में ऑटोमोबाइल से जुड़े विभिन्न संगठनों के परामर्श के बाद संशोधित गाइडलाइंस जारी की गई। इन गाइडलाइंस में ऑटोमोबाइल कचरे के टिकाऊ प्रबंधन की रूपरेखा है। ईएलवी में हानिकारण तत्व जैसे तेल, लुब्रिकेंट्स, लेड एसिड बैटरी, लैंप, इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे, एयरबैग आदि होता है, अगर इनका वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन न किया जाए तो ये स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाल सकते हैं। जानकार बताते हैं कि असंगठित रूप से चल रहे तमाम स्क्रैप बाजार में गाइडलाइंस की उपेक्षा की जाती है।

असंगठित क्षेत्र के हवाले

भारत में ईएलवी अब तक मायापुरी जैसे असंगठित बाजारों के ही हवाले हैं। अकेले मायापुरी में करीब 3,000 इकाइयां हैं जो प्रतिदिन 1,095 वाहनों और साल में 4 लाख पुराने वाहनों को ठिकाने लगाती थीं। 2015 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा चिंतन एनवायरमेंटल रिसर्च एंड एक्शन ग्रुप और गेजेलशाफ्ट फुर इंटरनेटऐनल सुजम्मेनारबीट (जीआईजेड) के सहयोग से प्रकाशित रिपोर्ट “एनेलिसिस ऑफ एंड ऑफ लाइफ व्हीकल्स सेक्टर इन इंडिया” के मुताबिक, चेन्नई, कोलकाता, पुणे, इंदौर और जमशेदपुर ईएलवी के बड़े बाजार हैं। चिंतन की एक अन्य रिपोर्ट “द स्टोरी ऑफ ए डाइंग कार इन इंडिया” बताती है कि उत्तरी कोलकाता के फूलबाग क्षेत्र में 1,000 से अधिक ऑटोमोबाइल की असंगठित रिसाइक्लिंग इकाइयां हैं। यहां हर साल 1,29,490 ईएलवी पहुंचते हैं। इसी तरह चेन्नई के बोर्डर थोट्टम क्षेत्र में हर साल 1,05,850 वाहन को ठिगाने लगाया जाता है।

भविष्य पर बोझ

सीपीसीबी का अध्ययन बताता है कि देश भर में इस समय 90 लाख ईएलवी सड़कों पर चल रहे हैं। अनुमान के मुताबिक, 2025 तक 2.18 करोड़ ईएलवी हो जाएंगे (देखें, ढलती का नाम गाड़ी)। वियोनशॉम्पिंग विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के तेजस सूर्या नाइक का जून 2018 में प्रकाशित शोधपत्र “इंड ऑफ लाइफ व्हीकल्स मैनेजमेंट एट इंडियन ऑटोमोबाइल सिस्टम” बताता है कि दुनियाभर में ऑटोमोबाइल का कचरा चुनौती बन चुका है। दुनियाभर में वाहनों का स्वामित्व आबादी में विकास दर से अधिक है। 2010 में वाहनों का स्वामित्व 100 करोड़ पार हो चुका है। इसी के साथ ईएलवी की संख्या भी बेतहाशा बढ़ी है। इस चुनौती से पार पाने के लिए यूरोपीय यूनियन, जापान, कोरिया, चीन और ताइवान कानूनी ढांचा बनाकर इस समस्या पर काफी हद तक काबू पा लिया है। भारत में 2010 में 11 करोड़ वाहन सड़कों पर चल रहे थे। 2010 से 2015 तक बीच अतिरिक्त 10.3 करोड़ वाहनों का उत्पादन किया गया।

सड़क यातायात एवं राजमार्ग मंत्रालय के वाहन पोर्टल के मुताबिक, भारत में इस समय 22.95 करोड़ वाहनों का पंजीकरण है। अनुमान है कि 2030 तक 31.5 करोड़ वाहन सड़कों पर होंगे। सड़क पर चलने वाले वाहन पर्यावरण को प्रदूषित तो कर ही रहे हैं, साथ ही पारिस्थितिक संतुलन भी बिगाड़ रहे हैं। अगर भविष्य में इनका ठीक से प्रबंधन नहीं किया गया तो स्थिति भयावह होगी। अपनी उम्र पूरी करने के बाद वाहनों की स्क्रैपिंग जरूरी है लेकिन इनका लगातार इस्तेमाल हो रहा है। तेजस सूर्या नाइक के शोध पत्र के मुताबिक, इस वक्त अकेले दिल्ली की सड़कों पर 54.92 लाख ईएलवी हैं। 2025 तक ऐसे वाहनों की संख्या बढ़कर 77.35 लाख और 2030 तक 96.33 लाख हो जाएगी। इसी तरह चेन्नई में फिलहाल 25.18 लाख ईएलवी हैं जिनके 2025 तक 38.61 लाख और 2030 तक 49.38 लाख होने का अनुमान है।

अगर इन दोनों महानगरों में वाहनों के पंजीकरण के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि शहरों में कितनी तेजी से वाहनों की संख्या बढ़ रही है। दिल्ली में अभी कुल 1.13 करोड़ वाहन पंजीकृत हैं। अनुमान है कि 2025 तक दिल्ली में 1.23 करोड़ और 2030 तक पंजीकृत वाहनों की संख्या बढ़कर करीब 1.42 करोड़ हो जाएगी। साल 2030 तक पांच शहरों- दिल्ली, चेन्नई, इंदौर, पुणे और जमशेदपुर में पंजीकृत वाहनों की संख्या 2.97 करोड़ होगी। 2030 तक केवल चेन्नई, इंदौर और दिल्ली में 1.62 करोड़ वाहन अपनी उम्र पूरी कर चुके होंगे और रिसाइक्लिंग के लिए तैयार होंगे (देखें, शहरों पर बोझ)। ईएलवी के वैज्ञानिक तरीके से निपटारे और रिसाइक्लिंग की अब तक उपेक्षा की गई है। ऐसे वाहनों की वैज्ञानिक तरीके से रिसाइक्लिंग के लिए पूरे देश में फिलहाल सेरो नामक केवल एक संयंत्र उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर नगर जिले के ग्रेटर नोएडा में चल रहा है। इसे ऑटोमोबाइल कंपनी महिंद्रा और सरकारी उपक्रम एमएसटीसी ने संयुक्त रूप से स्थापित किया है।

सीपीसीबी के मुताबिक, एक कार में 70 प्रतिशत इस्पात और 7-8 प्रतिशत एलुमिनियम होता है। शेष 20-25 प्रतिशत हिस्सा प्लास्टिक, रबड़, कांच, आदि होता है। अगर पर्यावरण अनुकूल और वैज्ञानिक तरीके से रिसाइक्लिंग की जाए तो इनमें से अधिकांश चीजें दोबारा इस्तेमाल की जा सकती हैं। इस्पात की रिसाइक्लिंग को बढ़ावा देने के लिए इस्पात मंत्रालय ने 7 नवंबर 2019 को स्क्रैप पुनर्चक्रण नीति की अधिसूचना जारी की है। इसके मुताबिक, इस्पात ऐसी सामग्री है जो चक्रीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे अधिक सहायक है क्योंकि इसका प्रयोग, पुन: प्रयोग तथा अनंत रिसाइकल किया जा सकता है। प्रत्येक टन इस्पात स्क्रैप के प्रयोग से 1.1 टन लौह अयस्क, 630 किलोग्राम कोकिंग कोयला और 55 किलोग्राम लाइमस्टोन की बचत होती है। राष्ट्रीय इस्पात नीति के अनुसार, इस्पात का उत्पादन 250 मीट्रिक टन तक बढ़ाया जाना है। इसे पूरा करने के लिए 70-80 मीट्रिक टन स्क्रैप और 700 स्क्रैप प्रसंस्करण केंद्रों की आवश्यकता है। इस्पात स्क्रैप की इस मांग को पूरा करने में ईएलवी अहम भूमिका निभा सकते हैं।

देर आए, दुरुस्त नहीं

सड़क यातायात एवं राजमार्ग मंत्रालय ने भी देर से ही सही लेकिन अब पुराने वाहनों की रिसाइक्लिंग का महत्व समझा है। मंत्रालय ने ऑथराइज व्हीकल स्क्रैपिंग फैसिलिटी (एवीएसएफ) स्थापित करने के लिए ड्राफ्ट गाइडलाइंस जारी कर 15 नवंबर तक लोगों से आपत्तियां और सुझाव मांगे थे। गाइडलाइंस के मुताबिक, हल्के वाहनों की रिसाइक्लिंग के लिए एवीएसएफ लगाने हेतु कम से कम 4,000 वर्गमीटर की जगह अनिवार्य रूप से होनी चाहिए, जबकि भारी वाहनों समेत अन्य सभी वाहनों के ट्रीटमेंट व रिसाइक्लिंग हेतु 8,000 वर्गमीटर की जगह अनिवार्य है। गाइडलाइंस के अनुसार, एवीएसएफ में उन वाहनों की रिसाइक्लिंग होगी, जिनका पंजीकरण रिन्यू न किया गया हो, जिन्हें फिटनेस प्रमाण पत्र न जारी किया गया हो, जो वाहन आग, दंगों, प्राकृतिक आपदा, हादसों में क्षतिग्रस्त हो गए हों। नीलाम और विभिन्न एजेंसियों द्वारा जब्त किए गए वाहन भी यहां पहुंचाए जा सकेंगे। एवीएसएफ को वाहन डेटाबेस में रिसाइकल किए गए वाहनों की एंट्री करने की सुविधा भी मिलेगी। संचालन के 12 महीने के भीतर एवीएसएफ को आईएसओ 9001 (क्वालिटी मैनेजमेंट सिस्टम), आईएसओ 14001 (एनवायरमेंट सर्टिफिकेशन) और आईएसओ 45001 (ऑक्युपेशनल हेल्थ एंड सेफ्टी) प्राप्त करना होगा।

इन गाइडलाइंस के जारी होने के साथ यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या असंगठित क्षेत्र इसे पूरा कर पाएगा? मायापुरी के ओल्ड मोटर एंड मशीनरी पार्ट्स डीलर्स असोसिएशन के महासचिव गुरुविंदर कुमार उर्फ कुक्कू इस सवाल के जवाब में बताते हैं, “इस व्यापार में शामिल छोटा व्यापारी इन गाइडलाइंस को कभी पूरा नहीं पाएगा। उसके पास 4,000 वर्गमीटर की जगह कहां से आएगी?” उनका कहना है कि सरकार हम जैसे छोटे व्यापारियों को खत्म करने के लिए गाइडलाइन लेकर आई है। अब पुराने वाहनों के कारोबार में सिर्फ बड़ी-बड़ी कंपनियों ही आएंगी और छोटे व्यापारी प्रतियोगिता से बाहर हो जाएंगे। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट में सीनियर प्रोग्राम मैनेजर (क्लीन एयर) विवेक चट्टोपाध्याय भी मानते हैं कि केंद्र सरकार की इन गाइडलाइन को पूरा करना असंगठित क्षेत्र के बस के बाहर है और उसे पूरी तरह नजरअंदाज करना गलत है। वह बताते हैं, “एवीएसएफ लगाने की सरकारी की गाइडलाइन पर चलकर केवल विदेशी कंपनियां और अमीर लोग ही रिसाइक्लिंग के क्षेत्र में आ पाएंगे। असंगठित क्षेत्र के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोजिसर (एसओपी) की व्यवस्था होनी चाहिए।”

उत्पादकों पर हो जिम्मेदारी

हर वाहन की एक स्वस्थ आयु होती है और यह उसकी देखरेख, सड़कों की स्थिति और कल पुर्जों की सर्विस पर निर्भर होती है। लेकिन आमतौर पर माना जाता है कि एक दोपहिया वाहन औसतन 10 साल, तिपहिया वाहन 15 साल, कार 15 साल, व्यवसायिक यात्री वाहन 12 साल और व्यवसायिक मालवाहन की स्वस्थ आयु 11 साल होती है। स्वस्थ आयु के बाद चलने वाले वाहन पर्यावरण और हादसों का जोखिम बढ़ाते हैं, इसलिए तय समय पर उनकी रिसाइक्लिंग जरूरी है। लेकिन रिसाइक्लिंग की मौजूदा क्षमता अभी ऊंट के मुंह में जीरे के सामान है। मायापुरी जैसे असंगठित बाजारों के खत्म होने से रिसाइक्लिंग का पूरा भार संगठित क्षेत्र पर जाएगा जो अब तक खड़ा नहीं हो पाया है। सड़कों पर दौड़ रहे 22 करोड़ से अधिक वाहन आज नहीं तो कल ईएलवी हो जाएंगे। इसलिए भविष्य में बड़ी संख्या में रिसाइक्लिंग संयंत्रों की आवश्यकता होगी।

भारत में अभी ईएलवी की रिसाइक्लिंग का कोई मापदंड नहीं है। यही वजह है कि दिल्ली और एनसीआर में प्रतिबंधित किए गए पुराने वाहन भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में खपाए जा रहे हैं। विवेक चट्टोपाध्याय बताते हैं कि पुराने वाहनों की रिसाइक्लिंग कराने के इच्छुक लोगों को कमीशन देना चाहिए, ताकि वे इसके लिए प्रेरित हो सकें। साथ ही ऐसी व्यवस्था हो, जिससे ऑटोमोबाइल कंपनियां ईएलवी वापस लें और खुद उनका प्रबंधन करें।

यूरोपीय देशों में ऐसा प्रावधान है। यूरोपीय यूनियन ने ईएलवी के प्रति एक्सटेंडेड प्रॉड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (ईपीआर) के तहत उत्पादकों की जवाबदेही तय कर रखी है। भारत को दूसरे देशों से सबक लेते हुए इसे कानूनी दायरे में लाना चाहिए। उपेक्षित असंगठित सेक्टर को भी रिसाइक्लिंग की श्रृंखला में कहीं न कहीं शामिल किया जाए। विवेक चट्टोपाध्याय बताते हैं, “सरकार को पुराने वाहनों की रिसाइक्लिंग के संबंध में व्यापक अध्ययन कर जल्द नीति बनानी चाहिए।” इसमें अब और देर नहीं होनी चाहिए क्योंकि पानी सिर से ऊपर से गुजर चुका है।

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