दुनिया भर में बढ़ता प्लास्टिक प्रदूषण आज एक बड़ी समस्या बन चुका है। इसके महीन कण आज हमारे भोजन, पानी यहां तक की जिस हवा में हम सांस लेते हैं उसमें तक घुल चुके हैं। इसमें से कई कण हमारे शरीर में भी प्रवेश कर रहे हैं।
लेकिन शरीर में पहुंचने के बाद इन कणों का क्या होता है वो हमेशा से बड़ा सवाल रहा है है। क्या यह माइक्रोप्लास्टिक्स हमारे पाचन तंत्र को भी प्रभावित करते हैं? इन्हें सवालों के जवाब ढूंढने के लिए द यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू मैक्सिको एंड हेल्थ साइंसेज से जुड़े वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक नया अध्ययन किया है। इस अध्ययन से पता चला है कि प्लास्टिक के यह महीन कण हमारे पाचन तंत्र को प्रभावित कर रहे हैं।
साथ ही आंत से शरीर के दूसरे अहम अंगों जैसे गुर्दे के ऊतकों, यकृत और मस्तिष्क तक अपनी राह बना रहे हैं। इस अध्ययन के नतीजे 10 अप्रैल 2023 को जर्नल एनवायर्नमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव्स में प्रकाशित हुए हैं।
बता दें कि प्लास्टिक के अत्यंत महीन कणों को माइक्रोप्लास्टिक के नाम से जाना जाता है। इन कणों का आकार एक माइक्रोमीटर से पांच मिलीमीटर के बीच होता है। प्लास्टिक के इन महीन कणों में भी जहरीले प्रदूषक और केमिकल मौजूद होते हैं, जो स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इस बारे में यूएनएम स्कूल ऑफ मेडिसिन के आंतरिक चिकित्सा विभाग में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और हेपेटोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता एलिसेओ कैस्टिलो ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, “पिछले कुछ दशकों में यह माइक्रोप्लास्टिक के यह अंश समुद्रों, जानवरों, पौधों और यहां तक की बोतलबंद पानी में पाए गए हैं। इन्हें हर जगह देखा जा सकता है।“
इससे पहले भी वैज्ञानिकों को इंसानी शरीर में माइक्रोप्लास्टिक्स के अंश मिल चुके हैं। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि लोग हर सप्ताह औसतन पांच ग्राम के बराबर माइक्रोप्लास्टिक के कण निगल रहे हैं, जो करीब-करीब एक क्रेडिट कार्ड के वजन के बराबर है।
गौरतलब है कि 2022 में पहली बार इंसानी फेफड़ों में यह माइक्रोप्लास्टिक्स के कण पाए गए थे। इसी तरह वैज्ञानिकों को अब तक इंसानी रक्त, फेफड़ों के साथ नसों में भी माइक्रोप्लास्टिक के अंश मिल चुके हैं। वहीं जर्नल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित एक अध्ययन में अजन्मे शिशुओं के प्लेसेंटा यानी गर्भनाल में भी माइक्रोप्लास्टिक के होने का पता चला था।
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि जहां अन्य शोधकर्ता निगले गए माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा और उनकी पहचान करने में ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, वहीं कैस्टिलो और उनके दल ने शरीर के अंदर, विशेष रूप से पाचन तंत्र और शरीर में पोषक तत्वों को अवशोषित करने के लिए जिम्मेवार अंगों की प्रणाली और आंत की प्रतिरक्षा प्रणाली पर इन कणों के प्रभावों का अध्ययन किया है।
यह अध्ययन एक चूहे पर किया गया था, जिसे चार सप्ताह तक पीने के पानी के माध्यम से माइक्रोप्लास्टिक्स दिया गया था। माइक्रोप्लास्टिक्स की यह मात्रा इंसानों द्वारा प्रति सप्ताह निगले जा रहे कणों के अनुपात में ही थी।
पाचन तंत्र को प्रभावित करता माइक्रोप्लास्टिक
अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनसे पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक्स शरीर में आंत से होते हुए लीवर, किडनी और यहां तक कि मस्तिष्क में भी पहुंच गया था। इसके अतिरिक्त, अध्ययन से यह भी पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक्स ने इन प्रभावित ऊतकों में चयापचय मार्गों को बदल दिया था।
इस बारे में कैस्टिलो ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि, "संपर्क में आने के बाद हम कुछ ऊतकों में माइक्रोप्लास्टिक्स का पता लगा सकते हैं। यह हमें बताता है कि प्लास्टिक के यह महीन कण आंतों की बाधा को पार कर सकते हैं और अन्य ऊतकों में घुसपैठ कर सकते हैं।
कैस्टिलो ने इंसानी शरीर में जमा होते माइक्रोप्लास्टिक्स को लेकर भी चिंता जताई है। उनका कहना है कि इन चूहे चार सप्ताह के लिए माइक्रोप्लास्टिक्स के संपर्क में आए थे, वहीं इंसानों के बारे में सोचे तो वो जीवन भर जन्म से लेकर बुढ़ापे तक इस संपर्क में आते हैं। उनके मुताबिक प्रयोगशाला में स्वस्थ जानवरों पर थोड़े समय के लिए इसके संपर्क में आने के बाद परिवर्तन देखे गए थे।
अब इंसानों की कल्पना करें जो लगातार इसके संपर्क में आते हैं। यह उनके शरीर को किस हद तक प्रभावित करता है। शोधकर्ताओं ने इससे पहले किए अध्ययन में यह भी पता लगाया है कि माइक्रोप्लास्टिक्स, मैक्रोफेज नामक प्रतिरक्षा कोशिकाओं को प्रभावित कर सकते हैं, जो शरीर की बाह्य कणों से रक्षा करते हैं।
2021 में कैस्टिलो और यूएनएम से जुड़े अन्य शोधकर्ताओं ने इसको लेकर एक अध्ययन किया था, जिसके नतीजे जर्नल सेल बायोलॉजी एंड टॉक्सिकोलॉजी में प्रकाशित हुए थे। इस अध्ययन में सामने आया था कि जब मैक्रोफेज ने माइक्रोप्लास्टिक्स का सामना किया, तो उनके काम करने का तरीका बदल गया और उसकी वजह से उनमें सूजन पैदा करने वाले अणु जारी होने लगे।
शोधकर्ताओं के मुताबिक माइक्रोप्लास्टिक कोशिकाओं के चयापचय को बदल रहा है, जो सूजन संबंधी प्रतिक्रियाओं को प्रभावित कर सकता है। अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोहन रोग जैसी पुरानी बीमारियों की स्थिति में जिसमें आंतो में सूजन आ जाती है, इस दौरान आंत में मौजूद मैक्रोफेज अधिक सूज जाते हैं और उनकी संख्या में वृद्धि होने लगती है।
शोधकर्ता इस बात को भी समझने का प्रयास कर रहे हैं कि माइक्रोप्लास्टिक आंत के माइक्रोबायोटा में क्यों बदलाव करता है। उनके मुताबिक, "कई अध्ययनों से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक्स माइक्रोबायोटा को बदल देता है, लेकिन हम इस बारे में अभी भी ठीक से नहीं जानते कि वो यह बदलाव कैसे करता है।"
यह अध्ययन स्वस्थ पाचन तंत्र के महत्व को दर्शाता है। यदि आपकी आंत स्वस्थ नहीं है, तो वो न केवल मस्तिष्क बल्कि यकृत और कई अन्य ऊतकों को भी प्रभावित करती है। ऐसे में यह देखते हुए कि माइक्रोप्लास्टिक आंत को प्रभावित कर सकता है, लंबे समय तक इसके संपर्क में रहने से पूरे शरीर पर व्यापक प्रभाव पड़ सकते हैं।
ऐसे में कैस्टिलो को उम्मीद है कि उनका यह अध्ययन मानव स्वास्थ्य पर माइक्रोप्लास्टिक के संभावित प्रभावों को उजागर करने में मदद करेगा, साथ ही इससे समाज में प्लास्टिक के उत्पादन और उससे निपटने के तरीके में बदलाव लाने में मदद मिलेगी।