स्मॉग से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने बनाया नया स्प्रेयर  

चंडीगढ़ स्थित केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संस्थान (सीएसआईओ) के वैज्ञानिकों ने एक वाटर स्प्रेयर विकसित किया है, जो स्मॉग को कम करने में कारगर हो सकता है।
पानी की बौछार करते हुए स्प्रेयर। फोटो: साइंस वायर
पानी की बौछार करते हुए स्प्रेयर। फोटो: साइंस वायर
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सर्दियों की दस्तक के साथ दिल्ली और आसपास के इलाके एक बार फिर स्मॉग की चपेट में हैं। चंडीगढ़ स्थित केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संस्थान (सीएसआईओ) के वैज्ञानिकों ने एक वाटर स्प्रेयर विकसित किया है, जो स्मॉग को कम करने में कारगर हो सकता है।

यह स्प्रेयर स्थिरवैद्युतिक रूप से आवेशित (इलेक्ट्रोस्टैटिक-चार्ज) कणों के सिद्धांत पर काम करता है। वाटर स्प्रेयर में स्थिर वैद्युतिक रूप से आवेशित पानी के कण पीएम-10 और पीएम-2.5 को नीचे धकेल देते हैं, जिससे स्मॉग का शमन किया जा सकता है। स्प्रेयर से एक समान पानी के कण निकलते हैं जो हवा में मौजूद सूक्ष्म धूल कणों के लगभग समान अनुपात में होते हैं।

हवा में सूक्ष्म कणों के आपस में टकराने, सूर्य की किरणों और ब्रह्मांडीय विकिरणों आदि के कारण आवेश पैदा होता है।जब छिड़काव की गई बूंदों पर ऋणात्मक चार्ज डाला जाता है,तो वे धनात्मक सूक्ष्म कणों की ओर आकर्षित होती हैं। इसी तरह, धनात्मक रूप से चार्ज सूक्ष्म कणों पर ऋणात्मक चार्ज युक्त पानी की बूंदों की बौछार करने पर वे एक दूसरे की आकर्षित होते हैं। इस कारण पानी की बूंदें और हवा में मौजूद कणों के संपर्क में आती हैं और सूक्ष्म कण भारी होकर धरातल पर बैठने लगते हैं।

शोधकर्ताओं का कहना यह भी है कि इस स्प्रेयर से निकलने वाली पानी की बूंदें अत्यंत छोटी होने के कारण उन पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव कम होता है और वे देर तक हवा में ठहर सकती हैं। हवा में अधिक समय तक रहने के कारण पानी की बूंदों का संपर्क हवा में मौजूद पीएम-10 और पीएम-2.5 जैसे सूक्ष्म कणों से बढ़ जाता है और वे भारी होकर जमीन की ओर आने लगते हैं।

इस र को विकसित करने वाले प्रमुख शोधकर्ता डॉ मनोज पटेल ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि इस स्प्रेयर में करीब 10 से 15 माइक्रोन के पानी के कण हवा में मौजूद पीएम-10 और पीएम-2.5 जैसे सूक्ष्म कणों से टकराते हैं और उन्हें नीचे धकेल देते हैं। हवा में मौजूद ऋणात्मक रूप से आवेशित सूक्ष्म कण होने पर स्प्रेयर से भी ऋणात्मक आवेशित कण निकलते हैं। ऐसे में, स्प्रेयर से निकलने वाले पानी के कण हवा में उपस्थित सूक्ष्म कणों को स्थिर करने में मदद करते हैं।

वाटर टैंक और छिद्रयुक्त कैनन इस उपकरण के दो प्रमुख अंग हैं, जो एक-दूसरे से आपस में जुड़े रहते हैं। आमतौर पर उपयोग होने वाले स्प्रेयर में भी टैंकर होता है। पर, गैर-आवेशित कण होने के कारण उन उपकरणों में पानी की बर्बादी अत्यधिक होती है। इस स्प्रेयर से निकलने वाले पानी के सूक्ष्म कणों के कारण पानी की बर्बादी को भी कम किया जा सकता है।

सीएसआईओ के निदेशक प्रोफेसर आर.के. सिन्हा ने बताया कि “हवा में तैरते धूल कणों को नियंत्रित करने के लिए पानी का छिड़काव एक सामान्य प्रक्रिया है। हालांकि, पानी की बड़ी बूंदों के कारण वातावरण में सूक्ष्म कणों से पानी का संपर्क नहीं होने से वे हवा में बने रहते हैं। यह तकनीक कृत्रिम वर्षा की बौछारें उत्पन्न करके हवा में मौजूद धूल कणों के शमन में मददगार हो सकती है।इसका उपयोग अपने आसपास के क्षेत्र में मौजूद धूल कणों के शमन के साथ-साथ ड्रोन की मदद से बड़े पैमाने पर भी हवा में मौजूद कणों के शमन के लिए किया जा सकता है।”

धुएं के कारण उपजे वायु प्रदूषण और कोहरे के मिश्रित रूप को स्मॉग कहते हैं। स्मॉग के कारण हवा में पीएम-2.5 और पीएम-10 जैसे सूक्ष्म कण लंबे समय तक बने रहते हैं। इसके कारण सांस लेने में परेशानी होती है और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

डॉ मनोज पटेल ने बताया कि “प्रदूषित हवा के कारण श्वसन तंत्र से संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, वातावरण में मौजूद सूक्ष्म धूल कण उद्योगों में मशीनों के संचालन में भी बाधा पैदा करते हैं। इसीलिए, इन कणों का शमन बेहद जरूरी होता है।”

यह मशीन आरंभ में कीटनाशकों के नियंत्रित रूप से छिड़काव के लिए विकसित की गई थी। स्मॉग से निपटने के लिए इसमें बदलाव करके इसे नए रूप में पेश किया गया है। परीक्षण के दौरान स्मॉग नियंत्रण में इस मशीन को प्रभावी पाया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए जल्दी ही इस तकनीक को उद्योगों को हस्तांरित किया जा सकता है। (इंडिया साइंस वायर)

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