वायु प्रदूषण से बच्चों को बचाने के लिए कुछ तो कीजिए

हम प्रदूषण के सभी स्रोत कम कर सकते हैं। तब भी जब हवा न चल रही हो। साफ हवा हमारा हक है, लेकिन इसके लिए हमें वायु प्रदूषण के विज्ञान और मौसम विज्ञान को समझना होगा
Photo: Vikas Choudhary
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हम दिल्ली में सांस तक नहीं ले पा रहे हैं। हवा इस कदर जहरीली हो चुकी है कि पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी लागू हो गई है। आधिकारिक तौर पर हवा की गुणवत्ता सीवियर से अधिक खराब हो चुकी है। इसका मतलब है कि यह स्वस्थ लोगों के लिए भी खराब है। बच्चों, बुजुर्गों और संवेदनशील लोगों पर इसका क्या असर पड़ेगा, यह तो भूल ही जाइए। ऐसे में हमें बिना शोर-शराबा और राजनीति किए क्या करना चाहिए? आखिर अक्टूबर के अंतिम दिनों और नवंबर की शुरुआत में क्या हुआ है? दिवाली यानी 27 अक्टूबर की दोपहर तक दिल्ली की हवा खराब थी, लेकिन सांस लेने लायक थी। लेकिन मौसम के करवट बदलने के साथ रात में ठंड बढ़ी, हवा का चलना कम हुआ और इसी के साथ प्रदूषण लगातार बढ़ने लगा। इसके अलावा पड़ोसी राज्य पंजाब और हरियाणा में पराली का जलना शुरू हो गया। हालांकि दिल्ली के प्रदूषण में इसका योगदान कम था। फिर भी स्पष्ट था कि हालात बदतर होंगे। प्रदूषण के स्थानीय स्रोतों पर निगरानी रखी जा रही थी। हमें यह सुनिश्चित करना था कि पटाखे न फोड़े जाएं, क्योंकि हवा में जहर बढ़ाने की तनिक भी गुंजाइश नहीं थी। तमाम कोशिशों के बावजूद संदेश कहीं गुम हो गया।

इसके बाद जो हुआ, वह हम सबके सामने है। 27 अक्टूबर की शाम प्रदूषण का स्तर अचानक बढ़ गया। मेरे सहयोगियों ने शहर और उसके आसपास मौजूद 50 मॉनिटरिंग स्टेशनों के आंकड़ों के आधार पर अनुमान लगाया कि शाम पांच बजे से रात 1 बजे के बीच पीएम 2.5 की सघनता 10 गुणा हो गई। यह पटाखे फोड़ने के कारण हुआ। उनका कहना है कि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए हो रहे तमाम उपायों पर पटाखों ने पानी फेर दिया। इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि यह साफ दिवाली नहीं थी।

बात यहीं खत्म नहीं हुई। दिवाली के बाद हवा की दिशा बदल गई और ज्यादा धुआं वातावरण में आ गया। यह किसानों द्वारा पराली जलाने का नतीजा था। कुल प्रदूषण में पराली के धुएं का योगदान 30 प्रतिशत पहुंच गया। उधर, अरब सागर में तूफान की हलचल और मॉनसून की देरी ने हवा की गति एकदम रोक दी। नतीजतन, सारा प्रदूषण हवा में ठहर गया। और अब हम हर सांस के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हम मौसम का कुछ नहीं कर सकते। लेकिन हम प्रदूषण के सभी स्रोत कम जरूर कर सकते हैं। तब भी जब हवा न चल रही हो। साफ हवा हमारा हक है। हम सांस ले सकते हैं। लेकिन इसके लिए हमें वायु प्रदूषण के विज्ञान और मौसम विज्ञान को समझना होगा।

यह धारणा गलत है कि वायु प्रदूषण केवल सर्दियों में ही होता है और इसका कारण पराली का धुआं है। यह स्थापित तथ्य है कि किसान 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच हर साल धान के खेतों में आग लगाते हैं। हमें यह भी पता है कि इसके धुएं से क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है और पहले बहुत खराब और उसके बाद आपातकाल तक पहुंच जाता है। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि पराली का धुआं प्रदूषण का प्राथमिक कारण नहीं है। प्रदूषण का स्रोत साल भर स्थिर रहता है। अक्टूबर-नवंबर के मुकाबले साल भर हवा इसलिए साफ रहती है, क्योंकि हवा प्रदूषण के कणों को दूर कर देती है और वातावरण में भी सर्कुलेशन (वेंटिलेशन इंडेक्स के रूप में परिभाषित) बना रहता है। इसलिए स्रोत कहीं नहीं जाता, लेकिन प्रदूषण हमारे चेहरों पर नहीं होता। बदलाव तब आता है, जब ठंड होने के कारण हवा में ठहराव आता है। यही वजह है कि ठंड के मौसम में दिल्ली में प्रदूषण उच्च रहता है। यह कोई पहली बार नहीं हुआ है। दिसंबर और जनवरी में भी बहुत ज्यादा स्मॉग देखा जा रहा है। तब तो पराली का धुआं भी नहीं होता। लेकिन स्थानीय प्रदूषण और मौसम की विपरीत परिस्थितियां होती हैं। यह जरूरी है कि हम इसे ध्यान में रखें क्योंकि हम सारा ध्यान बाहरी कारणों पर लगा देते हैं। दूसरे राज्यों को दोष मढ़ना अच्छी राजनीति हो सकती है, लेकिन यह प्रदूषण प्रबंधन की अच्छी रणनीति नहीं हो सकती।

मैंने पहले भी कहा है कि प्रदूषण को कम करने के लिए बहुत से उपाय किए जा रहे हैं। इन उपायों से प्रदूषण का बढ़ना कम भी हुआ है। लेकिन हमें अब भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। हमें पराली को जलने से रोकना होगा, कचरे पर निगरानी करनी होगी, प्लास्टिक को जलने से रोकना होगा, निर्माण कार्यों और सड़क पर उड़ने वाली धूल का प्रबंधन करना होगा और फैक्ट्रियों के प्रदूषण पर सख्ती से रोक लगानी होगी।

अगर हम दूर की सोचें तो हमें कोयले और अन्य प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन से पूरी तरह छुटकारा पाना होगा। इनके स्थान पर स्वच्छ प्राकृतिक गैस और बिजली की तरफ देखना होगा। इसके अलावा हमें कारों का त्याग करके सार्वजनिक परिवहन से चलना होगा। यह परिवहन तंत्र गरीबों के लिए वहनीय और अमीरों के लिए सुविधाजनक, आधुनिक और सुरक्षित होना चाहिए। हम इस क्षेत्र में बहुत कम काम कर रहे हैं। हमारी हर सांस में जहर जा रहा है। हमारे बच्चों के विकसित होते फेफड़ों की खातिर इसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों को प्यार करते हैं तो आपको कुछ करना ही पड़ेगा। मैं दावे के साथ यह कह सकती हूं कि आपके उस कदम और जुनून से आवश्यक बदलाव जरूर आएगा।

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