बैठे ठाले: कालिंदी कुंज का हिमशैल

चारों ओर बर्फ ही बर्फ थी। मैं एक बड़े हिमखंड पर कूद पड़ी। पर वह हिमखंड नहीं बल्कि गंदी नदी के ऊपर तैरता हुआ झाग था
सोरित / सीएसई
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मादा भालू अपने सूटकेस में सामान पैक करते हुए गुनगुना रही थी, “मैं चली! मैं चली...”

नर भालू ने पूछा ,“सुबह-सुबह कहां जा रही हो डार्लिंग? तुम्हारी किटी पार्टी तो शाम को है!”

मादा भालू ने बातों को अनसुना करते हुए कहा, “बच्चों की स्कूल फीस, ग्वाले का पेमेंट, अखबार वाले का पेमेंट अगले अप्रैल तक कर दिया है। अगले चार-महीनों के लिए घर के राशन-पानी का ऑर्डर दे दिया है।”

अब नर भालू का माथा ठनका। वह बोला, “वह सब तो ठीक है पर यह चार-पांच महीने की क्या कहानी है? तुम आखिर जा कहां रही हो?”

मादा भालू बोली, “मैं चली... मैं चली... अगले चार-पांच महीनों के लिए हाइबर्नेशन पर!”

नर भालू ने चौंक कर कहा, “कौन-सा नेशन?”

अपने फोन पर गाड़ी बुक करते हुए मादा भालू बोली, “करमजले, नेशन नहीं हाइबर्नेशन यानी शीतनिद्रा!

अक्टूबर-नवम्बर को हम मादा भालू शीतनिद्रा में जातीं हैं, यह भी भूल गए? इसीलिए कहती हूं कि थोड़ी देर के लिए वाट्सऐप-इंस्टा-टेलिग्राम की दुनिया से बाहर निकलो।”

इतना कहकर मादा भालू सूटकेस, क्रेडिट कार्ड्स, मेक अप किट जैसे जरूरी सामान लेकर “मैं चली... मैं चली” गुनगुनाते हुए चली गई।

कुछ दिन बाद भालू के एक बच्चे ने कहा, “पापा! मुझे सांस लेने में दिक्कत हो रही है।” दूसरा बोला, “पापा मेरी आंखें जल रही हैं।”

नर भालू बोला, “घर के बाहर कोहरे के अलावा कुछ दिख नहीं रहा है। आंखें तो मेरी भी जल रही हैं। नेता एक-दूसरे को कोस रहे हैं, जनता किसानों को पराली जलने के लिए कोस रही है, न्यायालय हरकत में आ गया है, स्कूल बंद किए जा रहे हैं। लगता है सर्दियां आ गईं हैं।”

अचानक दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजा खोला तो सामने मादा भालू खड़ी थी।

“अरे यह क्या, तुम?” नर भालू ने आश्चर्य से पूछा। मादा भालू ने कोई जवाब नहीं दिया और सीधे आकर सोफे पर धड़ाम से बैठ गई।

“अरे कुछ बोलोगी भी भाग्यवान” नर भालू ने कहा।

“अब मैं क्या बोलूं? घर से निकलते ही, कुछ दूर चलते ही...”

“रस्ते में है उसका घर” नर भालू ने पंक्तियों को पूरा करते हुए कहा, “उसके बाद क्या?”

“मैं हाइबर्नेशन के लिए एक जगह गढ्ढा खोद रही थी कि पानी में गिर गई” मादा भालू ने कहा।

“ये तो होना ही था।” नर भालू ने कहा, “ग्लोबल वार्मिंग के चलते हिमशैल पिघल गए और इतने पतले हो गए हैं कि थोड़ा खोदो तो पानी आ जाता है। खैर फिर क्या हुआ?”

मादा भालू बोली, “मैं भी जिद्द पर अड़ गई कि बर्फ खोजे बगैर नहीं मानूंगी। तैरते हुए मैं बहुत दूर निकल गई।

वह कोई नया ही देश था जहां मुझे बर्फ दिखी। चारों ओर बर्फ ही बर्फ थी। मैं तो खुशी से झूम उठी और एक बहुत बड़े हिमखंड पर कूद पड़ी। पर वह हिमखंड नहीं बल्कि गंदी नदी के ऊपर तैरता हुआ झाग था। मेरे शरीर पर हर ओर गंदा झाग चिपक गया। मैं किसी तरह जान बचाकर भागी और तौबा कर ली कि अब जिंदगी में कभी भी हाइबर्नेशन पर नहीं जाऊंगी।”

“सचमुच तुम पर बहुत बुरी बीती।” नर भालू बोला, “पर क्या नाम है उस देश का?”

“कालिंदी कुंज!” इतना कहकर मादा भालू तेजी से बाथरूम की ओर चली गई।

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