
चारों ओर घुप्प अंधेरा था। लोगों की चीख-पुकार की आवाजें आ रहीं थीं। इन्हीं में से होती हुई दो परछाईं चलती चली जा रहीं थीं। एक परछाईं बोली, “गोयबल्स! यह कौन सी जगह है? यह कौन लोग हैं जो भूतों की तरह चल रहे हैं?”
दूसरी बोली, “हिटलर जी इस जगह को नरक कहते हैं। जो भूतों की तरह चल रहे हैं वो लोग भूत हैं और यह आवाजें उन पापी लोगों की हैं जिनको खौलते गर्म तेल की कड़ाही में पकौड़े की तरह तला जा रहा है... पर आप डरो मत। हमारा-आपका नाम एनआरसी यानी “नरक रजिस्टर ऑफ सिटिजन” में नहीं है... सुना है हमारी व्यवस्था हेल में की गई है।”
पहली परछाईं बोली, “हेल में क्यों?”
इनकी बातचीत चल ही रही थी कि अचानक उनके बगल से तेज रफ्तार की खुली छत वाली एक चमचमाती रोल्सरोयस गाड़ी निकल गई। उसमें कोई गोरा यूरोपियन बैठा हुआ था।
पहली परछाईं बोली, “देख रहे हो बिनोद! इन यूरोपीय गोरों के मजे हैं... जरूर इसको हेवेन में जगह मिली होगी... अरे याद आया गोयबल्स! गोरे तो हम भी हैं और यूरोपीय भी! फिर उसे हेवेन मिला और हमें हेल! भला वह क्यों?”
तभी वह चमचमाती रोल्सरोयस गाड़ी वापस आकर उनके पास रुकी। उसमें बैठे यूरोपीय ने कहा, “इसकी वजह यह है प्यारे हिटलर कि तुम बेवकूफ हो। मुझे वारेन एंडरसन कहते हैं। मैं एक मल्टीनेशनल कंपनी यूनियन कार्बाइड का सीईओ था। मेरी यूनियन कार्बाइड कंपनी की जहरीली गैस से हजारों लोग मर गए, लाखों जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो गए पर मुझे हेवेन मिला।”
पहली परछाईं बोली, “देख रहे हो बिनोद! गैस से हमने लोगों को मारा और दुनिया हम पर थू-थू करती है... हमें जान बचाकर भागने का मौका नहीं मिला और अपने ही घर के बंकर में मुझे खुद पर गोली चलानी पड़ी... वैसे वारेन भाई एक बात बताओ कि तुम भागे कैसे?”
वारेन एंडरसन ने कहा, “बड़ा मजेदार किस्सा है। हुआ यह कि ज्यादा से ज्यादा मुनाफा बटोरने की चाहत में हम यूरोपीय लोग कभी भी थर्ड वर्ल्ड कंट्री के अपने कारखानों में सुरक्षा पर ध्यान नहीं देते। भोपाल में भी यही था। ऐसे में दुर्घटना तो होनी ही थी और हुई भी। मुझसे एक गलती हो गई कि भोपाल में गैस दुर्घटना के कुछ दिन बाद मैं भोपाल पहुंचा और लप्प से गिरफ्तार कर लिया गया... पर मैं घंटे भर में छूट भी गया!”
“छूट भी गए का क्या मतलब!” इतनी देर से चुपचाप खड़े गोयबल्स ने पूछा, “ऐसे कैसे छूट गए?”
“अब यह तो आप तत्कालीन जिलाधीश, तत्कालीन थानेदार, तत्कालीन मुख्यमंत्री, परधान-मंत्री, चीफ सेक्रेटरी इत्यादि से पूछो। उनमें से कई इसी नरक में घूमते-टहलते मिल जाएंगे... मुझे केवल इतना पता है कि मैं प्लेन में बैठा और अमेरिका वापस आ गया!”
पहली परछाईं बोली, “सब वक्त-वक्त की बात है।”
हिटलर को टोकते हुए वारेन एंडरसन बोला, “जी नहीं फ्यूहेरर जी! यह वक्त-वक्त की बात नहीं बल्कि नागरिक-नागरिक की बात है। गैस से तुमने भी लोगों को मारा और मैंने भी, पर दोनों एक बात नहीं है। मैंने एक गरीब देश के कुछ एक हजार लोगों को गैस से मार भी दिया, कुछ लाख लोगों को अपाहिज कर भी दिया तो कौन सी आफत आ गई? गरीब भारतीय लोगों के जान की कीमत ही क्या है? उतनी कीमत तो “आर्थिक तरक्की” और “फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट” के लिए तो चुकानी ही पड़ेगी। अब इसके लिए किसी वारेन एंडरसन को सजा दोगे?
अरे भाई! इससे दुनिया में संदेश जाएगा कि इंडिया में बिजनेस के अनुकूल वातावरण नहीं है। मैंने जो भी किया भारत की तरक्की को ध्यान में रखकर किया, इसीलिए आज मैं हेवेन के मजे ले रहा हूं।”
इतना कहकर वारेन एंडरसन तेजी से अपनी चमचमाती गाड़ी लेकर फुर्र हो गया।
हिटलर बोला, “वाह रे वारेन! तुम तो मेरे भी गुरू निकले!”