क्या आप जानते हैं कि डामर से बनी सड़कें वायु प्रदूषण को और बढ़ा सकती हैं। सुनने में अजीब जरूर है पर यह सच है। हाल ही में जर्नल साइंस एडवांसेज में एक शोध छपा है जिसके अनुसार डामर से बनी सड़कें गर्मियों के दौरान जब तापमान 40 डिग्री से ऊपर चला जाता है तो वो आर्गेनिक एयरोसोल उत्पन्न करने लगती है, जिससे वायु प्रदूषण में इजाफा हो सकता है।
सड़कें शहरों का एक अभिन्न अंग हैं आज यह शहरों की पहचान बन चुकी हैं। इनकी मदद से शहर, कसबे और गांव आपस में जुड़े रहते हैं। आज भारत सहित दुनिया के कई देशों में इन्हें बनाने के लिए डामर का उपयोग किया जाता है।
येल, कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी और मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर केमिस्ट्री के शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन से पता चला है कि जब तापमान में बढ़ोतरी होती है तो इससे उत्सर्जित होने वाले सेकेंडरी आर्गेनिक एयरोसोलस (एसओए) में 300 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। गौरतलब है कि एसओए एक तरह का वायु प्रदूषक है जो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है।
शोधकर्ताओं ने इसे समझने के लिए सड़कों और छतों में इस्तेमाल किए जाने वाले एस्फाल्ट (डामर) को एकत्र किया था। जब उन्होंने उसे 40 से 200 डिग्री सेल्सियस पर गर्म किया गया तो पता चला कि जब तापमान 40 से 60 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच जाता है तो उससे उत्पन्न होने वाले प्रदूषकों में 300 फीसदी तक की वृद्धि हो सकती है।
इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता पीयूष खरे ने बताया कि इस शोध में सबसे महत्वपूर्ण बात यह सामने आई है कि एस्फाल्ट और उससे बने उत्पाद तापमान और पर्यावरण की अन्य परिस्थितियों से जुड़े होते हैं जैसे ही इनमें वृद्धि होती है यह उत्पाद हवा में कार्बनिक यौगिकों के विविध मिश्रण वातावरण में उत्सर्जित करने लगते हैं।
गौरतलब है कि डामर को बिटुमेन के रूप में भी जाना जाता है, जोकि एक तरह का चिपचिपा, काला तरल होता है। जोकि पेट्रोलियम का ही एक रूप होता है और उसी के सामान वातावरण और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
दुनिया भर में वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए वाहनों और जीवाश्म ईंधन पर जोर दिया जा रहा है, और उससे जुड़ी नीतियां बनाई जा रही हैं। पर इस बीच वायु प्रदूषण के अन्य स्रोतों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। डामर से बनी सड़कें वायु प्रदूषण का ऐसा ही एक स्रोत है। साथ ही ब्रेक, टायरों से निकला माइक्रोप्लास्टिक भी हवा को दूषित कर रहा है।
जिस तरह से दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान में वृद्धि हो रही है वो इस समस्या को ओर बढ़ा सकता है। ऊपर से जिस तरह से शहरों में सड़कों के किनारे लगे पेड़ घट रहे हैं, यह समस्या और गंभीर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, कई स्थानों पर, मुख्य रूप से वर्ष के गर्म महीनों के दौरान डामर लगाया जाता है। वहां भी यह समस्या बढ़ सकती है।
भारत में वायु प्रदूषण वैसे ही एक गंभीर समस्या है। दिल्ली सहित यहां के कई शहरों में वायु गुणवत्ता पहले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों से कई गुना ज्यादा दूषित हो चुकी है। ऊपर से बढ़ता शहरीकरण और क्लाइमेट चेंज के कारण तापमान में हो रही वृद्धि इस समस्या को और बढ़ा सकती है।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत में 31 मार्च 2017 तक 5,897,671 किलोमीटर सड़कों का नेटवर्क बिछाया जा चुका है। जोकि अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क है। अमेरिका में 66.45 लाख किलोमीटर सड़कें हैं। जिसमें एक बड़ा हिस्सा आज भी डामर से ढंका है। इसका सबसे ज्यादा असर शहरों में रहने वाले गरीब तबके पर पड़ेगा, जिनके पास बढ़ते वायु प्रदूषण से बचाव के कोई साधन नहीं हैं। साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं की भी कमी है।
इससे बचने के लिए जरुरी है कि जब शहरी विकास और वायु प्रदूषण से निपटने के लिए योजनाएं और नीतियां बनाई जाएं तो इनको भी ध्यान में रखा जाए, जिससे इनके पर्यावरण और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को सीमित किया जा सके।