उदयपुर में वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण सड़क की धूल: सीएसई

सीएसई और राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उदयपुर की वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने उदयपुर में एक कार्यशाला का आयोजन किया
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने उदयपुर में एक कार्यशाला का आयोजन किया
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राजस्थान के उदयपुर में वायु प्रदूषण के प्रमुख सड़क की धूल है। यह बात सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट  (सीएसई) के एक विस्तृत आंकलन में निकलकर आई है। इसके हल के लिए सीएसई और राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (आरएसपीसीबी) जिले की वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए एक रोडमैप तैयार करने के लिए कार्यशाला का आयोजन किया।

ध्यान रहे कि खनिज  सम्पदा से समृद्ध जिला उदयपुर में कई खनिज और पत्थर आधारित उद्योग हैं,  जिनमें से कई वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं। दरअसल, अपने उच्च वायु प्रदूषण स्तर के कारण, उदयपुर को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 2019 में शुरू किए गए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) द्वारा “गैर-प्राप्ति शहर” के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। 

सीएसई के एक आकलन ने इन उद्योगों से होने वाले फ्यूजिटिव उत्सर्जन और सड़क की धूल को जिले में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारकों के रूप में चिन्हित किया है। हालांकि सीएसई ने उदयपुर की हवा को साफ करने के लिए एक रोडमैप की भी पेशकश की है। 

इस संबंध में रोडमैप को तैयार करने के लिए सीएसई और राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (आरएसपीसीबी) द्वारा संयुक्त रूप से आज यहां इम्प्रूविंग एनवायर्नमेंटल परफॉरमेंस ऑफ इंडस्ट्रीज इन उदयपुर नाम के शीर्षक से एक कार्यशाला का आयोजन किया।

कार्यशाला में रोडमैप का फोकस उद्योगों के पर्यावरणीय प्रदर्शन में सुधार और औद्योगिक क्षेत्रों में बेहतर बुनियादी ढांचा प्रदान करने पर विचार किया गया।

आरएसपीसीबी द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार उदयपुर में लगभग 1,207 उद्योग हैं, जिनमें से 885 की पहचान “वायु प्रदूषणकारी” उद्योगों के रूप में की गई है, वहीं 446 ऐसे उद्योग हैं जो फ्यूजिटिव  उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं और 439 “ईंधन खपत” वाले उद्योग हैं। 

446 फ्यूजिटिव  उत्सर्जन वाले उद्योगों में से 366 खनिज पीसने वाली इकाइयां हैं, जबकि 80 स्टोन  क्रशर संयंत्र  हैं। सीएसई के औद्योगिक प्रदूषण विभाग के  कार्यक्रम निदेशक, निवित यादव कहते हैं, “ये उद्योग भारी मात्रा में धूल और उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं और उनके उत्सर्जन को कम करने के लिए सख्त पर्यावरणीय दिशानिर्देशों का पालन करने की आवश्यकता है।

इन क्षेत्रों से निकलने वाली धूल अक्सर आस-पास के आवासीय क्षेत्रों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय रही है, इसलिए इस क्षेत्र पर प्राथमिकता से ध्यान देने की आवश्यकता है।''

कार्यशाला में बोलते हुए आरएसपीसीबी, उदयपुर के क्षेत्रीय अधिकारी शरद सक्सेना ने कहा, “आरएसपीसीबी और उद्योगों को जमीनी स्तर पर दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। वायु प्रदूषण को रोकने के लिए केवल वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की स्थापना ही पर्याप्त नहीं है... हमें  प्रदूषण नियंत्रण के प्रति एक मजबूत मानसिकता का निर्माण करना होगा।”

यादव बताते हैं कि  कि 2021 में, सीएसई ने राजस्थान के प्रमुख जिलों में औद्योगिक वायु प्रदूषण का आकलन करने के लिए एक अध्ययन किया था। उन्होंने कि हमने पाया कि उदयपुर में उद्योग बड़े पैमाने पर कोयला, लकड़ी या तरल ईंधन का उपयोग कर रहे थे।

इन ईंधन खपत करने वाले उद्योगों से कणिकीय पदार्थ प्रदूषण भार 148 टन प्रति वर्ष था, सल्फर डाइऑक्साइड भार 200 टन प्रति वर्ष था, जबकि नाइट्रोजन ऑक्साइड भार 162 टन प्रति वर्ष था। जयपुर और अलवर जैसे अन्य गैर-प्राप्ति शहरों की तुलना में उदयपुर में प्रदूषण का स्तर कम था। हालांकि, निकट भविष्य में उदयपुर में उद्योगों की संख्या में वृद्धि को देखते हुए, यह सिफारिश की जाती है कि शहर में उद्योगों को स्वच्छ ईंधन के प्रयोग की और अग्रसर होना चाहिए।

आरएसपीसीबी के अनुसार, तब से स्थिति में सुधार हुआ है। सीएसई के औद्योगिक प्रदूषण विभाग के कार्यक्रम प्रबंधक पार्थ कुमार कहते हैं कि बायोमास अपनाने को लेकर आरएसपीसीबी द्वारा चलाये गए अभियान के बाद, स्थिति में सुधार हुआ है, कुछ उद्योग बायोमास और अन्य स्वच्छ ईंधन का उपयोग करने लगे हैं। भविष्य में  सभी उद्योगों को उचित वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों के साथ स्वच्छ ईंधन का उपयोग करना चाहिए। सीएसई की औद्योगिक प्रदूषण इकाई की उप कार्यक्रम प्रबंधक श्रेया वर्मा कहती हैं कि उद्योगों के सतत विकास के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि उद्योग पहल करें और व्यक्तिगत स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण उपायों को अपनाएं।

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