बेकार और खराब हो चुके टायरों को जलाकर सस्ता ईंधन बनाने वाली 270 अवैध औद्योगिक ईकाइयों पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कार्रवाई का आदेश दिया है। पीठ ने संबंधित राज्यों और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को कहा है कि वह ऐसी औद्योगिक ईकाइयों से न सिर्फ पर्यावरण उपकर वसूले बल्कि इस तरह की औद्योगिक ईकाइयों से वायु और जल प्रदूषण से बचाव संबंधी आदेशों का अनुपालन भी करवाए।
जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने 19 सितंबर को सीपीसीबी की रिपोर्ट पर गौर करने के बाद यह आदेश दिया है। पीठ ने सीपीसीबी से 30 नवंबर, 2019 से पहले आदेशों की अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है।
सीपीसीबी की ओर से एनजीटी में दाखिल की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के 19 राज्यों में कुल 637 ऐसी औद्योगिक ईकाइयां हैं जो सस्ते टायरों को गलाकर ईंधन तैयार करती हैं। इसमें 251 यूनिट प्रदूषण से बचाव के नियमों का पालन करती हैं जबकि 270 ईकाइयां ऐसी हैं जो केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के मानक संचालन नियमों का पालन नहीं कर रही हैं। वहीं, 116 यूनिट बंद की जा चुकी है।
वहीं, एनजीटी ने रिपोर्ट में की गई सिफारिशों पर भी गौर करने के बाद कहा है कि एक वर्ष के भीतर औद्योगिक ईकाइयों की तकनीकी में बदलाव होना चाहिए। केवल ऐसी कंटिनुअस टायर पाइरोलाइसिस यूनिट को ही इस काम की इजाजत होनी चाहिए। साथ ही रिएयक्टर एयर टाइट होना चाहिए। पीठ ने कहा है कि सीपीसीबी उचित आदेश जारी करे।
पीठ ने कहा कि दूसरे देशों से सस्ते और खराब टायरों के आयात को लेकर भी गाइडलाइन जारी होनी चाहिए। ताकि भारत ऐसे खतरनाक प्रदूषण फैलाने वाले बेकार टायरों का डंपयार्ड न बनने पाए। इसके अलावा टायरों को गलाने की प्रक्रिया में शामिल मजदूरों की सुरक्षा के मद्देनजर भी गाइडलाइन बननी चाहिए।
गैर सरकारी संस्था सोशल एक्शन फॉर फॉरेस्ट एंड एनवॉयरमेंट (सेफ) की ओर से विक्रांत तोंगड़ ने एनजीटी से मांग की थी कि न सिर्फ खत्म हो चुके टायरों का प्रबंधन होना चाहिए बल्कि नियमों और मानकों के तहत इनका निपटारा किया जाना चाहिए। सेफ ने अपनी दलील में कहा था कि वाहनों की लगातार बढ़ती संख्या के कारण भविष्य में खराब और बेकार होकर कचरा बन जाने वाले टायरों की संख्या में और वृद्धि हो सकती है।
एनजीटी ने 25 अप्रैल को याचिका पर गौर करने के बाद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से इस मसले पर तीन महीनों में रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया था। याचिका दाखिल करने वाली संस्था की ओर से याची व पर्यावरणविद विक्रांत तोंगड़ ने बताया कि पाइरोलाइसिस इंडस्ट्री (टायर या प्लास्टिक से ईंधन और गैस बनाने वाले उद्योग) के जरिए व्यापक स्तर पर प्रदूषण फैलाया जा रहा है। टायरों से तैयार होने वाला ईंधन बेहद सस्ता होता है। यह ईंट-भट्ठों और अन्य उद्योगों में इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसे उद्योगों पर तत्काल रोक लगनी चाहिए।
सेफ की याचिका के मुताबिक, ऐसे वाहन जिनकी उम्र खत्म होने को हैं उनके प्रबंधन को लेकर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 2016 में दिशा-निर्देश जारी किया था। इन दिशा-निर्देशों को अभी तक प्रभावी तौर पर लागू नहीं किया गया है। सीपीसीबी की ओर से 2016 में जारी गाइडलाइन और रिपोर्ट के हवाले से याचिका में कहा गया है कि 2015 में करीब 86 लाख वाहन इस्तेमाल लायक नहीं बचे। यह सभी वाहन कबाड़ बन गए और इनका टायर भी कचरे की भेंट चढ़ गया। अनुमान है कि देश में 2025 तक 2.19 करोड़ वाहनों की जिंदगी खत्म हो जाएगी। इसका सीधा सा अर्थ है कि इतनी बड़ी संख्या में वाहन कबाड़ बन जाएंगे। गैर सरकारी संस्था चिंतन की एक अन्य रिपोर्ट- सर्कुलेटिंग टायर्स इन द इकोनॉमी में भी कहा गया है कि भारत में सालाना नए वाहनों के पंजीकरण का दर 125 फीसदी बढ़ गया है। वहीं, 2035 तक वाहनों की संख्या में बड़ी वृद्धि का अनुमान है।
इस अनुमान के मुताबिक 2035 तक देश में 8.01 करोड़ यात्री वाहनों के साथ 23.64 करोड़ नए दोपहिया वाहन सड़कों पर जुड़ जाएंगे। ऐसे में यह डर भी लाजिमी है कि वाहनों की इतनी बड़ी संख्या से हमें टायर का कचरा भी बड़ा मिलेगा। टायरों के कचरे का बोझ वो वाहन भी बढ़ाएंगे जिन पर प्रतिबंध लगाया गया है। चिंतन संस्था के मुताबिक 2016-17 में वाहनों के लिए टायरों का अनुमानित उत्पादन 12.734 करोड़ रहा। वहीं, टायरों के उत्पादन में वित्त वर्ष 2015-16 की तुलना में 12 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई।
याचिका ने चिंतन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि 60 फीसदी ऐसे टायर जिनकी जिंदगी पूरी तरह खत्म हो चुकी है, इन्हें या तो लैंडफिल साइट में फेक दिया जाता है या फिर जला दिया जाता है। इससे खतरनाक वायु प्रदूषण हो रहा है। भारत में प्रतिदिन करीब 6.5 लाख टायर बनाए जाते हैं। वहीं 2.75 लाख टायर बेकार हो जाते हैं। इन बेकार टायरों का एक बेहद छोटा हिस्सा ही वैज्ञानिक तरीके से नष्ट किया जाता है।
खतरनाक और अन्य कचरा (प्रबंधन व सीमा परिवहन) कानून, 2016 के नियम 3(23) में कचरा हो चुके पूरी तरह बेकार टायरों को अन्य कचरा श्रेणी की परिभाषा में रखा गया है। इनकें रख-रखाव, भंडारण, निस्तारण, परिवहन, दोबारा इस्तेमाल, रिसाइकल, निर्यात और आयात आदि के नियम बनाए गए हैं जिन्हें प्रभावी तरह से लागू नहीं किया जा सका है।