महज तीन स्टेशनों से हो रहा है पूरे बिहार के प्रदूषण का आकलन

बिहार में प्रदूषण की वास्तविक स्थिति क्या है, यह जानने के लिए हमारे पास पर्याप्त साधन नहीं हैं
पटना में आर ब्लॉक चौराहा के पास निर्माण कार्य के लिए की गई पेड़ों की कटाई। फोटो: पुष्यमित्र
पटना में आर ब्लॉक चौराहा के पास निर्माण कार्य के लिए की गई पेड़ों की कटाई। फोटो: पुष्यमित्र
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इस हफ्ते बिहार सरकार ने वायु प्रदूषण के लिहाज से दो बड़े फैसले किए। पहला 15 साल पुराने सभी वाहनों के परिचालन पर रोक लगाना, दूसरा 2021 से राजधानी पटना के इलाकों में डीजल ऑटो को प्रतिबंधित करना। जानकार मानते हैं कि ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि जिस वक्त देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था, बिहार की राजधानी पटना में भी प्रदूषण की स्थिति खतरनाक स्तर पर पहुंच गई थी। दो नवंबर, 2019 को जब पूरे बिहार में छठ पर्व मनाया जा रहा था, राजधानी पटना का एयर क्वालिटी इंडेक्स 428 पर पहुंच गया था। इससे पहले भी बीते हफ्ते में पटना का एयर क्वालिटी इंडेक्स 350 से अधिक ही रहा। पीएम 2.5 का स्तर भी 200 से अधिक रहा। ऐसे में सरकार के लिए कोई न कोई कदम उठाना लाजमी हो गया था। मगर सवाल यह है कि क्या महज 15 साल के वाहनों पर बैन कर देने से बिहार के प्रदूषण की स्थिति में सुधार आ जायेगा?

दरअसल जानकार मानते हैं कि बिहार में प्रदूषण की वास्तविक स्थिति क्या है, यह जानने के लिए हमारे पास पर्याप्त साधन नहीं हैं। पूरे बिहार में सिर्फ पांच प्रदूषण मॉनिटरिंग मशीन लगी हैं, इनमें से भी सिर्फ तीन से ही आंकड़े लिए जा रहे हैं। राज्य में तीन मशीनें राजधानी पटना में और एक-एक मशीन गया और मुजफ्फरपुर शहर में लगी हैं। शेष राज्य के 35 जिलों में प्रदूषण के स्तर को समझने का हमारे पास कोई साधन नहीं है। राजधानी पटना में लगे तीन मशीनों में से एक के ही आंकड़े लिए जा रहे हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक भी राज्य के तीन प्रमुख शहर पटना, गया और मुजफ्फरपुर बुधवार को देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में रहे। हालांकि ये आंकड़े पूरे राज्य के प्रदूषण के स्तर को समझने में नाकाफी हैं। 

अक्सर बंद रहती हैं प्रदूषण निगरानी मशीनें 

बिहार में वायु प्रदूषण पर काम करने वाली एयर क्वालिटी एनालिस्ट अंकिता ज्योति कहती हैं कि राज्य की पांच प्रदूषण मॉनिटरिंग मशीन भी बस नाम की है। पटना में तीन में से एक मशीन के आंकड़े ही हमेशा मिलते हैं, शेष दोनों मैनुअल हैं, कभी चलती हैं, कभी बंद रहतीं हैं। लगभग वैसा ही हाल गया का है, वहां की मशीन भी अक्सर बंद हो जाती है। अभी हाल में दीवाली के मौके पर मशीन दो दिन बंद रही। पटना में एक और मुजफ्फरपुर में एक मशीन नियमित चलती है। इन दोनों के भरोसे ही हम पूरे बिहार के प्रदूषण को समझते हैं। इन मशीनों के आंकड़ों के अनुसार, साल भर में बमुश्किल चार-पांच दिन ही राज्य की हवा को बेहतर, सांस लेने लायक माना जा सकता है। नवंबर-दिसंबर महीने में तो एयर क्वालिटी इंडेक्स हमेशा 400 के आसपास रहता है। 

राजधानी पटना की हवा के दमघोटू होने के कई कारण हैं। साल 2015 में हुए एक विश्लेषण के मुताबिक, परिवहन एक बड़ा कारण है, मगर साथ ही निर्माण कार्य के दौरान उड़ने वाला धूलकण भी शहर को प्रदूषित करने में बड़ी भूमिका निभाता है। इसके अलावा बाहर से आने वाला प्रदूषण, घरेलू कचरा, ईंट भट्ठा आदि की वजह से भी शहर की आबोहवा प्रदूषित होती है। 

सरकारी निर्माण प्रदूषण की बड़ी वजह 

राजधानी पटना में प्रदूषण के मसले पर काफी सक्रिय रहे सामाजिक कार्यकर्ता इश्तेयाक अहमद कहते हैं कि दरअसल पटना में प्रदूषण की सबसे बड़ी वजहों में से एक यहां चलने वाले सरकारी निर्माण कार्य हैं। पिछले सात-आठ सालों से शहर में बड़े पैमाने पर फ्लाईओवर, बड़े-बड़े भवन और दूसरे निर्माण लगातार चल रहे हैं। इनसे भारी मात्रा में डस्ट उड़ता है और वह राजधानी के अलग-अलग इलाकों में फैलता है। इनसे दो तरह का नुकसान है, पहला यह कि इनकी वजह से पटना में लगातार पेड़ों की कटाई हो रही है। दूसरा डस्ट से प्रदूषण तो फैल ही रहा है। दिक्कत यह है कि निर्माण के दौरान आवश्यक मानकों का भी इस्तेमाल नहीं होता। न इसे घेरा जाता है, न पानी पटाकर धूल को जमीन पर बिठाने का काम होता है। अगर सरकार केवल इन ठेकेदारों को प्रदूषण मानकों का इस्तेमाल करने के लिए तैयार कर ले तो यहां प्रदूषण का स्तर काफी कम हो सकता है।

पेड़ों की आहुति 

पिछले तीन सालों में इन निर्माण कार्यों की वजह से पटना शहर में 3,247 पेड़ काटे गए। मगर इन्हें दोबारा पटना शहर में नहीं लगाया जा सका। अधिकारियों ने जानकारी दी कि इसके बदले में ग्रामीण इलाकों में वृक्षारोपण किया जा रहा है, क्योंकि शहर में वृक्षारोपण की जगह नहीं है। जाहिर है पेड़ों की इस कटाई का भी खामियाजा शहर भुगत रहा है। इन दिनों शहर में पीएम 2.5 लेवल अमूमन 200 के पास रह रहा है। 

ऐसे में यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या सिर्फ 15 साल पुराने वाहनों पर रोक लगा देने से शहर के प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है? इसके जवाब में अंकिता कहती हैं कि मेरी जानकारी में सिर्फ व्यावसायिक और सरकारी वाहनों पर रोक लगी है, निजी वाहनों की जांच करने के निर्देश दिए गए हैं। वह कहती हैं कि इससे एक स्तर तक ही प्रदूषण में कमी आएगी, जबकि शहर में फिलहाल इमरजेंसी जैसी स्थिति है। एयर क्वालिटी इंडेक्स लगातार 400 के आसपास रह रहा है। ऐसे में सरकार को कम से कम इमरजेंसी हेल्थ एडवाइस तो जारी करना ही चाहिए। 

क्लीन एयर एक्शन प्लान पर नहीं हुआ काम  

वह कहती हैं, पिछले दो साल से राज्य का क्लीन एयर एक्शन प्लान बनकर तैयार है, लेकिन उस पर काम नहीं हो रहा है। अगर उस पर भी काम होता तो स्थिति काफी बेहतर होती। इस एक्शन प्लान के मुताबिक दिसंबर, 2019 तक शहर के प्रदूषण फैलाने वाले सभी उद्योगों को बाहर विस्थापित करना था, यह काम अभी शुरू भी नहीं हुआ है। गंगा नदी के किनारे और शहर के भीतर ग्रीन बेल्ट विकसित करना था, यह काम अगस्त, 2019 तक पूरा हो जाना था, मगर उसके बदले लगातार पेड़ काटे जा रहे हैं। तय हुआ था कि अप्रैल, 2018 तक शहर में चलने वाले जेनरेटर सेट पर पाबंदी लगनी थी, मगर वह भी नहीं हो पाया। बिना ढके निर्माण कार्य और रेत आदि की ढुलाई पर प्रतिबंध लगने के लिए 2018 की समय सीमा तय हुई थी, मगर वह काम भी नहीं हो पाया। 

इस मसले पर इश्तेयाक अहमद एक महत्वपूर्ण बात कहते हैं कि राज्य में तो पॉलीथीन पर भी रोक लगी है, मगर इसका खुलेआम इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे में 15 साल पुराने वाहनों के इस्तेमाल पर रोक की नीति कितनी सफल होगी यह देखने की बात होगी। मगर फिलहाल सरकार के लिए प्रदूषण की स्थिति को स्वीकारने और आम लोगों के लिए एडवाइजरी जारी करने का वक्त है। सरकार को यह भी देखना चाहिए कि दिल्ली जैसे छोटे राज्य के प्रदूषण की जांच के लिए 37 स्टेशन है और बिहार जैसे बड़े राज्य के लिए सिर्फ तीन स्टेशन।  

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