माधव शर्मा
मयंक की उम्र अभी सिर्फ साढ़े आठ महीने ही है, लेकिन इतने कम समय में वो तीन बार अस्पतालों में भर्ती हो चुका है. अबोध मयंक को सांस लेने में तकलीफ है और कई महीनों से खांसी और जुकाम से पीड़ित है. बीते तीन दिन से मयंक राजस्थान के जयपुर के जेके लोन अस्पताल में भर्ती है. डॉक्टरों के अनुसार मयंक में अस्थमा के लक्षण हैं और उसे इमरजेंसी वार्ड में 24 घंटे निगरानी में रखा जा रहा है. उम्र बढ़ने के साथ मयंक को अस्थमा होने का खतरा भी बढ़ता जाएगा.
मासूम मयंक के इलाज पर सब्जी-फल का ठेला लगाने वाले पिता रामवतार ने आठ महीनों में 25-30 हजार रुपए खर्च कर दिए हैं. फिलहाल जयपुर के सांगानेर में रहने वाले रामवतार मूलरूप से सवाई माधोपुर जिले की बामनवास तहसील के बिछोछ गांव के रहने वाले हैं और बीते 10 साल से जयपुर में मजदूरी या ठेला लगाकर अपना गुजारा कर रहे हैं. मयंक का इलाज कर रहे डॉक्टरों के अनुसार ये लक्षण अस्थमा के हैं. बच्चे को दिन में पांच बार पंप से ब्रीदिंग कराई जा रही है. रामअवतार के 5 बच्चों में मयंक सबसे छोटा है, सबसे बड़ी बेटी 10 साल की है.
मयंक की तरह जेके लोन अस्पताल में अक्टूबर 2018 से मार्च 2019 तक 65 बच्चे अस्थमा के मरीज के तौर पर आए हैं. ये सभी बच्चे 6 माह से 3 साल तक की उम्र तक के हैं.
राजस्थान की आबो-हवा में घुला ये ज़हर मयंक जैसे लाखों बच्चों की ज़िंदगी के साथ खेल रहा है लेकिन प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या कभी राजनीतिक दलों की प्राथमिकता में नहीं रही. सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरमेंट की तनुश्री गांगुली बताती हैं कि ऑनलाइन विजुलाइजेशन टूल्स ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 2017 के मुताबिक राजस्थान में प्रति 1 लाख लोगों में 112.05 मौते वायु प्रदूषण के कारण हुई। जो अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक हैं। सबसे घनी आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश उसके बाद आता है। उत्तर प्रदेश में 1 लाख की आबादी के पीछे 111.1 मौतें हुई। उत्तराखंड तीसरे नंबर पर है। वहीं, वायु प्रदूषण होने वाली बीमारियों के कारण पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के मामले में भी राजस्थान आगे है। हेल्थडाटा डॉट ओआरजी पर उपलब्ध 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के सबसे अधिक मामले राजस्थान में रिकॉर्ड हुए। यहां 1 लाख के मुकाबले 143.71 बच्चों की मौत हुई। इसके बाद उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 109.49 का रहा।
जेके लोन अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अशोक गुप्ता कहते हैं कि आजकल बच्चों में अस्थमा जैसी बीमारी जन्म के कुछ महीने बाद ही देखने को मिल रही है. जो कि बेहद खतरनाक ट्रेंड है. 6 महीने में 65 अस्थमा मरीज बच्चे हमारे यहां भर्ती हुए हैं वहीं,अस्थमा से पहले के लक्षण सांस सबंधी दिक्कत वाले 226 बच्चे जयपुर के जेके लोन अस्पताल में भर्ती हुए हैं. डॉ. गुप्ता कहते हैं कि पर्यावरण से संबंधित मुद्दे कभी चुनावों या सक्रिय राजनीति के मुद्दे नहीं बनते क्योंकि देश में लोगों के लिए भूख और गरीबी सबसे पहला मुद्दा है न कि वायु प्रदूषण. इसीलिए राजनीतिक लोगों के एजेंडे में भी वायु प्रदूषण या पर्यावरण के मुद्दे नहीं रहते.
बुधवार यानी 10 अप्रैल को राजस्थान के भिवाड़ी में पीएम2.5 367 माइक्रो क्यूबिक मीटर था और पीएम10 426 माइक्रो क्यूबिक मीटर है. जयपुर के पुलिस कमिश्नरेट पर पीएम2.5 129माइक्रो क्यूबिक मीटर है तो पीएम10 140 माइक्रो क्यूबिक मीटर है. वहीं, पाली, जोधपुर में पीएम2.5 अधिकतम 318 माइक्रो क्यूबिक मीटर और पीएम10 379 माइक्रो क्यूबिक मीटर रहा. कोटा में पीएम2.5 अधिकतम 100 माइक्रो क्यूबिक मीटर है तो अलवर में पीएम2.5 307 माइक्रो क्यूबिक मीटर को भी पार कर गया.
मई 2018 में आई विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सबसे प्रदूषित 15 शहरों में जयपुर और जोधपुर का भी नाम था. वहीं देश के सबसे प्रदूषित शहरों में राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, अलवर,कोटा और भिवाड़ी का नाम आता है.
प्रदूषण पर सरकार की गंभीरता को दिखाने के लिए यही काफी है कि राजस्थान में 7 करोड़ की आबादी पर सिर्फ 10 स्टेशन ही हैं, जहां वायु प्रदूषण के आंकड़े इकठ्ठे किए जाते हैं. यानी 70 लाख लोगों पर एक स्टेशन. इन स्टेशनों में से तीन जयपुर और एक-एक मशीन उदयपुर, कोटा, पाली, जोधपुर, अजमेर, अलवर और भिवाड़ी में है. इस तरह राजस्थान की 5 करोड़ से ज्यादा आबादी वायु प्रदूषण के मापने के सिस्टम से ही बाहर है. राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल की मेंबर सेकेट्री शैलजा देवल कहती हैं, ‘हमारा लक्ष्य हर जिले में एक स्टेशन स्थापित करने का है और उसके लिए प्रस्ताव भी भेज दिए गए. आचार संहिता की वजह से काम रुका हुआ है. उम्मीद है चुनावों के बाद स्टेशन स्थापित करने के लिए राशि सेंशन हो जाएगी.’
अस्थमा विशेषज्ञ डॉ. वीरेन्द्र सिंह कहते हैं कि ‘अगर सरकारें चाहें तो इन मौतों को काफी हद तक कम किया जा सकता है, लेकिन ऐसे समय में जब पूरी दुनिया वायु प्रदूषण को लेकर चिंतित है, हमारे देश में और राज्यों में इसे लेकर कोई खास तैयारी नहीं दिखती है.डॉ. सिंह आगे कहते हैं, देश में चुनावों का माहौल है लेकिन करोड़ों लोगों की जिंदगी से जुड़ा वायु प्रदूषण और इससे होने वाली बीमारियों का जिक्र कोई नहीं कर रहा. सभी राजनीतिक दल बेकार के मुद्दों में समय खराब कर रहे हैं.’
राजस्थान पर्यावरण विभाग की 2018-19 की रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 2018 तक पर्यावरण विभाग ने 38.76 लाख रुपए वेतन-भत्ते और प्रचार- प्रसार पर खर्च किए हैं. विभाग ने पर्यावरण शिक्षा एवं सुधार श्रेणी में पिछले 5 साल से कोई खर्चा ही नहीं किया है. इससे सरकार और पर्यावरण विभाग की प्रदूषण और पर्यावरण के लिए गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है.