जहरीला पंजाब : कैंसर और दांत संबंधी घातक बीमारियों की जद में आ रहे ग्रामीण

ग्रामीणों ने कहा कि उद्योगों के जरिए रिवर्स बोरिंग किए जाने की आशंका है, जहां औद्योगिक अपशिष्टों को भूजल में पंप किया जाता है। प्रदूषित सतही जल भी भूजल में रिस कर उसे दूषित कर सकता है।
Five-year-old Gurnoor Singh’s milk teeth are breaking off in small pieces. Photo: 
Vikas Choudhary / CSE
Five-year-old Gurnoor Singh’s milk teeth are breaking off in small pieces. Photo: Vikas Choudhary / CSE
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पंजाब के लुधियाना जिले के गौंसपुर निवासी स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। ग्रामीण अपनी बीमारी का कारण उनके आस-पास हो रही औद्योगिक गतिविधि को मानते हैं, जिसने उनकी आबोहवा को प्रदूषित कर दिया है। किसान सुखविंदर सिंह और उनके परिवार पर प्रदूषण की मार पड़ी है। उनकी मां को लगभग पांच साल पहले त्वचा कैंसर का पता चला था।

सुखविंदर के बेटे गुरनूर सिंह भी पीड़ित हैं-पांच साल के बच्चे के दूध के दांत छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट रहे हैं।

सुखविंदर का परिवार अकेला नहीं है। लुधियाना में ही एक निजी अस्पताल में काम करने वाले ने नाम न उजागर करने की शर्त पर डाउन टू अर्थ से कहा “पिछले महीने ही गांव में कैंसर के पांच नए मामले सामने आए हैं। कई लोग दंत और त्वचा की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। यह सब प्रदूषित पानी के कारण हो रहा है।" 

एक अन्य ग्रामीण इंदु ने कहा कि उनका 17 वर्षीय बेटा बीमार पड़ता रहता है और उसे हर छह महीने में अस्पताल जाना पड़ता है। उसके दांत भी गुरनूर की तरह टूट रहे हैं। इंदु उत्तर प्रदेश की रहने वाली है।

लगातार बीमारियों ने भी कई ग्रामीणों को समय से पहले बूढ़ा कर दिया है। हरवंश सिंह (55) और जगजीत सिंह (45) के सारे दांत टूट चुके हैं और जगजीत अपनी उम्र से काफी बड़े दिखते हैं। गौंसपुर गांव में लगभग 450 घर हैं और निवासी भूजल पर निर्भर हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि इलाके में चल रही पेपर मिलों से पानी दूषित हो रहा है।

सुखविंदर ने कहा कि उद्योगों के जरिए रिवर्स बोरिंग किए जाने की आशंका है, जहां औद्योगिक अपशिष्टों को भूजल में पंप किया जाता है। प्रदूषित सतही जल भी भूजल में रिस कर उसे दूषित कर सकता है।

सतलज की 40 किलोमीटर लंबी सहायक नदी गौंसपुर में बुड्ढ़ा नाला पहुंचने से पहले लुधियाना शहर से होकर गुजरती है। लुधियाना जिले के वलीपुर गांव के पास, मौसमी जलधारा थोड़ी और नीचे सतलुज नदी में गिरती है।

लंबे समय से औद्योगिक, कृषि, घरेलू और नगर निगम के कचरे को ले जाने वाले नाले बुड्ढ़ा नाले में प्रवेश कर रहे हैं। 2010 में, केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने बुड्ढ़ा नाला को गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्र घोषित किया है।

आम आदमी पार्टी के पंजाब प्रवक्ता अहाब सिंह ग्रेवाल ने इस मामले पर डीटीई को बताया कि पूरी धारा काली है और इसमें से अनचाही और बेचैन करने वाली बदबू उठती है। औद्योगिक ईकाइयां रसायनों से भरे डिस्चार्ज को नगरपालिका के सीवरों में भेजते हैं, जो अंत में नाले तक पहुंचते हैं। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसी रवायत है जो खुले रहस्य की तरह है।"

जर्नल द केमिकल रिकॉर्ड में प्रकाशित 2021 के एक अध्ययन के अनुसार डाई उद्योग धातु युक्त रसायनों और जटिल रंगों का उपयोग करता है। इलेक्ट्रोप्लेटिंग उद्योग पीतल, जस्ता, चांदी, सोना, निकल, तांबा, लोहा, एल्यूमीनियम, सीसा, टिन, प्लैटिनम और क्रोमियम का उपयोग करता है।

अध्ययनों ने बुड्ढ़ा नाला में भारी धातुओं का दस्तावेजीकरण किया है। आर्सेनिक, क्रोमियम, लेड और आयरन जैसी भारी धातुएं चिंता का विषय हैं क्योंकि ये लंबे समय तक पर्यावरण में रहती हैं।

एक अध्ययन के अनुसार बुड्ढ़ा नाला के छह किलोमीटर के दायरे में एकत्र किए गए भूजल के कई नमूने पीने के लिए अनुपयुक्त थे।

सुखविंदर ने अपने घर में रिवर्स ऑस्मोसिस वॉटर फिल्ट्रेशन सिस्टम (आरओ) लगाया है। उन्होंने कहा "लेकिन हमें हर 20 दिनों में फ़िल्टर बदलना पड़ता है।" वह बताते हैं जो लोग महंगे वाटर प्यूरीफायर नहीं खरीद सकते वे गैरउपचारित भूजल पीते हैं।

प्रदूषण की इस भीषण मार के बीच इलाज का भी संकट लोगों के लिए भारी पड़ रहा है। सुखविंदर बताते हैं “पड़ोसी गाँव में सरकारी डिस्पेंसरी अच्छी नहीं है। उनके पास अक्सर दवाओं का स्टॉक नहीं होता है। इसलिए कई लोग निजी क्लिनिक या अस्पताल में इलाज करवाना पसंद करते हैं। लुधियाना में दयानंद मेडिकल कॉलेज हमें मुफ्त इलाज प्रदान करता है।”

सुखविंदर अनुमान लगाते हैं कि ग्रामीणों को उम्मीद है कि सरकार गांव में स्वास्थ्य शिविर लगाएगी। "यह उन बीमारियों को पकड़ने में मदद करेगा जो रडार के अधीन हैं। यदि प्रत्येक ग्रामीण का परीक्षण किया जाता है, तो गांव में बीमारी का बोझ और भी अधिक हो सकता है।

ग्रामीणों ने पेपर मिल उद्योगों से फ्लाई ऐश की भी शिकायत की। इंदु कहती हैं "यह हमारी आंखों में प्रवेश करता है। हम कभी-कभी इसे निकलवाने के लिए डॉक्टर के पास जाते हैं।” उसका घर एक पेपर मिल फैक्ट्री और बुड्ढ़ा नाले के ठीक सामने है। इंदु ने कहा "हम कारखाने से निकलने वाली दुर्गंध के साथ जीने को मजबूर हैं।"

कुछ परिवारों ने खतरे से निपटने के लिए दूसरे रास्ते की तलाश की है। सुखविंदर ने कहा, "पिछले पांच सालों में चार-पांच परिवारों ने अपनी जमीन बेच दी और विदेश चले गए।" अधिकांश निवासियों के पास परिस्थितियों को सहने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। 

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