वायु प्रदूषण से भी बढ़ता है प्लास्टिक का कचरा : अध्ययन

पीएम 2.5 में 100 ग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि ने प्लास्टिक उपयोग को औसतन 10 ग्राम बढ़ा दिया।
वायु प्रदूषण से भी बढ़ता है प्लास्टिक का कचरा : अध्ययन
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सर्दियों के मौसम की शुरुआत हो चुकी है और देश में खासकर दिल्ली में प्रदूषण का स्तर हर दिन बद से बदतर होने लगा है। इस बढ़ते वायु प्रदूषण के लिए कहीं न कहीं हम लोग जिम्मेदार हैं। नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर (एनयूएस) के शोधकर्ताओं ने प्रदूषण और पर्यावरण को लेकर मानव व्यवहार संबंधी एक अध्ययन किया है।

अध्ययन के अनुसार, जब बाहर की हवा खराब होती है तो कार्यालय के कर्मचारियों को दोपहर के भोजन के लिए बाहर जाने की तुलना में भोजन मंगवाने की अधिक संभावना होती है। यह भोजन प्लास्टिक के डिब्बों द्वारा पहुंचाया जाता है। इन डिब्बों को खाना खाने के बाद फेंक दिया जाता है। जो प्लास्टिक प्रदूषण का कारण बन जाता है। 

यह अध्ययन करने वाले अल्बर्टो सालवो का कहना है कि वातावरण में प्लास्टिक प्रदूषण को फैलाने वाले मानव व्यवहार को समझने की कोशिश कभी नहीं हुई है। इसमें हमारा अध्ययन मदद कर सकता है। हमारा उद्देश्य ऑनलाइन खाना मंगवाने, वायु प्रदूषण और प्लास्टिक कचरे को एक कड़ी के रूप में जोड़ता है। विकासशील देशों में बढ़ते शहरीकरण के कारण वायु गुणवत्ता पिछले एक दशक से नियमित रूप से खराब होती जा रही है, जबकि खाद्य वितरण उद्योग तेजी से बढ़ रहा है।

सालवो के मुताबिक, हमने जो साक्ष्य जुटाए हैं, उनमें भोजन वितरण करने वाले डिब्बे से लेकर कैरी बैग तक बहुत सारा एक बार उपयोग होने वाला प्लास्टिक देखा गया है। यह अध्ययन नेचर ह्यूमन बिहेवियर में प्रकाशित हुआ है।

एनयूएस के अध्ययनकर्ताओं ने चीन में यह अध्ययन किया। जहां 35 करोड़ पंजीकृत उपयोगकर्ता विभिन्न ऑनलाइन खाद्य वितरण प्लेटफार्म से जुड़े है। पूरे चीन में हर दिन लगभग 6.5 करोड़ प्लास्टिक के डिब्बों (कंटेनरों) को भोजन करने के बाद फेंक दिया जाता है।

अध्ययन में जनवरी और जून 2018 के बीच तीन बार स्मॉग से भरे चीनी शहरों - बीजिंग, शेनयांग और शिजियाझुआंग में सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षण में समय-समय पर 11 कार्यदिवसों के लिए 251 कार्यालय के हर एक कर्मचारी, के दोपहर के भोजन के विकल्पों को शामिल किया गया। कार्यकर्ता सर्वेक्षण के लिए, शोधकर्ताओं ने 2016 में ऑनलाइन फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म के बीजिंग ऑर्डर बुक के आंकड़े भी लिए। उपयोगकर्ताओं का लगभग 350,000 फूड डिलीवरी ऑर्डर के आंकड़ों को एकत्र किया।

सर्वेक्षण और ऑर्डर बुक के आंकड़ों की तुलना पीएम 2.5 के साथ तीनों शहरों में वायु-निगरानी नेटवर्क से भोजन के समय की गई थी। यह देखा गया कि इन अवधियों के दौरान पीएम 2.5 का स्तर अक्सर 24-घंटे के यूएस नेशनल एंबिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड ऑफ 35 ग्राम प्रति घन मीटर से ऊपर है, तो प्रदूषण अत्यधिक दिखाई देगा।

दोनों आंकड़ों के स्रोतों ने पीएम2.5 प्रदूषण और खाद्य वितरण खपत के बीच एक मजबूत संबंध स्थापित किया। मौसमी प्रभावों के लिए, फर्म की ऑर्डर बुक से पता चला है कि पीएम 2.5 में 100 ग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से खाद्य वितरण की खपत में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई। कार्यालय के कर्मचारियों ने डिलीवरी का ऑर्डर तब अधिक दिया जब, 100 ग्राम प्रति घन मीटर पीएम 2.5 का प्रभाव छह गुना आधिक, जो 43 प्रतिशत था।

एनयूएस बिज़नेस स्कूल में विपणन विभाग के प्रोफेसर चो ने कहा स्मॉग या धुंध के साथ सामना न करना पड़े, इसलिए दोपहर के भोजन के समय एक कार्यालय का कर्मचारी केवल अपने दरवाजे पर भोजन पहुंचाने का आदेश देकर जोखिम से बच सकता है। 

वायु प्रदूषण नियंत्रण से प्लास्टिक कचरे में भी वृद्धि कम होगी

कार्यालय कर्मियों द्वारा भोजन की 3,000 से अधिक तस्वीरें प्रस्तुत की गईं, जिसने एनयूएस टीम को यह तय करने में मदद की कि दोपहर के भोजन के विकल्पों में कितना अलग-अलग तरह का प्लास्टिक उपयोग होता है। विशेष रूप से, रेस्तरां में खाया जाने वाला भोजन बनाम कार्यालय में दिया जाने वाला भोजन। शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि 100 ग्राम प्रति घन मीटर पीएम 2.5 वृद्धि ने भोजन के डिस्पोजेबल प्लास्टिक उपयोग को औसतन 10 ग्राम बढ़ा दिया था। एक प्लास्टिक कंटेनर के द्रव्यमान का लगभग एक तिहाई। अध्ययन में पता चला कि औसत वितरित भोजन में, एक बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक की वस्तुओं में लगभग 54 ग्राम प्लास्टिक का उपयोग किया गया था।

ऑर्डर बुक के आधार पर, शोधकर्ताओं ने यह भी अनुमान लगाया कि एक निश्चित दिन में, यदि चीन में 100 ग्राम प्रति घन मीटर पीएम 2.5  बढ़ जाता है, तो बीजिंग में 25 लाख अधिक भोजन के डिब्बे वितरित किए जाएंगे, अर्थात अतिरिक्त 25 लाख प्लास्टिक बैग और 25 लाख डिब्बे (प्लास्टिक कंटेनर) की आवश्यकता होगी।

अर्थशास्त्र विभाग के एसोच प्रोफेसर लियू ने कहा हमारे निष्कर्ष अन्य आम तौर पर प्रदूषित विकासशील देशों जैसे बांग्लादेश, भारत, इंडोनेशिया और वियतनाम पर भी लागू होते हैं। अपशिष्ट प्रबंधन सही से नहीं किया जाता प्लास्टिक को लैंडफिल या नदियों में फैक दिया जाता है जो समुद्र तक पहुंच जाता है। हर साल 80 लाख टन प्लास्टिक के समुद्र में चले जाने का अनुमान है। हमारे अध्ययन से यह स्पष्ट है कि वायु प्रदूषण के नियंत्रण से प्लास्टिक कचरे को कम किया जा सकता है।

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